आगरा(ब्यूरो)। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने जीवन पर्यंत किसानों के हित में काम किया तथा जमींदारी उन्मूलन, पटवारी व्यवस्था खत्म करना, भूमि संरक्षण कानून पेश करने जैसे अनेक कार्य किसानों के हित में किए। भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का चिंतन करते हुए चौधरी चरण सिंह ने पाया कि भारत की हजारों वर्ष की गुलामी का मुख्य कारण जातिवाद है।

वित्तीय संस्था बंद करने के लिए थे आदेश
डॉ। अंबेडकर के विचारों का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि अंतर्जातीय विवाह ही जातिवाद को समाप्त करने का एकमात्र उपाय है। वह जातिवाद के सख्त विरोधी थे, 1967 में बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने आदेश पारित कर ऐसी शिक्षण संस्थानों की वित्तीय सहायता बंद कर दी जिनके नाम जातीय आधार पर थे। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर टीजी बायस ने 1987 में अपनी एक पुस्तक में चौधरी चरण सिंह को ऑर्गेनिक इंटेलेक्चुअल कहकर संबोधित किया है, इसका अर्थ है वह व्यक्ति जिसकी कथनी और करनी में फर्क ना हो।


पिछड़े और किसानों के हित में किया संघर्ष
कार्यक्रम में उपस्थित विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ। राजीव कुमार ने कहा कि चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा होने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं महान अर्थशास्त्री भी थे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हिस्सा लेते हुए उन्होंने तीन बार जेल यात्रा की। आजादी के बाद भी वह निरंतर देश के गरीब, पिछड़े और किसानों के हित के लिए संघर्ष करते रहे। अर्थशास्त्र के ऊपर लिखी हुई उनकी पुस्तक इकोनामिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया को आज भी हॉवर्ड बिजनेस स्कूल में अर्थशास्त्र की रेफरेंस बुक के रूप में पढ़ाया जाता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ। श्वेता चौधरी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो। बृजेश रावत ने दिया। कार्यक्रम में प्रो। संजय चौधरी, डॉ। प्रवीन कुमार, डॉ। श्वेता गुप्ता, डॉ। स्वाति माथुर, डॉ। रुचिरा प्रसाद, डॉ। सीमा सिंह, लोकेंद्र चौधरी, अनूप चौधरी, विनय चौधरी, विशालदीप, शिव, गोविंद सिंह भदोरिया आदि की उपस्थिति रही।