आगरा में है देश का एकमात्र पैराट्रूपर ट्रेनिंग स्कूल

देश ही नहीं विदेशी कमांडो भी लेने आते हैं यहां ट्रेनिंग

युद्ध से लेकर रेसक्यू ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है एएफएस

आगरा। 18 सितम्बर 2016 को उरी में हुए आतंकी हमले में जवानों की शहादत का बदला भारत ने 11 दिन बाद 29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों को ढेर कर लिया था। सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले स्पेशल कमांडोज की ट्रेनिंग आगरा के पीटीएस (पैराट्रूपर ट्रेनिंग स्कूल) में ही हुई। इस ट्रेनिंग स्कूल में देश के जाबांज ही नहीं विदेशों के कमांडोज भी ट्रेनिंग लेने आते हैं। बता दें कि 8 अक्टूबर को वायुसेना दिवस मनाया जाएगा। इससे पहले सोमवार को एयरफोर्स द्वारा कराए गए मीडिया भ्रमण के दौरान पीटीएस में ये जानकारी दी गई। इससे पहले कांफ्रेस हॉल में एक डॉक्यूमेंट्री द्वारा आगरा एयरफोर्स स्टेशन की गौरवशाली हिस्ट्री से रूबरू कराया गया।

देश का एकमात्र पैराट्रूपर ट्रेनिंग स्कूल आगरा में

देश का एकमात्र पैराट्रूपर कमांडो की ट्रेनिंग का स्कूल आगरा में है। स्काई हवॉक्स के नाम से फेमस आगरा पीटीएस की शुरुआत एक अगस्त 1949 को हुई। पीटीएस के प्रभारी केबीएस श्यामल ने बताया कि इसमें तीनों सेनाओं के कमांडोज की ट्रेनिंग होती है। एयरफोर्स के गरुण कमांडो, नेवी के मैरीन ड्राइव और पैराट्रूपर की ट्रेनिंग यहां होती है।

तीन भागों में होती है ट्रेनिंग

-पहला इसमें एएन-32 एयरक्राफ्ट से एग्जिट होना

-दूसरा एयरक्राफ्ट से आउट लैन्डिंग करना

-तीसरा एयरक्राफ्ट से लैन्डिंग पैरा फॉल, ये सबसे कठिन होता है

250 किमी। की होती है रफ्तार

एयरक्राफ्ट से पैराट्रूपर जब फॉल करता है, तो उस दौरान एयरक्राफ्ट की रफ्तार 240-250 किमी। की रफ्तार होती है। एयक्रॉफ्ट से एग्जिट होने को केवल 0.7 सेकेन्ड का समय लगता है। एक पैराट्रूपर को फ्री फॉल के समय पैराशूट खोलने को चार सेकेन्ड का समय मिलता है।

आगरा पीटीएस में ये है खास

- पीटीएस में एक वर्ष में कुल 50 हजार पैराट्रूपिंग जंप होती हैं

- एक वर्ष में तकरीबन 13 हजार पैराट्रूपर ट्रेनिंग लेते हैं।

- देश के अलावा श्रीलंका, तजाकिस्तान, बंग्लादेश, यूएस समेत अन्य देशों के पैराट्रूपर भी ट्रेनिंग लेने आते हैं। इसमें एनसीसी के कैंडीडेट को भी ट्रेंड किया जाता है।

5 से 30 हजार फीट की ऊंचाई से होती है जंप

पीटीएस के प्रभारी केबीएस श्यामल के अनुसार हर पैराट्रूपर को चार दिन में और एक जंप रात में लगानी होती है। ग्राउंड टेस्ट में पहले 30 फीट से फ्री फॉल कराकर टेस्ट लिया जाता है। एक बार टेस्ट में डिसक्वालीफाई होने पर दूसरी बार ऐसे पैराट्रूपर को दोबारा चांस नहीं मिलता है। उसे अन्य यूनिट में भेज दिया जाता है। शुरुआत में 12 दिन की ग्राउंड ट्रेनिंग होती है। इसके बाद तीन महीने का प्रीफेशनल कोर्स होता है। इसके बाद कमांडो की स्पेशल ट्रेनिंग होती है। प्रभारी ने बताया कि 5 हजार से 30 हजार फीट की ऊंचाई से जंप करनी होती है। 15 हजार फीट पर ऑक्सीजन की जरूरत होती है। 800 से 1200 मीटर तक बेसिक ट्रेनिंग होती है। बता दें कि पायलट की ट्रेनिंग हैदराबाद ट्रेनिंग सेंटर में होती है।