ताराचंद
आगरा(ब्यूरो)। हयह कहना है नगला पदी निवासी मीरा का। वह चिटफंड कंपनियों के घोटाले की विक्टिम हैैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने सोमवार को ऐसे ही परेशान लोगों के घर जाकर उन लोगों से उनका दुख दर्द जाना। अपनी दास्तां बयां करते हुए लोग रो पड़े।

पॉलिसी मैच्योर हुई तो बंद हो गई कंपनी
मीरा ने बताया कि उन्होंने पीजीएफ पल्र्स कंपनी में रिक्यूरिंग डिपोजिट(आरडी) और फिक्स्ड डिपोजिट(एफडी)के रूप में पैसा जमा किया था। जैसे ही उनकी पॉलिसी मैच्योर होने वाली थी। तभी सन 2014 में कंपनी बंद हो गई। तब से लेकर अब तक वह कई बार कंपनी के दफ्तर के चक्कर लगा चुकी हैैं। कई बार फॉर्म भर चुकी हैैं। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इस बार भी हमने फॉर्म भर दिया है। सुना है इस बार केंद्र की सरकार खुद इस मामले में इंटरेस्ट दिखा रही है। शायद कुछ हो जाए।


फास्ट फूड की कमाई कंपनी ने खाई
चिट फंड कंपनियां ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में ज्यादा सक्रिय रहती हैं। विद्या नगर में रहने वाले फास्ट फूड की स्टॉल लगाने वाले राजेन्द्र ने बताया कि पल्स कंपनी में रोजाना सौ रुपए जमा कराए, एजेंट द्वारा भरोसा दिया गया था कि कंपनी आपके शेयर से दो गुना शेयर जमा कराई गई, लेकिन आज 12 साल से अधिक हो गया है। अभी भी उम्मीद है कि मेरा पैसा वापस मिल जाएगा। इस संबंध में पीडि़त परिवारों द्वारा शिकायत भी की थी लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

गाढ़ी कमाई को चिट एजेंटों के हवाले
कम समय में अमीर बनने की चाहत में मध्यम और निचले तबके के लोगों के लोग अपनी गाढ़ी कमाई को चिट फंड कंपनियों और एजेंटों के हवाले कर देते हैं। बैंक और सेबी की चेतावनियों के बावजूद लाखों निवेशक इन कंपनियों की जालसाजी का शिकार हो रहे हैं। हजारों करोड़ रुपए उगाहने के बाद जब पैसों की वापसी का समय आता है, तो यह कंपनियां रफूचक्कर हो जाती हैं और लोग खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। आज भी इससे प्रभावित लोग खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं।


चिट फंड कंपनी की निगरानी
भारत में चिट फंड का नियमन चिट फंड कानून के द्वारा होता है। इस कानून के तहत चिट फंड कारोबार का रजिस्ट्रेशन व नियमन संबद्ध राज्य सरकारें ही कर सकती हैं। चिट फंड एक्ट के सेक्शन के तहत चिट रजिस्ट्रार की नियुक्ति सरकार के द्वारा की जाती है। चिट फंड के मामलों में कार्रवाई और न्याय निर्धारण का अधिकार रजिस्ट्रार और राज्य सरकार का ही होता है।

धोखाधड़ी की जांच करती है एसएफआईओ
आम तौर पर फाइनेंस फ्रॉड से जुड़े मामलों को जांच एसएफआईओ करती है। लेकिन फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाने के लिए बना है। शहर में तीस से अधिक मामले जांच में शामिल हैं। फाइनेंस पर संसद की स्थायी समिति ने हालिया रिपोर्ट में चिंता जाहिर की है। जिसमें धोखाधड़ी के मामले पेंडिंग हैं। अधिकतर मामलों मेें कंपनी फ्रॉड कर भाग चुकी है, लेकिन अभी भी लोग अपने हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।


एजेंसीज की भरमार, घपले हजार
आर्थिक मामलों में क्राइम पर रोकथाम के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन कई विभाग और एजेंसियों के बावजूद ठगी का धंधा खूब फैल रहा है। एजेंट इस कार्य को कर रहे हैं, ग्रामीण इलाकों के अलावा शहरी क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर लोग जो किसी न किसी तरह अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं, एजेंट उनको मुनाफे का लालच देकर ट्रैप में फंसा लेते हैं।



बारह साल से अधिक हो गया है, में और मेरा बेटा फास्ट फूड कॉर्नर लगाते हैं। एक दिन एक एजेंट पड़ोसी के घर आया था तो उन्होंने जमा रकम का दो गुना अधिक करने की बात कही, साथ ही भरोसा दिलाया कि कंपनी पुरानी है। विश्वास कर सकते हैं।
राजेन्द सिंह, पीडि़त



मेरी पॉलिसी मैच्योर होने वाली थी। तभी सन 2014 में कंपनी बंद हो गई। तब से लेकर अब तक वह कई बार कंपनी कार्यालय जा चुकी हूं लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। उम्मीद तो है मुझे।
मीरा, पीडि़त


पल्स कंपनी में मेरे पिता के द्वारा हर महीने एक हजार रुपए की रकम जमा कराई, लेकिन जब वापस मिलने का समय आया तो पहले एजेंट आनाकानी करने लगा, फिर पता चला कि कंपनी जा चुकी है।
सचिन चौधरी, पीडि़त


कल्पतरु चिटफंड कंपनी में रकम जमा की थी, एजेंट रोजाना शॉप से रुपए लेता था, पांच साल में दो गुना करने का भरोसा दिया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, समाचार पत्र मेें पढ़ा तो पता चला कि कंपनी भाग चुकी है।
अशोक शर्मा, रावत पाड़ा