आगरा(ब्यूरो)। फिरोजाबाद के टूंडला में ऐसा ही एक मामला सामने आया जिसमें मोबाइल गेम खेलने से इंकार करने पर किशोर ने फांसी लगा ली। मोबाइल फोन के साथ भी यही स्थिति है। बच्चों में समय के साथ भयानक रूप लेती जा रही है। इतनी भयानक कि जिस उम्र के बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है वह हिंसक और आक्रामक बन रहे हैं।

खुद को समय देने के चक्कर में थमा रहे मोबाइल
शहर के दयालबाग में नाती ने दादा का एटीएम कार्ड यूज कर वीडियो गेम खेलकर अकाउंट खाली कर दिया था, उनके अकाउंट में छह लाख रुपए थे। वहीं लखनऊ में पबजी मोबाइल गेम खेलने से रोकने के कारण 14 साल के बच्चे ने अपनी मां की ही हत्या कर दी। न सिर्फ हत्या की बल्कि शव को दो दिनों तक घर में छिपाकर भी रखा। इस तरह की आपराधिक मानसिकता किसी बच्चे में कैसे विकसित हो सकती है, यह एक गंभीर बात है। फिरोजाबाद के टूंडला में मां ने दस साल की बच्ची को गेम खेलने के लिए मोबाइल दिया, इससे नाराज 13 साल के किशोर ने मां की साड़ी से फांसी लगा ली। इसी तरह के दर्जन भर से अधिक मामले देखने को मिल जाएंगे। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इस तरह की मानसिकता के पीछे का कारण क्या है, क्या खुद के लिए थोड़ा समय निकालने के चक्कर में हम बच्चों के हाथ में थमा रहे उनका भविष्य बर्बाद करने की चाबी।

गेम में कार्टून को किल करने पर मिलता है रिवार्ड
मोबाइल गेम्स, विशेषकर पबजी की लत ने बच्चों के स्वभाव को आपराधिक और गुस्सैल बना दिया है। ऑनलाइन गेमिंग के कारण जानलेवा प्रवृत्ति के कई मामले देखने के मिले हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के एचओडी डॉ। विशाल सिन्हां बताते हैं कि बच्चों मेें ऑनलाइन गेमिंग की लत लगातार बढ़ती जा रही है। लेटेस्ट ऑनलाइन गेम वन प्लेयर, थ्री डी, आई-पेड, गेंद, टचस्क्रीन, परचेस ईविक्पमेंट अपग्रेड का बच्चों में क्रेज है, ये गेम बच्चों के व्यवहार को हिंसक बना रहे हैं। बच्चों को गेम में दस बार कार्टून को किल करने पर रिवार्ड मिलता है, इससे बच्चों की सोच हिंसक हो रही है। लगातार गेम खेलने से बच्चों का व्यवहार भी उसी तरह का हो जाता है। वे समाज में भी हिंसक बातों को पसंद कर इंटरेस्ट लेते हैं। ये उनके भविष्य के लिए भी खतरनाक है। एसएन मेडिकल कॉलेज में रोजाना इस तरह के केस सामने आ रहे हैं।

अचानक गेम खेलने से रोकना होगा खतरनाक
एचओडी एसएन मेडिकल कॉलेज डॉ। विशाल सिन्हां ने बताया कि मोबाइल गेम्स के कारण बच्चों में आक्रामक व्यवहार बढ़ रहा है। बालपन-युवावस्था में हम जिस तरह की चीजों को अधिक देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका दिमाग पर सीधा असर होता है। पबजी गेम्स के साथ भी यही मामला है। ये लत का कारण बन जाते हैं और एडिक्शन के कोर में व्यावहारिक परिवर्तन प्रमुख होता है। अगर घरवाले इसे अचानक से छुड़ाने की कोशिश करते हैं, तो यहां विड्रॉल की स्थिति में आ जाती है, उसी तरह जैसे अल्कोहल विड्रॉल होता है जिसमें अगर किसी शराबी से अचानक शराब छुड़वाई जाए तो उसके व्यवहार में आक्रामक परिवर्तन हो सकता है। यही कारण है कि अचानक गेम्स खेलने से रोकना खतरनाक है।

गेम्स में टास्क पूरा करने पर रहता है फोकस
एचओडी डॉ। विशाल सिन्हा मनोचिकित्सक कहते हैं कि बच्चे में ऑब्जर्वेशन लर्निंग की क्षमता अधिक होती है। बच्चे स्वाभाविक रूप से किसी चीज को समझने से ज्यादा चीजों को देखकर सीखने में अधिक निपुणता वाले होते हैं। ऐसे में अगर बच्चे का समय मोबाइल फोन पर अधिक बीत रहा है, साथ ही वह पबजी जैसे गेम्स पर अधिक समय बिता रहे हैं तो इसका सीधा असर मस्तिष्क को प्रभावित करता है।

