- शव का डीएनए टेस्ट न कराना बन सकता है कानूनी पेंच

- अफसरों की लापरवाही ने दिया उसे ¨जदा निकालने की चर्चाओं को बल

मथुरा: रामवृक्ष ¨जदा हो या वाकई मारा गया हो, मगर ये तय है कि वह भविष्य में पुलिस-प्रशासन को फिर कठघरे में खड़ा कर सकता है। ऑपरेशन जवाहरबाग में प्रशासन की रणनीति फेल हुई, जिसकी वजह से दो अफसर शहीद हो गए। सबक उसके बाद भी नहीं लिया। रामवृक्ष की शिनाख्त को लेकर अफसरों ने ऐसी लापरवाही बरती, जो कानूनी लिहाज से उनके लिए सवाल खड़े कर सकती है। साथ ही उन चर्चाओं को भी बल दे रही है कि रामवृक्ष को ऊपर के दबाव में सुरक्षित निकाल दिया गया।

जवाहरबाग में सबसे ज्यादा काबिल कथित सत्याग्रहियों का सरगना रामवृक्ष यादव ही था। ऑपरेशन में कई लोगों के मारे जाने की पुष्टि पुलिस-प्रशासन ने तुरंत कर दी। मगर, रामवृक्ष की मौत को लेकर आधिकारिक बयान लखनऊ से डीजीपी जावीद अहमद ने ऑपरेशन के तीसरे दिन जारी किया। कहा गया कि रामवृक्ष जवाहरबाग में लगी आग में जलकर मर गया। फिर जेल में उसके साथी को जले शव की फोटो दिखाकर शिनाख्त का आधार बनाया गया। इसके साथ ही हर जगह चर्चा शुरू हो गई थी कि रामवृक्ष ¨जदा हो सकता है। इस तरह शव की शिनाख्त फोटो से नहीं हो सकती। यही नहीं, इस पूरे कांड के सूत्रधार के परिजनों के बारे में पता कर उन्हें शव सुपुर्द करने का सक्रियता से प्रयास नहीं किया गया।

सवाल रामवृक्ष की दिल्ली निवासी बेटी गुडि़या के वकील ने भी उठाया है कि रामवृक्ष बताकर जिस शव की अंत्येष्टि की गई है, वह उसका नहीं था। इसके साथ ही पुलिस-प्रशासन के लिए कानूनी घेरा तैयार हो जाता है। वरिष्ठ अधिवक्ता नंदकिशोर उपमन्यु का कहना है कि जब शव जल जाता है, तब विधिक पुष्टता के लिए इस बात पर जोर दिया जाता है कि ऐसे शव का डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए। इसके लिए उसके किसी भी परिजन को बुलाया जा सकता था। अब यदि अवशेषों का डीएनए टेस्ट कराया जाता है, तो उतने सही परिणाम नहीं आ सकते। श्री उपमन्यु का कहना है कि यदि सीबीआइ जांच हुई तो डीएनए टेस्ट न कराने के सवाल का कोई जवाब प्रशासन के पास न होगा। यदि इस मामले को लेकर कोई न्यायालय गया तो वहां प्रशासन कुछ साबित नहीं कर सकेगा।