आगरा(ब्यूरो)। रूल्स की अनदेखी अलग से की जाती है। स्कूली बच्चे भी दो पहिया वाहन से आते-जाते दिखाई देते हैं। घर से शुरू हुई लापरवाही सड़क और स्कूल के भीतर तक दिखाई देती है। यानी ना तो पेरेंट्स ध्यान दे रहे हैं और ना ही पुलिस सख्ती कर रही है। स्कूल भी गंभीर नहीं हैं। नेशनल हाईवे-19 पर इसी तरह का मामला शुक्रवार को सामने आया है।

बस से निकलने लगा अचानक धुआं
नेशनल हाइवे-19 पर गुरुद्वारे के सामने एक स्कूली बस के टायर से अचानक धुआं निकलने लगा। जब चालक के साथ राहगीरों ने ये देखा तो सुरक्षा के लिहाज से बच्चों को कार से नीचे उतार दिया। कुछ समय बाद स्थिति समान्य होने पर बच्चों को भेज दिया गया।

नए कागज पर पुरानी बसें
सीबीएसई के 164 स्कूल हैं। आइसीएसई से संचालित 13 स्कूल हैं। सीबीएसई के करीब 120 स्कूलों में ट्रांसपोर्ट की सुविधा है। स्कूलों में सबसे अधिक समस्या आउट सोर्स की बसों को लेकर रहती हैं। इसमें कई ट्रांसपोर्टर कागज तो नए तैयार करते हैं, लेकिन उनकी पुरानी बसें स्कूलों में चलती रहती हैं। वहीं, पेरेंट्स जिन वाहनों को प्रबंध कर भेजते हैं, उन वाहनों के फिटनेस को लेकर भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

बंद हो चुकी बसें भी दौड़ रहीं
कई स्कूलों में तो बिना यलो प्रिंट के बसें बच्चों को ढो रही हैं। जिनको बंद हुए सालों हो चुके हैं। इस पर ना तो पुलिस का ही ध्यान है और ना ही स्कूल उनको रोक रहा है। इसको लेकर कई बार पेरेंट्स शिकायत करते हैं, तो उसे सुना नहीं जाता है। इस बीच अगर कोई बड़ा हदसा होता है तो तत्काल कार्रवाई की जाती है, कुछ समय बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर आ जाता है।

इन चार साधनों से बच्चे जाते हैं स्कूल
-स्कूल की खुद की बस, जिसे उनके कंडक्टर और ड्राइवर चलाते हैं। नई बसों की भी फिटनेस नहीं है।
-ट्रांसपोर्टर से आउट सोर्स पर बसें चलती हैं। इसमें बसों के फिटनेस को लेकर शिकायत रहती है।
-पेरेंट्स खुद ड्रॉप करते हैं या फिर ऑटो, ई-रिक्शा या अन्य वाहन करके स्कूल भेजते हैं।
-बच्चे खुद साइकिल या बाइक से स्कूल जाते हैं।

स्कूल बस के संचालन में ये है जरूरी
-बस में कैमरा होना चाहिए।
-जीपीआरएस ट्रैकर।
-अग्निशमन यंत्र।
-मेडिकल किट।
-बस के परमिट होने चाहिए।
-बस की फिटनेस सर्टिफिकेट।
-प्रदूषण वैधता प्रमाणपत्र।
-ड्राइविंग लाइसेंस।
-एक पुरुष और महिला हेल्पर होना चाहिए।
-साइड की तीन पाइप होनी चाहिए, जिससे बच्चा सिर बाहर नहीं निकाल पाए।
-सीट बेल्ट होनी चाहिए।
-बस के पीछे स्कूल के नाम और नंबर लिखे होने चाहिए।
-स्पीड गर्वनर होना चाहिए, जो ओवर स्पीड नहीं होने देता है।
-बस की वैधता होनी चाहिए।
-ड्राइवर का पुलिस वेरिफिकेशन हो।


जिले में अनफिट वाहन
-सीबीएससी स्कूल की संख्या
175
-आईसीएसई स्कूलों की संख्या
13
-सीबीएसई के स्कूलों में ट्रांसपोर्ट
120

-स्कूलों मेें वाहनों की संख्या
1460

-फिट स्कूली वाहन
432


बस के अंदर व्यवहार करने के नियम
-बच्चों को सिखाएं कि बस चलने से पहले सीट पर बैठ जाएं। साथ ही हमेशा मुंह को आगे की ओर करके बैठने के लिए कहें।
-बस में बच्चों को शोर करने के लिए मना करें, अगर वे ऐसा करते हैं, तो बस ड्राइवर का ध्यान भंग हो सकता है, जिसकी वजह से एक्सीडेंट होने का खतरा रहता है।
-अगर बच्चा बस ड्राइवर से किसी तरह की बात करना चाहते हैं, तो उन्हें सिखाएं कि बस रूकने के बाद ही ड्राइवर से बात करें।
-कई बच्चे बस में खाने पीने लगते हैं, ऐसे में बस में गंदगी हो सकती है, इस स्थिति से बचने के लिए उन्हें बस में न खाने-पीने की सलाह दें।
-इसके साथ ही बच्चों को समझाएं कि किसी भी सामान को बाहर न फेके। इससे बाहर गंदगी हो सकती है।

बच्चों को बस से उतरने के नियम
-बच्चों को सिखाएं कि बस से तभी उतरने की कोशिश करें, जब तक बस पूरी तरह से रुक न जाए।
-बच्चों को सिखाएं कि बस में हमेशा ज्यादा हड़बड़ी नहीं मचानी चाहिए, हमेशा आगे के बच्चों को पहले उतरने दें।
-बच्चों को समझाएं कि बस से उतरने के दौरान स्कूल बैग, बेल्ट या फिर कपड़ों से बस की रेलिंग न पकड़ें।
-बच्चों को बस पर उतारने और चढ़ाने के नियमों को अच्छे से समझाएं, ताकि आपका बच्चा और आप सुरक्षित हो सकें।

गुरुद्वारा के सामने एक स्कूली बस में धुंआ निकलनेे का मामला सामने आया है, इसको संज्ञान में लिया जा रहा है। नियमों की अनदेखी करने वाले वाहन चालकों पर कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही जुर्माना वसूल किया जाएगा।
अरीब अहमद, एसीपी ट्रैफिक

शहर के कुछ स्कूलों में बसें नहीं हैं। इसकी वजह से मजबूरी में बच्चे को स्कूल छोडऩा पड़ता है। या फिर ऑटो का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन ऑटो में जिस तरह से बच्चों को भर के ले जाया जाता है। उसे देखकर डर लगता है।
आकांक्षा अग्रवाल, पेरेंट्स

कुछ बड़े स्कूल हैं, उनका खुद का कोई ट्रांसपोर्ट नहीं हैं। मजबूरी में बच्चों को छोडऩे के लिए खुद जाना पड़ता है। कभी कभार ऑटो भी लगवाता हूं, यहां बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता बनी रहती है। वैन में बीस से 19 बच्चे ठूंस-ठूंस कर भरे जाते हैं।
पे्रम कुमारी सेंगर, पेरेंट्स