मोबाइल-वीडियो गेम्स का नेचर बच्चों को और प्रभावित करता है क्योंकि गेम खेलते समय आपका पूरा ध्यान टास्क पर होता है। ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसात्मक, मार-पीट, गोली-बारी वाली है तो यह बच्चे के दिमाग को उसी के अनुरूप परिवर्तित करने लगती है।

रोजाना तीन से पांच घंटे दे रहे मोबाइल को
मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र में मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद से काउंसलिंग के लिए बच्चे आते हैं। पिछले तीन महीने में 32 मामले ऐसे सामने आए हैं जिसमें बच्चों को मोबाइल गेम खेलने से रोकने पर वो अलग से व्यवहार करते हैं। इसमें आठ साल से 14 वर्ष के किशोर की संख्या अधिक है। पेरेंट्स से पूछने पर पता चला कि वे रोजाना तीन से चार घंटे मोबाइल फोन का ऑनलाइन गेमिग में इस्तेमाल कर रहे हैं। रोज घंटों मोबाइल में इस तरह के गेम्स पर समय बिताने से बच्चों में इसकी लत लग जाती है। लत का मतलब, उस गेम के बिना वह रह नहीं पाते, इस दौरान जो भी उन्हें उस गेम से दूर करने की कोशिश कर रहा होता है, वह बच्चों का दुश्मन बन जाता है। इस तरह के विकारों से बच्चों को मुक्त रखने के लिए पेरेंट्स को बच्चों की मॉनिटरिंग करते रहना जरूरी हो जाता है।

हर घर में बच्चों की स्थिति
बच्चों की मोबाइल फोन की लत को लेकर हर घर में यही स्थिति है। कुछ पेरेंट्स अपनी कंप्लेन लेकर मनोचिकित्सक या काउंसलिंग के लिए पहुंच रहे हैं। वहीं, ऐसे पेरेंट्स की भी संख्या अधिक है जो इस स्थिति से जूझ रहे हैं। बच्चे मोबाइल फोन के आदी हो चुके हैं, पेरेंट्स के रोकने पर वे अभी हिंसक होने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन होमवर्क नहीं करना, कहना नहीं मानना, खाना नहीं खाना जैसा व्यवहार करते हैं। मंडलीय मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में वर्ष 2023 में तीन महीने के भीतर 20 से 22 मामले आते थे, जो वर्तमान में वर्ष 2024 के तीन महीने में 32 हैं। वहीं एसएमएमसी में पिछले तीन महीने में एक से दो केस रोजाना आते हैं, जिनकी संख्या 50 से 55 है।

बढ़ती शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याएं
बच्चों के मोबाइल फोन पर अधिक समय बिताने की आदत को स्वास्थ्य विशेषज्ञ कई प्रकार से हानिकारक मानते हैं। मोबाइल फोन पर बहुत अधिक समय बिताने के कारण बच्चों में शारीरिक निष्क्रियता बढ़ती जाती है, जो मोटापा और अन्य आंतरिक स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को बढ़ाती है। इसके अलावा मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से मस्तिष्क और शरीर के अन्य भागों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।


मोबाइल गेम के कारण बच्चों में आक्रामक व्यवहार बढ़ रहा है। बचपन से युवावस्था में हम जिस तरह की चीजों का अधिक देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका दिमाग पर सीधा असर होता है। पबजी गेम्स के साथ भी यही मामला है। ये लत का कारण बन जाते हैं और एडिक्शन के कोर में व्यावहारिक परिवर्तन प्रमुख होता है।
-डॉ। विशाल सिन्हा, एसओडी मनोचिकित्सक विभाग


बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखने के लिए उनको घर से बाहर गेम्स में व्यस्त करें, बच्चों के भविष्य को सुखद बनाने की जिम्मेदारी, पेरेंट्स से लेकर, परिवार, पड़ोसी, सरकार सबकी है। गेमिंग के फिल्टरेशन को लेकर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। कंपनियों को कलेक्टिव सिक्योरिटी का पालन करना चाहिए।
-डॉ। रचना सिंह, मनोवैज्ञानिक


बच्चों की स्थिति पर एक नजर
-रोजाना बच्चे कर रहे मोबाइल फोन का इस्तेमाल
3 से 6 घंटे
-ऑनलाइन गेम से बच्चों का बदल रहा व्यवहार हिंसक
-एसएन मेडिकल कॉलेज में रोजाना पहुंच रहे बच्चे
2 से 3
-मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र में 3 महीने में पहुंचे काउंसलिंग को बच्चे
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