आगरा। आगरा की हवा बीते एक दशक में लगातार खराब होती जा रही है। साल के 365 दिनों में 200 दिनों तक एयर क्वालिटी वेरी पुअर या सीवियर लेवल पर रहती है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। एक्सपट्र्स की मानें तो हवा के इतने खराब लेवल पर घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहिए, अन्यथा उसे कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के डाटा के अनुसार आगरा के बोदला क्षेत्र की एक्यूआई 2013 में 184 थी। यह हर साल लगातार बढ़ती जा रही हैं। सीपीसीबी के डेटा के अनुसार 2019 में ये 255 तक पहुंच गई। इसी प्रकार से नुनिहाई क्षेत्र में 2013 में एक्यूआई 216 थी और ये 2019 में बढ़कर 300 पार हो गई। नवंबर 2021 में तो आगरा की एक्यूआई 500 तक पहुंच गई थी। पर्यावरणविद आगरा की दूषित होती हवा के प्रति लगातार चिंता जता रहे हैं।


कोरोनाकाल में स्वच्छ हवा और जरूरी
पर्यावरण एक्टिविस्ट ब्रज खंडेलवाल बताते हैं कि स्वच्छ हवा में सांस लेना हमारा अधिकार है। ये हमें मिलना जरूरी है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आगरा की हवा के लिए 1993 में ही चिंता जाहिर करना शुरू कर दिया था। ताजमहल के कारण यहां पर ताज ट्राइपेजियम जोन बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य है कि टीटीजेड के मानकों को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है और आगरा में पॉल्यूशन का स्तर साल दर साल बढ़ता जा रहा है। पॉलिटिकल लीडर्स को आगरा के पॉल्यूशन को भी चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कोविड काल में तो इसकी जरूरत और ज्यादा बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि दुनियाभर में कोरोना वायरस का ट्रेंड देखें तो इसने उन जगहों पर ज्यादा असर दिखाया है जहां पर विकास के नाम पर अंधाधुंध प्रकृति का दोहन किया गया है। चाहे अमेरिका हो, चीन हो या यूरोप हो, भारत में दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों को इसने सबसे ज्यादा इफेक्ट किया है। उन्होंने बताया कि हमारे खाने से ज्यादा इस बात का फर्क पड़ता है कि हम कैसी हवा में सांस ले रहे हैं। यदि हम प्राकृतिक और स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं तो हमारे शरीर में ज्यादा इम्युनिटी होती है। रोगों से लडऩे की क्षमता भी बढ़ती है।

10 साल में बढ़े सांस व अस्थमा के पेशेंट्स
आगरा में बीते 10 साल के भीतर एयर पॉल्यूशन का लेवल काफी तेजी से बढ़ा है। लगातार खराब हवा में सांस लेने के कारण आगरा के लोगों की इम्युनिटी प्रभावित हुई है। सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ। संतोष कुमार बताते हैं कि हवा में विषैले तत्व और धूल के कणों के बढऩे से लोगों को एलर्जी की समस्या हो सकती है। लंबे समय तक ऐसी समस्या होने से ये सीओपीडी में बदल जाती है। इसके बाद सांस और अस्थमा की समस्या होने लगती है। उन्होंने बताया कि बीते एक दशक में शहर में सीओपीडी के मरीजों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। उन्होंने बताया कि एयर पॉल्यूशन से केवल फेंफड़े ही प्रभावित नहीं होते हैं, बल्कि हार्ट, पेट संबंधी रोग भी बढ़ते हैं।


वर्जन
स्वच्छ हवा में सांस लेने का हक हम सभी की प्राथमिकता है। सरकार को एयर पॉल्यूशन को लेकर कड़े और प्रभावी कदम उठाने चाहिए। पॉलिटिकल लीडर्स को पॉल्यूशन मुक्त शहर का वादा करना चाहिए।
-देवाशीष भट्टाचार्य, पर्यावरण एक्टिविस्ट

आगरा में पॉल्यूशन का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि आगरा में ताजमहल के कारण यहां पर पॉल्यूशन को खत्म करने के लिए टीटीजेड भी बनाया गया। इसके बावजूद एयर पॉल्यूशन को लेकर कोई काम नहीं हो रहा है।
-ब्रज खंडेलवाल, पर्यावरणविद

हवा में विषैले और धूल के कणों के बढऩे से सांस लेने तकलीफ होने लगती है। कुछ लोगों को इससे एलर्जी होने लगती है। इस प्रकार के पेशेंट्स की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। आगरा में बीते कुछ साल में एलर्जी और सांस के पेशेंट्स की संख्या बढ़ी है। -डॉ। संतोष कुमार, विभागाध्यक्ष, टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट, एसएनएमसी

आगरा में हर साल बढ़ रहा एयर पॉल्यूशन

वर्ष बोदला नुनिहाई

2013, 184.1, 216.4

2014, 190.8, 229.1

2015, 182, 218

2016, 170.1, 229.8

2017, 174.4, 220

2018, 195.84, 241.67

2019, 255, 300
नोट- एक्यूआई का वार्षिक मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.
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पिछले वर्षों में नवंबर में एक्यूआई का आंकड़ा
साल एक्यूआई
2016- 441
2017- 455
2018- 395
2019-157
2020- 324
2021- 401
नोट- एक्यूआई के आंकड़े सीपीसीबी की वेबसाइट से लिए गए हैैं। बता दें, वर्ष में नवंबर में एक्यूआई लेवल सबसे अधिक रहता है.