आगरा। लोहामंडी स्थित झिंगा मोती पुल निवासी महेंद्र सिंह बताते हैैं कि उन्हें यह कारोबार करते हुए 30 साल से अधिक हो चुके हैैं। उनसे पहले उनके पिता मूर्ति बनाने का काम करते थे। इससे पहले भी यह कारोबार यहां पर होता था। महेंद्र ने कहा कि 70 साल से अधिक समय से आगरा में मूर्तियां बनाने का कारोबार हो रहा है। यहां से देशभर के व्यापारी मूर्तियां खरीदने के लिए आते हैैं। उन्होंने कहा कि छिंगा मोती पुल पर ही 400 से 500 परिवार इस कार्य को करते हैैं। इसके साथ ही आगरा में लगभग पांच से दस हजार घरों में यह काम होता है।

घर-घर में होता है काम
लोहामंडी स्थित बर्फ वाली गली निवासी उर्मिला बताती हैैं कि पूरे साल घर-घर में मूर्तियां बनाई जाती हैैं। लोग अपनी जेब से पैसा लगाकर यह मूर्तियां बनाते हैैं और रक्षाबंधन के बाद उनके पास देशभर से ग्राहक आना शुरू हो जाते हैैं। वे बताती हैैं कि हम पूरे साल काम नहीं करते हैैं। होली के बाद से इस काम को करना शुरू कर देते हैैं। घर में बच्चे और वह खुद मूर्तियां बनाती हैैं। इससे दीपावली आते-आते ढाई से तीन लाख रुपए का कारोबार हो जाता है।

बदल गया मूर्तियों का स्वरूप
अन्य कारीगर विजय सिंह बताते हैैं वह इस पेशे में 25 साल से हैैं। वह बताते हैैं कि पहले मूर्तियां मिट्टïी की ही बनती थीं और इन पर हाथ से वाटर कलर किया जाता था। तब फिनिशिंग भी इतनी अच्छी नहीं होती थी लेकिन अब मूर्तियों का मैटेरियल बदल गया है। अब मूर्तियां पीओपी से बनती हैैं और इन पर मशीन से ऑयल पेंट होता है। आंखे इत्यादि हाथ से बनाई जाती हैैं। इन पर वार्निश की जाती है। इससे मूर्तियों की फिनिशिंग बेहतर हो गई है। अब मूर्तियां पहले से ज्यादा सुंदर लगती हैैं। वह बताते हैैं कि पीओपी की मूर्तियां मिट्टïी की मूर्ति की अपेक्षा हमें ज्यादा आमदनी भी देती हैैं।

महंगे हो गए उत्पाद
महेंद्र सिंह बताते हैैं कि अब महंगाई बढ़ गई है। इस कारण अब लागत भी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। लेकिन इसके मुकाबले मूर्तियों के रेट नहीं बढ़े हैैं। वह बताते हैैं कि पहले पीओपी का पैकेट 200 रुपए का आ जाता था। लेकिन आज इसकी कीमत पांच से छह गुना तक बढ़ गई है। ऐसे ही वार्निश का हाल है। वह भी महंगी हो गई है। पेंट भी महंगा हो गया है। महेंद्र बताते हैैं कि यह कारोबार 70 व 80 के दशक में सबसे अच्छा था। तब हम लागत की अपेक्षा मोटा मुनाफा कमाते थे।

आगरा को मिल सकती है नई पहचान
देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने का कारोबार अभी आगरा में असंगठित तौर पर घर-घर में ही होता है। यहां पर लोग अपने घर में मूर्तियां बनाते हैैं और बाहर के व्यापारियों को बेचते हैैं। यदि इस कारोबार को संगठित किया जाए या बढ़ावा दिया जाए तो आगरा को एक नए कारोबार की पहचान मिल सकती है।


हम सालभर मेहनत करते हैैं और मूर्तियां बनाते हैैं। रक्षाबंधन के बाद देशभर से व्यापारी हमसे मूर्तियां खरीदने के लिए आते हैैं।
- उर्मिला, मूर्तिकार

आगरा में 70 से अधिक साल से मूर्ति बनाने का कारोबार चल रहा है। हम सिर्फ देवी-देवाताओं की मूर्तियां ही बनाते हैैं। आगरा के साथ-साथ यह अन्य राज्यों में भी सप्लाई होती है।
- विजय सिंह, मूर्ति कारोबार

लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को पहले मिट्टïी से बनाया जाता था। अब यह पीओपी से बनती हैैं। इन पर अब मशीन से स्प्रे होता है। अब इनकी फिनिशिंग पहले से बेहतर है।
- महेंद्र सिंह, मूर्तिकार

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यहां बनती हैं मूर्तियां
-छिंगा मोती पुल लोहामंडी
-प्रेम नगर बोदला
-घटिया
-रायभा बिचपुरी