विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगले दो दशक में कैंसर के पीड़ितों की संख्या में 75 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक कैंसर के मामलों में ये बढ़ोत्तरी ज्यादातर विकासशील देशों में होगी और इसकी वजह है- आँख मूँदकर पश्चिमी देशों की अस्वस्थ जीवन शैली को अपनाना।

डब्ल्यूएचओ की एक एजेंसी का अनुमान है कि साल 2030 तक कैंसर के दो करोड़ 20 लाख नए मामले सामने आएंगे। शोध पत्रिका 'लानसेट' में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि इसका एक कारण यह है कि बहुत सारे और रोग समाप्त हो रहे हैं और इन रोगों के लिए ली जाने वाली दवाएं और दूसरे उपाय कैंसर की प्रमुख वजह बन रहे हैं।

संक्रमण

हालांकि संक्रमण से होने वाले कैंसर जैसे सर्वाइकल या फिर लिवर कैंसर के मामलों में कमी आ रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इनकी कमी कैंसर के उन मामलों से काफी पीछे रह जाएगी जो कि गलत आदतों की वजह से काफी तेजी से बढ़ रही हैं। इनमें अत्यधिक मात्रा में शराब, सिगरेट के सेवन से होने वाले फेफड़ों, आंत और स्तन कैंसर प्रमुख हैं।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2030 तक दुनिया के सर्वाधिक गरीब देशों में कैंसर पीड़ितों की संख्या में 90 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। जानकारों का कहना है कि विकासशील देशों को पश्चिमी देशों की गलतियों से सीख लेनी चाहिए और उन्हें ये गलतियां दोहरानी नहीं चाहिए।

ये शोध फ्रांस के लियोन शहर स्थित इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर अर्थात् आइएआरसी और अमेरिकन कैंसर सोसायटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। इस शोध कार्य के प्रमुख और आइएआरसी के वैज्ञानिक फ्रेडी ब्रे के मुताबिक कैंसर उन देशों का एक बाईप्रोडक्ट है जहां शिक्षा, आमदनी और जीवन शैली बेहतर हुई है।

ब्रे और उनके साथी शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2030 तक 184 देशों में कैंसर के करी दो करोड़ 22 लाख नए मामले सामने आएंगे। ये आँकड़ा साल 2008 तक के लिए अनुमानित एक करोड़ 27 लाख से कहीं ज्यादा है।

ज्यादातर विकासशील देशों में लोग उस कैंसर से पीड़ित हैं जो संक्रमण की वजह से होता है। लेकिन भविष्य में इन्हें न सिर्फ इस तरह के कैंसर से निपटना होगा, बल्कि बदलती जीवन शैली की वजह से होने वाले कैंसर से भी लड़ना पड़ेगा।

ब्रे का अनुमान है कि चीन में लोगों में धूम्रपान की बढ़ती लत से अगले कुछ दशकों में स्थिति खराब हो सकती है। कुछ दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर का इलाज बहुत महंगा है, इसलिए गरीब देशों को इससे बचाव के उपायों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

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