कार्यशाला में उपस्थित मुख्य अतिथि डॉ। संजीव कुमार झा ने विद्यार्थियों को मसल्स एनर्जी टेक्निक(एमईटी) एक ऐसी तकनीक है जिसे 1948 में फ्र ड मिशेल, सीनियर, डीओ (1) द्वारा विकसित किया गया था यह मैनुअल थेरेपी का एक रूप है, जो ऑस्टियोपैथी में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जो ऑटोजेनिक या पारस्परिक अवरोध के माध्यम से मांसपेशियों को आराम देने और मांसपेशियों को लंबा करने के लिए कोमल आइसोमेट्रिक संकुचन के रूप में मांसपेशियों की अपनी ऊर्जा का उपयोग करता है। स्टैटिक स्ट्रेचिंग की तुलना में जो एक निष्क्रिय तकनीक है जिसमें चिकित्सक सभी काम करता है, एमईटी एक सक्रिय तकनीक है जिसमें रोगी भी एक सक्रिय भागीदार होता है। उन्होंने कहा कि एमईटी ऑटोजेनिक इनहिबिशन और रेसिप्रोकल इनहिबिशन की अवधारणाओं पर आधारित है। यदि मांसपेशियों का एक उप-अधिकतम संकुचन उसी मांसपेशी के खिंचाव के बाद होता है, तो इसे ऑटोजेनिक निषेध एमईटी के रूप में जाना जाता है, और यदि एक मांसपेशी के एक उप-अधिकतम संकुचन के बाद विपरीत मांसपेशी का खिंचाव होता है, तो इसे पारस्परिक निषेध एमईटी के रूप में जाना जाता है। सेंटर आफ क्रानिक डिसीज रिसर्च सेंटर के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ संस्कृति विवि के कुलपति प्रो। एमबी चेट्टी ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर किया। इस मौके पर उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में फिजियोथैरेपिस्ट की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मेडिकली फिट होने के बाद मरीज को सामान्य स्थिति में लाने की महत्वपूर्ण भूमिका फिजियोथैरेपी की है। उन्होंने फिजियोथैरेपी की इन्हांस स्किल का हवाला देते हुए कहा कि अत्याधुनिक यंत्रों, तकनीकियों ने फिजियोथैरेपिस्ट के काम को और उपयोगी बना दिया है। कार्यशाला की मुख्य संयोजिका संस्कृति स्कूल आफ मेडिकल एंड ऐलाइड साइंसेज की कोर्डिनेटर डा। विधि सिंह ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।