प्रियंका सिंह

आगरा: युवक की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा परिवार न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है, इसमें बालक को उसके सुपुर्द करने की मांग की गई है। अदालत ने राजकीय शिशु गृह को बालक के साथ 23 जुलाई को प्रस्तुत होने का आदेश दिया है।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं कोशिश फाउंडेशन के संस्थापक व अध्यक्ष नरेश पारस के अनुसार, वर्ष 2012 में चाइल्ड लाइन को दो वर्षीय बालक के लावारिस हालत में मिलने का पता चला। चाइल्ड लाइन ने बालक को बाल कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत किया। समिति की संस्तुति पर बालक को राजकीय शिशु गृह भेज दिया गया। वर्ष 2012 में ही आठ वर्षीय और एक अन्य बालक को भी दाखिल किया गया। आठ वर्षीय बालक की उम्र दस साल होने पर फिरोजाबाद और 18 वर्ष होने पर लखनऊ स्थित बाल गृह भेज दिया गया। वहां से युवक को एक सामाजिक संस्था अपने साथ बेंगलुरु ले गई। वहां उसे व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया गया। युवक अब बेंगलुरु में एक कंपनी में काम कर रहा है। इधर, दो वर्षीय बालक की उम्र दस साल होने पर फिरोजाबाद राजकीय बालक गृह भेज दिया गया। यहां केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के माध्यम से बालक को गोद देने की प्रक्रिया शुरू कर दी। बालक की मैङ्क्षचग एक विदेशी दंपती के साथ हो गई है।

बेंगलुरु में नौकरी कर रहे युवक को इसकी जानकारी हुई तो बालक का बड़ा भाई होने का दावा करते हुए फिरोजाबाद की बाल कल्याण समिति और डीएम को प्रार्थना पत्र दिया.सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने बताया कि युवक का दावा है कि वह उसका सगा बड़ा भाई है। वह अपना डीएनए कराने को भी तैयार है। बालक को अपनी सिपुर्दगी में लेना चाहता है। पारस के अनुसार, उन्होंने परिवार न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है। जिस पर अदालत ने 23 जुलाई को फिरोजाबाद राजकीय शिशु गृह के अधीक्षक को बालक के साथ पेश होने के आदेश किए हैं।


युवक ने सुनाई ये कहानी
नरेश पारस के अनुसार, युवक ने बताया कि दोनों भाई आगरा किला के पास झुग्गी-झोपड़ी में रहते थे। भीख मांगकर गुजारा कर रहे थे। एक दिन छोटा भाई मां के साथ फोर्ट रेलवे स्टेशन पर भीख मांग रहा था। चाइल्ड लाइन वालों ने उसे राजकीय शिशु गृह में दाखिल कर दिया। वह भाई को खोजते हुए चाइल्ड लाइन कार्यालय गया तो उसे भी शिशु गृह भेज दिया। वहां पर मैंने अपने भाई को पहचान लिया। दोनों आपस में बातचीत करते थे। मगर, उसने शिशु गृह के स्टाफ को यह नहीं बताया कि वह दोनों सगे भाई हैं।


ऐसे पता चलेगा भाई है या कोई और
गोद लेने की प्रक्रिया काफी सरल है। ऑनलाइन आवेदन के बाद उसे बाल गृह भेजा जाता है। जहां आवेदक का सत्यापन होता है। सामाजिक कार्यकर्ता या एजेंसी उनकी पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति का अध्ययन करती है। जिसके आधार पर उनकी रिपोर्ट तैयार कर बाल गृह को दी जाती है। आवेदक को बाल गृह बुलाया जाता है। दंपती या गोद लेने वाले महिला-पुरुष के उपयुक्त मिलने पर उनकी बच्चे से मैङ्क्षचग कराई जाती है। यह मैङ्क्षचग गोद लेने वाले दंपती और बच्चे के बीच इसलिए कराई जाती है, जिससे कि दोनों को एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें। उनकी आदतों और व्यवहार को बखूबी जान सकें। जिससे दंपती को बच्चे के अनुसार खुद को ढालने में मदद मिल सके। वहीं, दूसरी ओर बच्चा भी गोद लेने वाले अभिभावकों से मिलकर घुल-मिल सके। खुद को उनके साथ रहने के लिए तैयार कर सके।