आगरा(ब्यूरो)। शहर में भी ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है एसएन मेडिकल कॉलेज में इस बीमारी के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है मरीजों में हर तीसरा बच्चा इस बीमारी का शिकार है। नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडिसिन की एक रिसर्च के मुताबिक अगले 25 सालों में दुनिया की आधी आबादी चश्मा पहन लेगी।

ये आदतें कर रहीं बीमार
स्कूल से बच्चों को होम वर्क में कोई प्रोजेक्ट मिला पेरेंट्स ने उसके लिए स्मार्टफोन दे दिया या फिर बच्चा खाना खाने बैठा उस समय घंटों मोबाइल पर कार्टून देख रहा है। इसके अलावा बच्चे आज कल जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम यूज कर रहे हैं। डिजिटल होते जमाने में बच्चों के लिए अलग-अलग चीजें सीखना आम बात है लेकिन यही लत बच्चों को बीमार कर रही है। कई घंटे तक मोबाइल की स्क्रीन देखते रहने से बच्चों में एपिडेमिक मायोपिया की समस्या बढ़ा दी है। एम्स दिल्ली की एक रिसर्च कहती है बच्चों में मायोपिया के मामले कई गुना तक बढ़ गए हैं। शहर में अलग-अलग आई सेंटर पर आने वाले मरीजों में 30 फीसदी मरीज इसी बीमारी के हैं। वहीँ औसतन हर तीसरा बच्चा जिसकी आंखों में समस्या है वो भी मायोपिया का शिकार है।

क्या है मायोपिया
ये एक ऐसी बीमारी है जो हमारी आंखो की देखने की क्षमता को प्रभावित करती है इसको निकट द्रष्टि दोष भी कहते हैं। इसमें रिफ्लेक्टिव एरर की वजह से दूर की चीज़ें ब्लर होने लगती हैं। समय रहते अगर इसका इलाज नहीं कराया गया तो बाद में काफी प्रभावित कर सकता है। डेवलपिंग स्टेज में ही अधिक स्क्रीन टाइम आंखों को प्रभावित करता है और इस बीमारी का शिकार बन जाते हैं। यही वजह है कि बच्चों में इसके खतरे अधिक बढ़ रहे हैं।

स्मार्ट फोन बन रहा बड़ी वजह
एसएन मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंड प्रोफेसर डॉ। पिंकी वर्मा बताती हैं कि आज कल के बच्चों में इस बीमारी का सबसे अधिक कारण स्मार्ट फोन यूज करना है। स्कूलों में इंडोर गेम की जगह बच्चे स्क्रीन पर गेम खेलते हैं क्लास में पढ़ाई की जगह अब वर्चुअल पढ़ाई हो रही है। इससे बच्चे जरूरत से अधिक स्क्रीन टाइम यूज कर रहे हैं और ये उनको इस बीमारी का शिकार बना रहा है। कहीं न कहीं डिजिटल रीडिंग इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। प्रोफेशनल्स तो घंटों तक स्क्रीन यूज करते हैं वहां ये बीमारी सामान्य है लेकिन जिस तरीके से बच्चों में ये बीमारी बढ़ रही है ये चिंताजनक है।

ये हैं लक्षण
- बच्चा अगर पढ़ते और लिखते समय किताब-कॉपी को बहुत नज़दीक से देखे।
-क्लास रूम में पीछे बैठ कर साफ़ न दिखाई पड़े।
-बच्चा लगातार आंखों में परेशानी बताए।
-दूर की चीज़ें कम दिखाई दें।
- बच्चे का लगातार सिर दर्द की शिकायत करना।
-दूर के ऑब्जेक्ट ब्लर दिखाई पडऩा।

इस तरह करें बचाव
- बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखें।
- पढऩे वाले बच्चों का स्क्रीन टाइम जितना हो सके कम करें।
- आउटडोर एक्टिविटी अधिक कराएं।
-क्रिएटिव स्किल्स बढ़ाएं।
-बच्चे को 24 घंटे में एक बार पार्क में जरूर भेजें पढ़ाई के लिए टेबल चेयर दें।
- अधिक पास से न लिखने-पढऩे दें।
-लगातार रीडिंग या राइटिंग न कराएं
-विटामिन ए सही मात्रा में दें।

क्या कहती है रिपोर्ट
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में 20 छोटे-छोटे बच्चों में मायोपिया की बीमारी 3 गुना तक बढ़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2001 में मायोपिया के 7 फीसदी केस थे। मोबाइल का चलन बढऩे पर 2011 में 13.5 फीसदी केस हो गए और अब 21 फीसदी बच्चे मायोपिया के शिकार हैं।


-संतुलित आहार न लेना और स्मार्ट फोन का जरूरत से अधिक उपयोग बच्चों को इस बीमारी की जद में ला रहा है। मेरे क्लीनिक पर आने वाले मरीजों में हर तीसरा बच्चा एपिडेमिक मायोपिया का शिकार है।
-डॉ। हिमांशु यादव, आई सर्जन

-बच्चों के लिए डिजिटल राइटिंग और डिजिटल रीडिंग बड़ी समस्या बन रहे हैं, बच्चे आउटडोर एक्टिविटी कर ही नहीं रहे हैं इसकी वजह से उनका स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है और बच्चे इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं।
-डॉ। पिंकी वर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर एसएन मेडिकल कॉलेज नेत्र विभाग