- कोविड के चलते एक बार में केवल दस पर्यटकों को ही जाने की अनुमति

- सुरक्षा की दृष्टि से गर्तांगली की रेलिंग से नीचे झांकना प्रतिबंधित

उत्तरकाशी: भारत-चीन सीमा पर उत्तरकाशी जिले की जाड़ गंगा घाटी में स्थित गर्तांगली (सीढ़ीनुमा रास्ता) के पुनरुद्धार का कार्य पूरा होने के बाद बुधवार को इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। पहले दिन कुछ स्थानीय पर्यटक ही गर्तागली के दीदार को पहुंचे। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि एक बार में अधिकतम दस पर्यटकों को ही गर्तागली जाने के निर्देश गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक को दिए गए हैं। गर्तांगली में झुंड बनाकर आवाजाही करना, बैठना, उछलकूद करना व ज्वलनशील पदार्थ ले जाना प्रतिबंधित है। सुरक्षा की दृष्टि से गर्तांगली की रेलिंग से नीचे झांकना भी प्रतिबंधित है।

कराना होगा रजिस्ट्रेशन

जिलाधिकारी ने बताया कि भैरवघाटी के पास चेकपोस्ट बनाकर गर्तांगली क्षेत्र में जाने वाले पर्यटकों का पंजीकरण करने के निर्देश भी पार्क प्रशासन को दिए गए हैं। वहीं, गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारी गर्तांगली की सैर को शुल्क तय करने समेत अन्य पर्यटन सुविधाएं जुटाने में लगे हैं। विदित हो कि समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर एक खड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए इस सीढ़ीनुमा मार्ग से गुजरना बहुत ही रोमांचकारी अनुभव है। 140 मीटर लंबा यह सीढ़ीनुमा मार्ग 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। 1962 से पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से गुलजार रहती थी। दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर सुमला, मंडी व नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे।

मार्च में शुरू हुआ काम

भारत-चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद हो गई। हालांकि, सेना की आवाजाही होती रही। भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बनने के बाद 1975 से सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया। देख-रेख के अभाव में इसकी सीढि़यां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा बाड़ जर्जर होती चली गई। गर्तागली के पुनरुद्धार का कार्य बीते मार्च में शुरू हुआ, लेकिन अप्रैल में बर्फबारी के चलते कार्य की गति धीमी रही। हालांकि, जून में कार्य ने रफ्तार पकड़ी और जुलाई के अंतिम सप्ताह में कार्य पूरा भी हो गया। अब गर्तांगली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है।