आगरा(ब्यूरो)। अनफिट स्कूली बसें दौड़ती दिखाई देती हैं, तो टेंपो और ई-रिक्शा में क्षमता से अधिक बच्चे बैठे होते हैं। नियमों की अनदेखी अलग से की जाती है। स्कूली बच्चे भी दो पहिया वाहन से आते-जाते दिखाई देते हैं। घर से शुरू हुई लापरवाही सड़क और स्कूल के भीतर तक दिखाई देती है। यानी ना तो पेरेंट्स ध्यान दे रहे हैं और ना ही पुलिस सख्ती कर रही है। स्कूल की ओर से कोई भी ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं।

स्कूल बस की चपेट में आने से एक बच्चे की मौत
बाह: बाह के बटेश्वर में बच्चों को लेकर स्कूल जा रही बस ने इकलौते बेटे को कुचल देने से उसकी घटना स्थल पर ही मौत हो गई। पिता की तहरीर पर पुलिस ने मामला दर्ज कर बस को कब्जे में लिया है। बटेश्वर के मोहल्ला जग्य निवासी हरवीर की पत्नी सर्वेश देवी मंगलवार सुबह 8 बजे के करीब अपने दो साल के बेटे रुस्तम को दबा दिलाने पैदल ले जा रही थी। शौरी पुर जाने वाले रास्ते की मोड पर शौरी पुर की ओर से बच्चों को लेकर आ रही बीएस शिक्षा निकेतन की बस ने रुस्तम को कुचल दिया। इससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। टक्कर लगते ही चालक गाड़ी छोड़ भाग गया। स्वजन व ग्रामीणों को जानकारी होने पर वे घटना स्थल पर पहुंच गए। और आक्रोशित लोगों ने हंगामा करते हुई बस में तोड़ फोड़ कर दी। सूचना मिलते ही बटेश्वर चौकी की पुलिस मौके पर पहुंची। उन्होंने ग्रामीणों को समझाया। हरवीर ने गाड़ी चालक मुन्नेश यादव व के खिलाफ बाह थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। मृतक रुस्तम हरवीर का इकलौता बेटा बताया गया है।

लापरवाही की घर से हो रही शुरुआत
वाहन चालक लापरवाही की शुरूआत कर से कर रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चे, दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल करते हैं, जो बिना हेलमेट के सड़कों पर दौड़ते देखे जा सकते हैं। स्कूल की ओर से ऐसे बच्चों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है, ताकि वे हेलमेट या कार में सीट बेल्ट का प्रयोग करेंं, रोड पर ट्रैफिक पुलिस की ओर से कोई खास सख्ती नहीं की जाती है।

नए कागज पर पुरानी बसें
आगरा में सीबीएसई स्कूल की संख्या 175 से अधिक हैं। आईसीएसई से संचालित 12 स्कूल हैं। सीबीएसई के करीब 120 स्कूलों में ट्रांसपोर्ट की सुविधा है। स्कूलों में सबसे अधिक समस्या आउट सोर्स की बसों को लेकर रहती हैं। इसमें कई ट्रांसपोर्टर कागज तो नए तैयार करते हैं, लेकिन उनकी पुरानी बसें स्कूलों में चलती रहती हैं। वहीं, पेरेंट्स जिन वाहनों को प्रबंध कर भेजते हैं उन वाहनों के फिटनेस को लेकर भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

पेरेंट्स की नहीं की जाती सुनवाई
शहर में 15 साल पुराने वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है, ऐसे में देहात के इलाकों में पुरानी स्कूल वेन दौड़ रहीं हैं। पुलिस की सख्ती के बाद भी बच्चों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। कई स्कूलों में तो जुगाड़ के ऑटो भी दौड़ रहे हैं। इनको बंद हुए सालों हो चुके हैं। इस पर ना तो पुलिस का ही ध्यान है और ना ही स्कूल उनको रोक रहा है। इसको लेकर कई बार पेरेंट्स शिकायत करते हैं, तो उसे सुना नहीं जाता है।

इन चार तरह से बच्चे जाते हैं स्कूल
-स्कूल की खुद की बस, जिसे उनके कंडक्टर और ड्राइवर चलाते हैं। इसमें ज्यादातर नई बसें हैं। जिनकी फिटनेस ठीक है।

-ट्रांसपोर्टर से आउट सोर्स पर बसें चलती हैं। इसमें बसों के फिटनेस को लेकर शिकायत रहती है।

-पेरेंट्स खुद ड्रॉप करते हैं या फिर आटो, ई-रिक्शा या अन्य वाहन करके स्कूल भेजते हैं। इसमें भी वाहन चालकों मर्जी रहती है।

-बच्चे खुद साइकिल या बाइक से स्कूल जाते हैं। लेकिन हेलमेट का प्रयोग करने में लापरवाही बरतते हैं।


स्कूल बस के संचालन में ये है जरूरी
-बस में कैमरा होना चाहिए।
-जीपीआरएस ट्रैकर।
-फायर सेफ्टी उपकरण
-वाहन में मेडिकल किट
-बस के परमिट होने चाहिए
-बस की फिटनेस सर्टिफिकेट
-प्रदूषण वैधता प्रमाणपत्र।
-व्हीकल ड्राइविंग लाइसेंस
-एक पुरुष और महिला हेल्पर होना चाहिए
-साइड की तीन पाइप, जिससे बच्चा सिर बाहर नहीं निकाल पाए।
-वाहन में सीट बेल्ट की व्यवस्था होनी चाहिए।
-बस के पीछे स्कूल के नाम और नंबर लिखे होने चाहिए।
-स्पीड गर्वनर होना चाहिए, जो ओवर स्पीड नहीं होने देता है।
-बस की वैधता होनी चाहिए।
-ड्राइवर का पुलिस वेरिफिकेशन हो।