-शिक्षक और माता-पिता नहीं दे पा रहे सच्ची व्यावहारिक सीख

PATNA: कितने पैरेंट्स ऐसे हैं जिन्हें अपने बच्चों के स्कूल में व्यवहार की चिंता होती है। बुनियादी और नैतिक शिक्षा में कमी के कारण बच्चे गुस्सैल हो रहे हैं और इससे किसी को कोई मतलब नहीं रह गया है। यह बातें महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने कही। वे शनिवार को पटना में रत्न सागर प्रकाशन की ओर से आयोजित गांधी और आज की शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि यहां कितने टीचर हैं जो स्कूल के बाहर बच्चों के माता-पिता से बात भी करते हैं? हमारी शिक्षा नीति में आदर, अनुशासन और व्यवहार की बजाय मा‌र्क्स लाने की होड़ में बच्चों को शामिल कर दिया गया है। मोबाइल और इंटरनेट में अच्छा और बुरा दोनों है। बच्चों को मालूम है कि उनके माता-पिता और शिक्षक क्या देख रहे हैं। जरूरत है कि बच्चों को धार्मिक और सच्ची शिक्षा दी जाए ताकि अच्छाई को ग्रहण करें। आज मेरे मोबाइल पर भी बुरी चीजें अधिक आती है। यह आपकी ताकत पर निर्भर करता है कि अच्छी चीजों से सीख सकें।

5वीं के बच्चे आ रहे तनाव में

आज पांचवीं-छठी कक्षा से बच्चे तनाव में आ रहे हैं। उसके गुस्से से शिक्षक को कोई मतलब नहीं। माता-पिता कहते हैं कि अपना फ्रस्टेशन स्कूल में निकालो। यही बच्चा बाद में 12 वीं कक्षा तक आते-आते आत्महत्या करता है। बच्चों का पोस्टमॉर्टम नहीं बल्कि डाइग्नोज कर उसके तेवर को रचनात्मक कार्य की ओर ले जाने की जरूरत है।

चंपारण में नहीं दिखा बदलाव

स्वर्गीय राजकुमार शुक्ल के जिद के कारण बापू को बिहार आना पड़ा था। चंपारण और भितिहरवा जाकर देखा है। 150 वर्षो बाद भी वहां की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा।