- मानक की अनदेखी कर शहर में बनाई जा रही बहुमंजिली इमारतें

- आर्किटेक्ट्स ने भूकंपरोधी बिल्डिंग बनाने के दिए टिप्स

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- मानक की अनदेखी कर शहर में बनाई जा रही बहुमंजिली इमारतें

- आर्किटेक्ट्स ने भूकंपरोधी बिल्डिंग बनाने के दिए टिप्स

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों ने बहुमंजिली इमारतों में रहने वाले लोगों की जान सांसत में डाल दी है। उधर इलाहाबाद आर्किटेक्ट एसोसिएशन का यह कहना कि शहर में बन रही बहुमंजिली इमारतों में भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। गवर्नमेंट द्वारा जारी नियमों की अनदेखी और रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट्स की राय नहीं लिए जाने से हजारों लोगों का जीवन दांव पर लग सकता है.एसोसिएशन ने भूकंपरोधी इमारत बनाए जाने के लिए पब्लिक को महत्वपूर्ण टिप्स दिए हैं।

ख्00 वर्गमीटर से कम नहीं होना चाहिए प्लाट

एसोसिएशन का कहना है कि शहर में बड़ी संख्या में छोटे बिल्डर्स बहुमंजिली इमारतों का निर्माण करा रहे हैं। इनमें साफ तौर पर नियमों की अनदेखी की जा रही है। जो इमारतें दो सौ वर्गमीटर से कम प्लाट पर तैयार होती हैं और सेट बैक का ध्यान नहीं रखा जाता। वह भूकंप आने पर खतरा पैदा कर सकती हैं। जबकि, बड़ी बिल्डिंग बनाने से पहले रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट से राय लेना जरूरी होता है। ऐसा करने से भविष्य में एक मजबूर इमारत का निर्माण किया जा सकता है।

बिना आरसीसी भी बन सकते हैं मजबूत मकान

जरूरी नहीं है कि लाखों रुपए खर्च करके आरसीसी तकनीक से मकान बनवाएं जाएं। केवल ईटों पर भी भूकंपरोधी दो से तीन मंजिला मजबूत मकान का निर्माण किया जा सकता है। इसके लिए आर्किटेक्ट की राय से सस्ती और सुलभ तकनीक का इस्तेमाल करना होता है। ऐसे मकान अधिक तीव्रता वाले भूकंप के आने पर क्रेक्स कर सकते हैं लेकिन कोलैप्स नहीं कर सकते। अगर धराशाई भी होते हैं तो रहवासियों को जान बचाकर भागने का समय मिल जाएगा। नेपाल की तरह अचानक मकान गिरने की घटनाएं नहीं होंगी।

भवन निर्माण में इन तरीकों का करें उपयोग

- काउंसिल ऑफ आर्किटेक्ट्स से रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट्स की सेवाएं लेनी चाहिए।

- भवन के विभिन्न भागों को आपस में एक क्षैतिज पट्टी से विभिन्न तलों पर बांधना चाहिए।

- छत हल्की होनी चाहिए, ग्राउंड फ्लोर की हाइट ज्यादा हो।

- भूकंप से पैदा होने वाली मरोड़ को संतुलित करने के लिए शीयरवाल का उपयोग होना चाहिए।

- शार्ट कालम प्रभाव को बचाना चाहिए।

- बीम और कॉलम का मजबूत जोड़ होने से भूकंप के झूलन प्रभाव को रोका जा सकता है।

- प्लिंथ के चारों ओर व फर्श के नीचे महीन बालू देने से कंपन का प्रभाव रोका जा सकता है।

- कंक्रीट में सीमेंट, बालू व मिट्टी का सही अनुपात हो।

- सरिया को बांधने व रखने की तकनीक सही हो।

- मिक्सर व वाइब्रेटर मशीनों का इस्तेमाल जरूरी है।

- उखल बार द्वारा ईटों की दीवारों में आरसीसी कॉलम व बीमा का बंधन होना चाहिए।

लोगों को गुमराह कर रहे झोलाछाप

एसोसिएशन का कहना है कि शहर में केवल ख्भ् रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट हैं, जबकि फील्ड में ख्00 से ख्भ्0 झोलाछाप आर्किटेक्ट काम कर रहे हैं। यह पब्लिक को गुमराह कर असुरक्षित भवनों का निर्माण कराते हैं, जिससे पब्लिक की जान को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि जो मकान शहर में तैयार हो चुके हैं, उन्हें रेकरो फिटिंग के जरिए भूकंपरोधी बनाया जा सकता है। इसके अलावा एनुअल मेंटनेंस कास्ट के जरिए भी पुराने मकानों में आई दरार, कमजोरी आदि को ठीक कराकर उसे मजबूत किया जा सकता है।

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पशुपतिनाथ मंदिर है एग्जाम्पल

आर्किटेक्ट्स ने कहा कि नेपाल में आए जबरदस्त भूकंप के बीच जहां कई बहुमंजिली इमारतें जमीदोंज हो गई, वहीं पशुपतिनाथ भगवान का प्राचीन मंदिर सुरक्षित है। निश्चित तौर पर पुरातन काल में मंदिर के निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। यही कारण है कि बार-बार भूकंप आने के बावजूद मंदिर की इमारत अपनी जगह अडिग है। पत्रकारों से बातचीत के दौरान एसोसिएशन की ओर से आर्किटेक्ट एसबी भार्गव, उमेश कुमार, अनिल कुमार, अनुज विद्यार्थी, बीपी गुप्ता, दिनेश चौबे, जितेंद्र चौबे, मनीष गुजराल, तराना नसीर आदि शामिल रहे।