- खुफिया एजेंसियों ने हर वो इनपुट दिया, जो सच निकला

- अपनी नाकामी छिपाने को अफसर कर रहे हैं दोषारोपण

 

मथुरा: सत्याग्रही के भेष में वे नक्सली ही थे। माओवादी आदर्शों पर चल रहे थे। असलाह, गोला-बारूद रखना और गुरिल्ला लड़ाई के तौर तरीके उनकी आदत में शुमार था। वे आने वाले समय में जिला मुख्यालय को भी बंधक बना सकते थे और बहुत संभव है कि मथुरा भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शुमार हो जाता। ऐसा होता तो पहाड़ों और जंगलों में अपनी सत्ता चलाने वाले नक्सलियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं होता। खुफिया रिपोर्टों को दरकिनार करना ही जिला व पुलिस प्रशासन को महंगा पड़ गया।

 

स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह के बैनर तले जवाहर बाग को नक्सली ढाई साल तक घेरे रहे। राज्य सरकार को रिपोर्ट करने वाली लोकल इंटेलीजेंस ने इस दौरान समय-समय पर हर वो इनपुट दिया, जो आपरेशन के बाद सामने आ रहा है, लेकिन अफसर अपनी नाकामी छिपाने के लिए अब खुफिया एजेंसियों पर ही दोषारोपण कर रहे हैं। तमाम खुफिया रिपोर्टों में कथित सत्याग्रहियों के लिए नक्सली शब्द का प्रयोग करने से बचते हुए उनके बारे में पूरा फीड बैक दिया गया था।

 

रिपोर्टों में यहां तक कहा गया था इनके पास स्वयं के लाइसेंसी हथियार तो हैं ही, ये लोग अवध असलाह, विस्फोटक सामग्री भी इकट्ठा कर रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा जबरदस्ती जवाहर बाग खाली कराए जाने के दौरान इनका प्रयोग किए जाने की प्रबल संभावना है। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि इस दौरान वे अपने लोगों और जवाहर बाग कालोनी समेत आसपास के लोगों को इन हथियारों से घायल कर दें अथवा मार दें और बाद में इसका पुलिस पर बर्बरता का आरोप मढ़ दें।

 

लोकल इंटेलीजेंस की एक रिपोर्ट में आगाह किया गया था कि हमेशा असलाह व लाठी-डंडे से लैस रहने वाले ये लोग मरने-मारने पर उतारू रहते हैं और परिसर खाली कराए जाने के दौरान जन हानि की भी आशंका है। मंडलायुक्त ने भी इन्हीं रिपोर्ट के आधार पर इस प्रकरण को बेहद गंभीर माना था। खुफिया एजेंसियों ने इनके किसी छिपे एजेंडा की ओर भी इशारा किया था। यह इशारा जिला मुख्यालय को बंधक बनाने और उसके बाद मथुरा को अपने प्रभाव क्षेत्र लेने के बारे में भी था। खुफिया एजेंसियों ने बाग के भीतर चलने वाले इनके क्रिया-कलाप के फोटोग्राफ्स तक गृह सचिव (गोपन) को भेजे थे।

 

जैसा कि आपरेशन के दौरान हुआ, उसकी आशंका खुफिया एजेंसियों ने पहले ही जता दी थी। एक रिपोर्ट में आगाह किया गया था कि वर्तमान में जवाहर बाग में रह रहे कथित सत्याग्रही पुलिस के बढ़ रहे मूवमेंट से अत्यधिक उत्तेजित हैं। प्रशासन से लड़ने-झगड़ने को तैयार हैं। यदि इनके खिलाफ पर्याप्त संख्या में पुलिस बल लेकर कार्यवाही नहीं की गयी तो अपर्याप्त पुलिस बल के साथ कोई भी घटना घटित हो सकती है। इसी रिपोर्ट में सुझाव भी दिया गया था कि जवाहर बाग को खाली कराने के लिए बाग के चारों तरफ से घेराबंदी कर दबाव बनाने की आवश्यकता होगी और भारी पुलिस बल की जरूरत पड़ेगी। इसके बावजूद डीएम और एसएसपी ने इन आशंकाओं को गंभीरता से नहीं लिया और उसके दो अफसरों को अपनी जान देनी पड़ी।