अब ना मैं हूं ना बाकी हैं जमाने मेरे,

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फंसाने मेरे

आगरा। ऐसी ही न जाने कितनी नज्मों से दुनिया को अपना मुरीद बनाने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी नहीं रहे। 70 वर्ष की उम्र में उन्होंने इंदौर के एक हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। राहत इंदौरी के चाहने वाले तो दुनियाभर में थे, लेकिन वह ताजनगरी के चाहने वालों में से एक थे। कई बार मुशायरा करने आगरा आए। मोहब्बत की नगरी आगरा से वह इस तरह रूबरू थे कि यहां के मोहल्लों के नाम से भी भलीभांति परिचित थे। वह कहते थे कि इस शहर की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां कौमी (मजहबी) बात नहीं होती, जो दुनिया में एक मिसाल है।

करीब सात बार आए आगरा

मशहूर शायर केसी श्रीवास्तव बताते हैं कि राहत इंदौरी साहब से पहली मुलाकात लखनऊ में वर्ष 1983 में हुई। तब मैंने उन्हें मुशायरा के लिए आमंत्रित भी किया था। इसके बाद वर्ष 1986 से वह छह से सात बार मुशायरा में शामिल होने आगरा आए। जब भी ताजनगरी में मंच पर माइक थामते तो आयोजनस्थल पर एक माहौल बना देते थे। उनके प्रशंसक उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे और उन्हें सुनने की प्रतीक्षा में घंटों बैठे रहा करते थे। वह करीब छह से सात बार आगरा आए। आखिरी बार 26 मार्च 2017 को आगरा कैंट स्थित एक होटल में आयोजित चित्रांशी फिराक इंटरनेशनल अवॉर्ड के मुशायरा में शिरकत करने आए थे। केसी श्रीवास्तव बताते हैं कि इंदौरी साहब कहते थे कि इस शहर में मजहबी बात नहीं होती, जो दुनिया में एक मिसाल है। केसी श्रीवास्तव ने बताया कि 'हमारे केसी भाई' पुस्तक में राहत साहब ने भी केसी और मेरा रिश्ता शीर्षक से एक लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने चित्रांशी आगरा से अपने रिश्ते और आगरा में शायर फिराक गोरखपुरी की याद में आयोजित होने वाले मुशायरे का गहराई से जिक्र भी किया था।

शहर के मोहल्लों के नाम भी थे याद

कवि पवन आगरी बताते हैं कि शायर राहत इंदौरी का जाना दुनियाभर में उनके प्रशंसकों के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई होना आसान नहीं है। प्रशंसकों के दिल में इंदौरी साहब हमेशा जिंदा रहेंगे। वर्ष 2018 में वह आखिरी बार आए। इस वर्ष वह दो बार आगरा आए थे, अगस्त में और उसके बाद दिसंबर में उनका आना हुआ। दोनों ही कार्यक्रम का संयोजन मेरे द्वारा ही किया गया था। उसके बाद दुर्भाग्य से उनका आना संभव नहीं हो पाया। राहत साहब अपने फन के बड़े शायर थे। वो जिस हौसले के साथ अपनी शायरी में बेबाकी से सियासी तंज किया करते थे, उसका मजा दोनों ही पक्ष के लोग लिया करते थे। उनके आगरा से लगाव को इस कदर समझा जा सकता है ताजनगरी की भौगोलिक स्थिति से भी अच्छे खासे परिचित थे। शहर के गली-मोहल्लों तक के नाम उन्हें याद थे। जब भी मुशायरा के दौरान किसी नज्म पर युवा शोर मचाते तो वह शहर के मोहल्लों का नाम लेकर पूछते कि वहां से हो क्या? इस पर हर कोई खुद को हंसने से नहीं रोक पाता था।

आगरा आने के लिए हमेशा रहते थे तैयार

शायर राहत इंदौरी को याद करते हुए हास्य कवि रमेश मुस्कान कहते हैं कि उनका जाना मेरे लिए तो व्यक्तिगत क्षति है। वह मुझसे बहुत प्रेम करते थे। देश के साथ विदेश में भी कई मंच साझा किए। आगरा से उनको बहुत लगाव था। जब भी उन्हें आगरा आने के लिए आमंत्रित किया, तो उन्होंने कभी इंकार नहीं किया। कभी उन्होंने आने के लिए अपनी कोई फीस तय नहीं की। सिर्फ मंच पर ही नहीं बल्कि मंच के पीछे भी वह हास्य व्यंग्य की अद्भुत शख्सियत थी। आगरा के सभी मजहब के लोग उनसे बहुत स्नेह करती थी। यात्रा के दौरान भी सबको हंसाते रहते थे।

अब तो नाश्ते में दवाएं खाता हूं

चित्रांशी के महासचिव अमीर अहमद एडवोकेट ने विश्व विख्यात शायर राहत इंदौरी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि उर्दू शायरी को एक नया रूप देने वाला शायर चला गया। राहत साहब ने मुशायरे की स्टेज पर कलाम पेश करने का निराला अंदाज ईजाद किया और उनके इस नये निराले अंदाज के लोग दीवाने हो गए। चित्रांशी ने 26 मार्च 2017 को उन्हें आठवें चित्रांशी फिराक इंटरनेशनल अवार्ड से सम्मानित किया था। जब फिराक अवार्ड लेने आये तब कई बीमारियों ने घेर रखा था। मिजाज पूछने पर हस्ते हुए बोले दुनिया की सभी बीमारियों ने मेरे जिस्म में अपना डेरा जमा लिया है। लंच में खाने की पूछने पर बोले अब लंच डिनर नाश्ता में दवायें खाता हूं।