RANCHI: अगर आपको भी किसी बीमारी ने परेशान कर रखा है तो टेस्ट कराने के लिए दो महीने बाद आना होगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं रिम्स की जहां कुछ बीमारियों के टेस्ट के लिए दो महीने तक वेटिंग मिल रही है। ऐसे में मरीज का इलाज भी प्रभावित हो रहा है। वहीं प्राइवेट सेंटर में जाने के चक्कर में उनकी जेब पर डाका पड़ रहा है। इसके बावजूद प्रबंधन मरीजों की वेटिंग लिस्ट को कम करने की ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं, मशीनों की संख्या बढ़ाने को लेकर भी कोई योजना नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि रिम्स को एम्स की तर्ज पर डेवलप कैसे किया जाएगा, जहां मरीजों को जरूरी सुविधाएं भी मुश्किल से मिल रही हैं।

प्राइवेट में पांच गुना चार्ज

रिम्स में जहां सरकारी दर पर मरीजों का टेस्ट किया जाता है। इको कराने के लिए रिम्स में 250 रुपए लगते हैं। जबकि इसी टेस्ट के लिए प्राइवेट में 800 रुपए से लेकर अधिक चार्ज वसूला जाता है। रेडियोलॉजी में कलर डॉप्लर का चार्ज 180 रुपए है। लेकिन प्राइवेट सेंटर में इसके लिए भी 400 रुपए से अधिक चार्ज लिया जाता है। इसके अलावा दांत उखाड़ने के लिए रिम्स में कोई चार्ज नहीं है पर प्राइवेट क्लिनिक में मोटी रकम चुकानी पड़ती है।

केस 1

सूरज कुमार अपने पिता को लेकर कार्डियोलॉजी ओपीडी में इलाज के लिए आए थे, जहां डॉक्टर ने उन्हें इको टेस्ट कराने को कहा। जब वह इको का नंबर लगाने पहुंचे तो उन्हें अप्रैल की डेट दी गई। बार-बार रिक्वेस्ट करने पर भी पहले का नंबर नहीं मिला। अब वह जाकर उनका टेस्ट प्राइवेट में कराएंगे।

केस 2

राजीव कुमार के परिजन को खड़े होने में दिक्कत हो रही थी। डॉक्टर ने उन्हें कलर डॉप्लर कराने को कहा। टेस्ट के लिए जब वह अल्ट्रासाउंड डिपार्टमेंट में नंबर लगाने पहुंचे तो उन्हें मार्च में आने को कहा गया। इसके बाद उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। इस बीच सीनियर अधिकारी से पैरवी लगाकर टेस्ट कराया।

केस 3

किशोर कुमार दांत की समस्या से परेशान थे। ऐसे में वह डेंटल ओपीडी पहुंचे। डॉक्टर से दिखाने के बाद उन्हें दांत फीलिंग कराने की सलाह दी गई। जब वह डिपार्टमेंट में पहुंचे तो उन्हें अगले महीने की डेट बताई गई। इसके बाद उन्होंने प्राइवेट में जाकर ट्रीटमेंट करवा लिया।