आगरा। मकान बनाने का सपना इस कदर भारी पड़ेगा, हमने कभी सोचा भी न था। और लोगों की तरह हमने भी सिर पर छत डालने का ख्वाब देखा। छत सही से सूखी भी नहीं थी कि उसे ढहा दिया गया। कर्जदार हो गए हैं अलग से। जब भी घर में घुसती हूं, तो आंसू नहीं रोक पाती हूंबस यही कहते हुए हेमलता फफक पड़ती हैं। नई आबादी राजनगर निवासी करीब 50 वर्षीय हेमलता को डूडा ने 2 लाख रुपये लौटाने का नोटिस दिया। उनके साथ राधा और विजयरानी को भी नोटिस दिया गया है। उनकी भी कमोवेश यही हालात है।

करीब 25 वर्ष से रह रहे

हेमलता कहती हैं कि हम तो यहां 20 से 25 वर्ष से रह रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना की जानकारी मिली तो इस योजना का लाभ लेने के लिए फॉर्म भर दिया। तारीख याद करते हुए हेमलता बताती हैं कि वर्ष 2020 में जब लॉकडाउन लगा था, उससे ठीक पहले ही योजना के लिए फॉर्म भरा था। परिवार खुश था कि उनके सिर पर भी छत होगी, लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन की नहीं रही। प्रशासन और रेलवे की टीम ने छत ढहा दी। उनकी खुशियों को उजाड़ दिया। साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दिए गए दो लाख की राशि को तीन दिन में वापस करने का नोटिस दिया है।

जैसे-तैसे भर पाते हैं पेट

आंखों में आंसू लिए हेमलता कहती हैं कि पति ट्रॉली रिक्शा चलाते हैं। हफ्ते में एक हजार से 1200 रुपये तक कमाते हैं। परिवार में पांच बेटी और बेटा है। तीन बेटी की शादी हो चुकी है। दो बेटी और बेटा छोटा है। पति जो कमाते हैं किसी तरह परिवार का गुजर बसर हो रहा है। डूडा (डिस्ट्रिक्ट अर्बन डेवलपमेंट एसोसिएशन) की ओर से दो लाख रुपये जमा करने का नोटिस थमा दिया गया है। जो रुपया मिला था उससे हमने सिर पर छत डलवा ली, जो बाद में विभाग ने उजाड़ दी। इस दौरान बाहर का भी करीब 50 हजार रुपया उधार हो गया। अब सिर्फ दीवारें रह गई हैं। पक्की छत का हमारा सपना फिर झोपड़ी में बदल गया। अब हम विभाग को रुपया कहां से लौटाएं।

किसी सपने से कम नहीं छत

हेमलता के पड़ोस में रहने वाली बुजुर्ग राधा की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। राधा कहती हैं भैया हम पढ़े लिखे तो हैं नहीं। योजना के बारे में बताया तो हम राजी हो गए। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले के लिए सिर पर पक्की छत तो किसी सपने से कम नहीं होती। लेकिन, सपने इस कदर धाराशायी होंगे, इस बारे में कभी नहीं सोचा था। पति का कई वर्ष पहले देहांत हो चुका है। एक बेटी और एक बेटा है। बेटी घर में जाकर काम करती है। वहां से 1500 से दो हजार रुपये महीने कमा लेती है। बेटा भी छोटा-मोटा काम कर थोड़ा-बहुत कमा लेता है। इसी से घर चलता है। विभाग की ओर से दो लाख रुपये का नोटिस थमा दिया गया है।

