-रिटायर्ड फौजी नरसिंग पाल की निशानदेही पर पुलिस तलाश रही आरोपी

-मृतक रामवीर के अलावा रिटायर्ड फौजी ने भी दी थी नौकरी के लिए रिश्वत

आगरा: ट्रिपल मर्डर के खुलासे के साथ ही शहर में संचालित भर्ती गैंग की गतिविधियों से भी परदा हट गया। पुलिस के रडार पर अब भर्ती गैंग का सरगना और सदस्य हैं। बेरोजगारों को शिकार बना रहे इस गैंग की जड़ें शहर के पिछड़े इलाकों के अलावा शिक्षण संस्थानों के आसपास हैं। बेरोजगारी से उबरने के लिए शार्टकट ने ही इस ट्रिपल मर्डर की पटकथा रची थी।

रिटायर्ड फौजी और हत्यारोपी ने भी दी थी रकम

पुलिस की जांच में निकलकर आया कि मृतक रामवीर ने बेटे बबलू की रेलवे में टीटी के पद पर नौकरी के नाम पर 12 लाख रुपए रिटायर्ड फौजी नरसिंह पाल के माध्यम से पीएसी के रिटायर्ड सिपाही शकील को दिए थे। फतेहाबाद रोड निवासी शकील अभी पुलिस के हाथ नहीं आया है। पुलिस को पता चला है कि यह गैंग युवाओं को रेलवे में नौकरी के नाम पर ठगता है। बबलू के साथ-साथ हत्यारोपी सुभाष और फौजी के बेटे राहुल ने भी नौकरी के लिए शकील को रुपए दिए थे। तीनों को कोलकाता भेजा गया। वहां दो माह रुकने के बाद वे लौट आए, नौकरी नहीं लगी।

रकम को लेकर मची थी अफरा-तफरी

मृतक बबलू, हत्यारोपी सुभाष का बेटा और रिटायर्ड फौजी नरसिंह पाल का बेटा राहुल जैसे ही बिना नौकरी के आगरा वापस लौटे वैसे ही अफरा-तफरी मच गई। सरकारी नौकरी के ख्वाब जमींदोज हुए तो सभी ने रिश्वत की रकम की वसूली के लिए एकदूसरे पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। पुलिस तफ्तीश में निकलकर आया कि रिटायर्ड फौजी का कनेक्शन नौकरी का झांसा देने वाले रिटायर्ड पीएसी के सिपाही शकील से था। शकील के ही बहकावे में आकर रिटायर्ड फौजी ने मृतक रामवीर से 12 लाख रुपए लिए थे। हत्यारोपी सुभाष को भी नरसिंह पाल से मिलाने का काम भी मृतक रामवीर ने किया था। क्योंकि रामवीर के पास 12 लाख रुपए नहीं थे। जिसके बाद उसने हत्यारोपी सुभाष से 3 लाख रुपए ब्याज पर उधार लिए थे। यह रकम ही सनसनीखेज हत्याकांड की वजह बनी।

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भर्ती गैंग के तार इस हत्याकांड से जुड़े हैं। ऐसे में पुलिस की एक टीम को इस भर्ती गैंग के खुलासे के लिए लगाया गया है। गैंग का पर्दाफाश कर जल्द ही आरोपियों की धरपकड़ की जाएगी। सभी एंगल पर पुलिस जांच कर रही है।

-बबलू कुमार, एसएसपी, आगरा।

500 रुपए के लिए हत्याकांड में शामिल हो गया वकील

आगरा: ट्रिपल मर्डर का आरोपी वकील महज 500 रुपए के लिए इस हत्याकांड का साझीदार बन गया। मूल रूप से सादाबाद के पटलौनी गांव का रहने वाले वकील ने बताया कि लॉकडाउन के बाद उसके खाने के भी लाले पड़ गए थे। इसलिए सुभाष के कहने पर वह वारदात में शामिल हो गया, इसके लिए उसे मात्र 500 रुपए मिले थे, उसे कोई पछतावा भी नहीं है। मानेसर में नौकरी करने वाले उसके भाई गजेंद्र की भी लॉकडाउन में नौकरी चली गई, वह भी घटना में शामिल हो गया।