-दाराशिकोह ने संस्कृत उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद इसी लाइब्रेरी मे कराया था

-औरंगजेब ने लाइब्रेरी में लगवा दी थी आग, आज चलता है स्कूल

आगरा। 2010 में यूएस प्रेसिडेंट बराक ओबामा जब दिल्ली आए थे, तब उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, उपनिषद के श्लोक का फारसी में अनुवाद करने वाले दाराशिकोह के बारे में जानकारी ली। इसके बाद से ही आगरा स्थित दाराशिकोह की लाइब्रेरी चर्चा में आ गई। उस वक्त के डीएम पंकज कुमार ने लाइब्रेरी को तराशने के आदेश दे दिए। तब इस इमारत पर साइनेज लगा दिया गया। लेकिन, दस साल बाद आज भी ये ऐतिहासिक इमारत बेजार पड़ी हुई है।

नहीं है कोई पुस्तक

आगरा के मोतीगंज में स्थित दारा शिकोह की लाइब्रेरी में एक भी पुस्तक नहीं है। 1903 से इस इमारत में चुंगी चल रही थी। जब शहर में नगर महापालिका का गठन हुआ, इसके बाद ही इस इमारत से चुंगी हटी। फिलहाल इमारत में कन्हई राम बाबूराम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय संचालित हो रहा है। जिस प्रकार से दाराशिकोह के साथ शाहजहां ने बर्ताव किया, लगभग उसी दर्जे का बर्ताव उसकी विरासत के साथ भी अब हो रहा है। हालांकि ये इमारत आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रोटेक्टेड नहीं है लेकिन इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है।

24 हजार पुस्तकों का किया अनुवाद

इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि दाराशिकोह ने 24 हजार पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद इसी लाइब्रेरी में कराया था। इसमें ज्यादातर संस्कृत के उपनिषद शामिल थे। इसके बाद अंग्रेजों ने इस लाइब्रेरी की पुस्तकों को पटना की खुदाबख्स लाइब्रेरी और अलगीढ़ के एएमयू में पहुंचा दिया, लेकिन ये लोग इससे लगातार इंकार करते आए हैं। उन्होंने बताया कि लाइब्रेरी के पिछले हिस्से को क्षतिग्रस्त भी कर दिया गया है। फिलहाल इस इमारत के सरंक्षण के लिए कोई काम नहीं हो रहा है।

औरंगजेब ने लगाई आग

राज किशोर राजे ने बताया कि दाराशिकोह मुगल बादशाह शाहजहां और बेगम मुमताज महल के बड़े पुत्र थे। शाहजहां ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। उन्हें शहजादा बुलंद इकबाल नाम दिया था। शाहजहां के शासनकाल में यह लाइब्रेरी साहित्यक एवं बौद्धिक संपदा का केंद्र थी। दारा फारसी, उर्दू और संस्कृत के विद्वान थे। उन्होंने उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद इसी लाइब्रेरी में कराया था। सत्ता संघर्ष में उनके भाई औरंगजेब ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद लाइब्रेरी में आग लगा दी गई। जलने से बची किताबें बाद में खुदाबख्श लाइब्रेरी पटना, मौलाना अल्ताफ हुसैन होली ओरिएंटल लाइब्रेरी पानीपत और राजा लाइब्रेरी रामपुर में भेज दी गईं।

नहीं दिया कोई ध्यान

पांच साल पहले कम प्रचारित स्मारकों तक सैलानियों को पहुंचाने के लिए इनके प्रचार प्रसार की योजना बनी थी। इनमें दाराशिकोह की लाइब्रेरी भी शामिल थी। योजना के तहत ही यहां बोर्ड लगाया गया लेकिन इसके बाद ध्यान नहीं दिया। प्रचार प्रसार भी नहीं हुआ। सात साल पहले ताज साहित्य उत्सव के तहत यहां एक आयोजन भी हुआ, जिसमें दारा शिकोह के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली गई। लेकिन यह दोबारा नहीं हो सका।

जंग-ए-आजादी का गवाह है अहाता

लाइब्रेरी के बाहर एक अहाता है, जिसे चुंगी मैदान के रूप में जाना जाता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय सरीखे नेताओं की बैठक यहां हुई थी। अंग्रेजो भारत छोड़ो, विदेशी कपड़ों की होली, नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलन इसी मैदान में हुए। वर्तमान में भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को जुलूस फुलट्टी चौक से यहां तक निकाले जाते हैं।