बेटे की एक्टिवा तक रख दी गिरवी

राधा कहती हैं कि जब 50 हजार रुपये की किश्त मिली थी तो उससे मकान का काम करवाना शुरू कर दिया। जून में टीम ने आकर दीवार हटा दीं। नगर निगम के कर्मचारी आए। उन्होंने कहा कि 1.50 लाख रुपये तभी मिलेंगे, जब दीवार खड़ी हो जाएंगी। हमारे पास रुपये नहीं थे। मैंने अपने बेटे की एक्टिवा गिरवी रख दी। इससे 20 हजार रुपये मिले। 15 हजार रुपये किसी से उधार लिए। तब जाकर दीवार खड़ी हो सकीं। फिर 1.50 लाख रुपये की किश्त मिली। छत मिलने की खुशी कुछ ही दिन में दुख में बदल गई। वहीं, विजयरानी के भी चार बच्चे हैं। पति मजदूरी करते हैं। उन्हें भी विभाग ने नोटिस थमा दिया है।

कठघरे में विभाग

इस पूरे प्रकरण में डूडा विभाग कठघरे में है। राजनगर में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों ने बताया कि मार्च में उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन किया। शुरूआती किश्त के रूप में 50 हजार रुपये उन्हें मिले। इससे किया गया निर्माण जून में विभाग ने ढहा दिया। बावजूद इसके भी अप्रैल में फिर से किश्त जारी कर दी गई। इसके लिए निगम कर्मचारी की ओर से उन्हें गुमराह किया। जब पहले ही निर्माण को ढहा दिया गया, तो आखिरकार डूडा विभाग को जानकारी क्यों नहीं हुई। साफ है कि कर्मचारियों की मिलीभगत से पूरे खेल को अंजाम दिया। अब इसकी कीमत गरीबों को चुकानी पड़ रही है।

विभाग की कार्यशैली पर सवाल?

1. सर्वे के दौरान क्यों पता नहीं लगा कि जमीन रेलवे की है?

2. पहले निर्माण ढहाने के बाद भी दूसरी किश्त कैसे जारी हुई?

3. नोटिस में सर्वेयर को बचाकर लोगों पर गुमराह करने का आरोप कितना सही?

4. सर्वे के दौरान जमीन की जांच पड़ताल में आंखें बंद करने के लिए कौन जिम्मेदार?

नई आबादी राज नगर

20 झुग्गी-झोपड़ी

25-30 परिवार

इनको जारी हुई राशि

- राधा

- हेमलता

- विजयरानी

- बबली (इन्होंने वापस कर दी)

प्राइवेट कंपनी के हवाले जिम्मेदारी

आवास योजना में आवेदन के बाद डूडा के लिए प्राइवेट कंपनी मौका-मुआयना करती है। सर्वेक्षण के समय कंपनी के कर्मचारी ने रेलवे भूमि, लाभार्थी का स्वामित्व व भौतिक स्थिति को नजरअंदाज किया।

क्या है मामला?

लोहामंडी क्षेत्र में नार्मल कंपाउंड के पीछे राजनगर की नई आबादी है। यहां करीब 21 झुग्गी-झोपड़ी हैं। जिस जमीन पर झुग्गी-झोपड़ी हैं, रेलवे उसे अपनी बताता है। यहां नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी क्षेत्र) के तहत पक्के मकान निर्माण के लिए पहले 50 हजार और फिर 1.50 लाख, कुल 2-2 लाख की किश्त जारी कर दीं। लाभार्थियों ने मकान बनवाकर छत डलवा ली तो छत गिरा दी।

ये लोग 20-25 वर्ष से यहां रह रहे हैं। प्रधानमंत्री जब सभी के सिर पर छत देने का प्रयास कर रहे हैं, तो रेलवे इनका आशियाना क्यों उजाड़ रही है। डूडा की ओर से इन्हें नोटिस थमा दिया गया है। ये बेचारे कहां से दो लाख रुपये देंगे। डूडा गरीबों को नोटिस दे रहा है और जो इस पूरे भष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें बचा रहा है।

बंटी माहौर, पार्षद, वार्ड 18

20 साल से यहां रह रहे हैं। गरीब लोग हैं। ये बेचारे जैसे-तैसे अपना पेट भर रहे हैं, कहां से दो लाख रुपये लाएंगे। जो रुपया मिला था, उसे मकान बनवाने में लगा दिया।

नरेश पारस, एक्टिविस्ट