आगरा: पिता भूमिका जीवन में अहम होती है। पिता के मार्गदर्शन और संरक्षण में ही व्यक्ति निर्माण होता है। पिता के मार्गदर्शन में बच्चे तरक्की की राह पर आते हैं। लेकिन समाज में कई लोग बेसहारा और भटके हुए लोगों के मार्गदर्शक बन उनके भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं और उनके लिए पिता की भूमिका निभा रहे हैं।

पेरेंट्स की काउंसलिंग की

ऐसे ही समाज सेवी पं। तुलाराम शर्मा अब तक हजारों बच्चों के मार्गदर्शक बन उनके भविष्य को संवार चुके हैं। पं। तुलाराम शर्मा बताते हैं कि वे अब तक 20569 बच्चों को बाल मजदूरी से मुयधारा में जोड़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने बाल मजदूरी करने वाले इन बच्चों को एजुकेशन की ओर लाने के लिए काउंसलिंग की और उनकी पढ़ाई कराने में हेल्प की। उन्होंने कहा इन बच्चों में से कुछ लोग तो अब सरकारी जॉब कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग शिक्षक बन गए हैं।

गुरूजी से मिली प्रेरणा

पं। तुलाराम शर्मा बताते हैं कि उनके गुरू बाबा देवरा ने प्रेरणा दी थी कि वे लोगों को शिक्षित करने का काम करें। इसके बाद वे शिक्षा से जुड़ गए। इसके बाद जब वे केंद्रीय श्रम शिक्षा बोर्ड में दो महीने की ट्रेनिंग के लिए गए थे, तो उन्हें पता चला कि ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाल मजदूरी होती है, तभी से हमने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को एजुकेशन से जोड़ना शुरू कर दिया।

1995 से कर रहे काम

पं। तुलाराम शर्मा ने बाल श्रमिकों को शिक्षित करने के लिए 1995 में उत्तर प्रदेश ग्रामीण श्रमिक शिक्षा संस्थान की स्थापना की। इसके माध्यम से आगरा, एटा, अलीगढ़, रामपुर में 10 ग्रामीण बाल श्रमिक विद्यालय संचालित करके उन्हें एजुकेट किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि प्राइमरी स्तर तक तो हम अपने इन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाते हैं इसके बाद उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज और पहचान के प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन दिला देते हैं। बच्चों को रोजगार से जोड़ने का प्रयास ाी संस्था कर रही है।

आती है चुनौतियां

पं। तुलाराम शर्मा ने बताया कि मजदूरी कर रहे बच्चों को शिक्षा की ओर लाने में ग्राउंड लेवल पर काफी व्यवहारिक दिक्कतें आती हैं। बच्चों के पैरेंट्स की काउंसलिंग करनी पड़ती है। वे कहते हैं कि वे लोग अपनी गरीबी और रोजी रोटी का हवाला देते हैं। वे कहते हैं कि ये बच्चे हमारा हाथ नहीं बंटायेंगे तो काम कैसे चलेगा। लेकिन हम उनकी काउंसलिंग करते हैं और बताते हैं कि ये शिक्षित हो जाएंगे तो भविष्य में कुछ बन जाएंगे। कई चुनौतियों के बाद पैरेंट्स बच्चों को पढ़ाने के लिए राजी होते हैं।

ब्रुश बनाती थीं, अब टेलीकॉलर

बीधा नगर धनौली निवासी अमरीन पुत्री स्व। मजीत खां ने बताया कि मैं पहले ब्रुश का कार्य करती थी। उप्र ग्रामीण मजदूर संगठन के प्रयासों से मेरे माता-पिता को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाया गया। इसके बाद मेरी पढ़ाई यूनियन द्वारा चलाए गए ग्रामीण बाल श्रमिक विद्यालय में शुरू हो गई। यहां मैंने कक्षा 8वीं पास की। इसके बाद यूनियन ने मुझे आगे पढने में सहयोग किया। आज मैं 12वीं पास करने के बाद प्राईवेट कपनी में टेलीकॉलिंग का कार्य कर रही हूं। साथ ही बीए की पढ़ाई भी कर रही हूं। संगठन के प्रयासों से मैं और मेरा परिवार समानजनक जीवन जी रहा है। मैं ाी आगे चलकर ऐसे जरूरतमंद बच्चों की मदद का संकल्प लेती हूं, जिन्हें आावों के चलते शिक्षा हासिल नहीं हो पा रही है।

दरी बुनती थीं, अब हो गई ग्रेजुएट

दयालनगर मुल्ला की प्याउ धनौली निवासी सीमा पुत्री निसार खां ने बताया कि मैं पहले दरी बुनने का कार्य करती थी। उप्र ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष पं। तुलाराम शर्मा द्वारा संचालित ग्रामीण बाल श्रमिक विद्यालय के शिक्षक पिंकी जैंन, संजय शर्मा ने हमारे माता-पिता को शिक्षा के लिए जागरूक किया। उन्होंने मुझे यूनियन द्वारा चलाए जा रहे बाल श्रमिक विद्यालय में प्रवेश दिलाया। इस विद्यालय से मैंने कक्षा 8वीं तक शिक्षा प्राप्त की यूनियन के सहयोग से दूसरे विद्यालय से 12 वीं पास कर बीए की तैयारी के साथ-साथ कप्यूटर का कोर्स कर रही हूं। मेरे पिताजी मजदूर थे और हमारी परिवारिक स्थिति दयनीय थी। आज मैं और मेरा परिवार एक समानजनक स्थिति में है। मजूदरी नासूर नहीं है। किंतु अशिक्षा श्राप है। मेरा प्रयास ाी रहेगा कि आगे चलकर ऐसे बच्चों की मदद करूं।

हम 1995 से बाल मजदूरों को शिक्षा से जोड़ने का काम कर रहे हैं। अब तक 20569 बच्चों को शिक्षा से जोड़ चुके हैं। इनमें कुछ बच्चे तो सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं।

पं। तुलाराम शर्मा, समाजसेवी