आगरा। वक्त की हर शै गुलाम होती है। माना कि हम वक्त के तमाम सितम झेलते आए हैं मगर, इसी वक्त ने कोरोना के कहर रूपी सजा देकर बहुत पीड़ा पहुंचाई। तमाम ऐसे थे जो कोरोना से लड़ते-जूझते हुए इस जंग में अपनी जिंदगी हार गए। पता नहीं, कितने घर उजड़ गए। कितनी मांओं की बुढ़ापे की लाठी टूट गई तो मांग का सिंदूर मिट गया। बच्चों के सिर पर पिता का साया उठा, मां की ममता छिन गई। कहर अभी भी रहम नहीं कर रहा है। तमाम अस्पताल में भर्ती हैं। ये कोरोना को हराने के कगार पर हैं। कहते हैं कि वक्त कभी ठहरता नहीं। दो मिनट। वक्त का ये पैमाना भले ही कम प्रतीत होता है मगर, बुधवार को सुबह 9 बजे यही दो दिन का वक्त ठहर गया। ठहरता भी क्यों नहीं? 'दैनिक जागरण' का 'सर्व धर्म प्रार्थना सभा' का आह्वान, अपील, अनुरोध, आग्रह ही कुछ ऐसा था। जिससे समाज का हर तबका किसी न किसी रूप में जुड़ा था। कोई अपने नैतिक फर्ज से बंधा था तो कोई इंसानियत में। किसी ने कोरोना से जंग में अपनी जी जान लगा दी थी तो किसी ने हांफती जिंदगी को नई सांसें दी थीं। प्रार्थना सभा का उद्देश्य था कि हमेशा के लिए बिछुड़ गए अपनों को श्रद्धांजलि अर्पित करें, जो कोरोना से जंग लड़ रहे हैं, उन्हें भगवान जीतने की ताकत दे।

धर्मस्थलों पर विशेष पूजा

दैनिक जागरण की इस प्रार्थना सभा के दौरान चहुंओर संवेदनाओं का सैलाब बह रहा था। सहयोग, समन्वय और सहभागिता का अहसास कराना था। लोगों का दर्द उमड़ रहा था। जिंदगी के सफर में इस पीड़ादायक मोड़ से गुजरी दास्तां विचलित कर रही थी। जो गुजर गया, वो दौर अब न आए, इसी कामना के साथ मंदिरों में विशेष पूजा पाठ हुए, मस्जिदों में नमाज, गुरुद्वारा में विशेष अरदास और गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना। कोरोना काल में पुलिस ने क्या-क्या नहीं देखा और झेला। अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक के हालात फ्लैशबैक में चल रहे थे। सख्त मिजाज वाली पुलिस भी प्रार्थना सभा के मौके पर द्रवित थी। वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालयों, पुलिस लाइन, थाने, चौकियों पर खाकी वर्दीधारी अपनी भावनाएं उड़ेल रहे थे। सड़कों पर वीरानी छाई थी। चौराहों पर भले ही ग्रीन सिग्नल सफर जारी रखने का संकेत दे रहे थे मगर, पहिए वाहन को आगे बढ़ने की इजाजत ही नहीं दे रहे थे। दो मिनट के दौरान वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लगी थीं, मगर रोज की तरह न तो वाहनों के हार्न गूंज रहे थे और न ही वाहन चालकों में जल्द जाने की बेचैनी हो रही थी।

डॉक्टर्स ने भी की सहभागिता

कोरोना के खूनी शिकंजे से तमाम जिंदगियों को बाहर निकालने वाले चिकित्सक भी व्यथित थे। ये वो चिकित्सक थे जिन्होंने संक्रमण के दौर में औरों के लिए अपनी जिंदगी खतरे में डाल दी। सुबह से लेकर रात तक एक-एक मरीज की चिकित्सा में जुटे रहे। ये चिकित्सक अपने रुटीन कार्य से दो मिनट निकाल प्रार्थना कर रहे थे कि यद्यपि पूरे प्रयास के बावजूद कुछ जिंदगियां नहीं बचा पाए मगर, हे प्रभु, ऐसी क्षमता प्रदान करो कि अब कोई सितारा न टूटे। शहर की पाश कालोनियों, गली-मुहल्ला, तिराहे-चौराहे से लेकर गांव-गांव की पगडंडियों पर इन दो मिनट में मानवता के अटूट रिश्ते बना दिए। ये मौन मानो आवाज बुलंद कर रहा था कि जो गुजर गया, उस दौर से अब कभी भी मुलाकात न हो।