-अलग-अलग कलाओं का है संगम

-कोरोनाकाल में लंबे समय बाद निकले घर से बाहर

आगरा। ताजनगरी में इन दिनों शिल्पी मेला लगा हुआ है। इस शिल्पी मेले में देशभर से शिल्पी आए हुए हैं। वे यहां पर आकर अपनी हस्तकला को जनता के बीच लेकर आए हैं। यहां पर कश्मीर की पश्मीना शॉल, खुर्जा की मुगल पोट्टरी, बैंगलुरू का हकोबा चिकन, राजस्थानी शैली का फर्नीचर, भागलपुर से वर्ली, मधुबनी इत्यादि के शिल्पी आए हैं। यहां पर हाथ से बने कई सारे प्रोडक्ट मौजूद हैं।

मुगलकालीन डिजाइन की पोट्टरी भी अवेलेबल

शिल्पी मेले में मुगलकालीन दौर में उपयोग होने वाली पोट्टरी भी अवेलेबल है। ये पोट्टरी खुर्जा में बनती है। यहां से शिल्पी पोट्टरी बनाकर पूरे देशभर में जाकर बेचते हैं। शिल्पी मेले के संयोजक त्रिभुवन बताते हैं कि ये मुगल पोट्टरी चीनी मिट्टी की बनी होती है। इसके लिए बीकानेर से बारीक मिट्टी मंगाई जाती है। इस विशेष मिट्टी से ही ये चीनी मिट्टी की पोट्टरी बनाई जाती है। उन्होंने बताया कि इस मिट्टी को ज्यादा तापमान पर पकाया जाता है। इसके बाद इसकी पॉलिश की जाती है। इस पोट्टरी में डिफरेंट टाइप के आइटम्स अवेलेबल थे। इसमें पोट से लेकर गमले व हैंडवॉश करने के लिए भी पोट अवेलेबल था।

बनारस से आए शिल्पी

बनारस की साड़ी काफी फेमस है। यहां पर कपड़ों पर जरी का काम किया जाता है। शिल्पी मकबूल अहमद बताते हैं कि उन्होंने एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा की शादी के लिए साड़ी बनाई थी। उन्होंने बताया कि लाल रंग की साड़ी में गोल्डन धागों से बुनाई की गई थी। इसी तरह की अन्य साडि़या उनकी स्टॉल पर मौजूद हैं। कुछ जरी वाले दुपट्टे भी उनके यहां पर मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि उनके यहां पर 500 रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक की साडि़यां अवेलेबल हैं।

हकोबा चिकन का गरारा

चिकन का काम भी शिल्पियों की कला है। बैंगलुरू से आए शिल्पी दानिश बताते हैं कि उनके पास हकोबा आर्ट वर्क के प्रोडक्ट मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि हकोबा आर्ट वर्क में नेट के कपड़े पर बुनाई की जाती है। इसे पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है। शिल्पी मेले में हकोबा चिकन का गरारा, दुपट्टा और साडि़यां अवेलेबल हैं। इसमें गरारे की कीमत 2900 रुपये है, हकोबा दुपट्टे की कीमत 950 रुपये हैं। इसके साथ ही पेचवर्क की कॉटन कुर्ती भी अवेलेबल है, इसकी कीमत 650 रुपये से शुरू है।

राजस्थानी शैली का फर्नीचर भी अवेलेबल

शिल्पी मेले में राजस्थानी शैली का फर्नीचर भी अवेलेबल है। यहां पर जोधपुर से आए शैली शीशम की लकड़ी का फर्नीचर लेकर आए हैं। ये फर्नीचर हाथ से बनाया गया है। इसमें हाथ से डिजाइन बनाई गई है। इसके ऊपर टाइल और ब्रास से डिजाइन भी बनाया गया है, जो पूरी तरह से राजस्थानी शैली पर बेस्ड है।

मधुबनी और वर्ली की साडि़यां अवेलेबल

बिहार के भागलपुर से भी यहां पर शिल्पी आए हुए हैं। मधुबनी, वर्ली, ब्लॉक प्रिंटिंग की साडि़यां यहां पर मिल रही हैं। मधुबनी और वर्ली कई साल पुरानी आर्ट वर्क हैं। यहां पर इसकी साडि़यां, शूट, दुपट्टे इत्यादि मिल रहे हैं। कश्मीर से आए शिल्पी मो। अमीन भट पश्मीना से बने प्रोडक्ट लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि पश्मीना काफी बारीक ऊन होता है। ये केवल पश्मीना भेड़ से बनता है। उन्होंने बताया कि पश्मीना भेड़ दुनियां में केवल लद्दाख और आस्ट्रेलिया में ही मिलती है। कश्मीरी आर्टवर्क में एंब्रॉयडरी, वुलन, समरकूल कपड़े अवेलेबल हैं।