क्रांति दिवस पर विशेष

प्रयागराज (ब्यूरो)लाखों की भीड़ और सैकड़ों चौराहे वाले शहर में शहीद भगत सिंह को जगह नहीं मिल पाई है। भगत सिंह का नाम बच्चा बच्चा जानता है। मगर ये शहर शहीद भगत सिंह की मूर्ति को जगह नहीं दे सका। नगर निगम सदन में मूर्ति के लिए प्रस्ताव पास किया जा चुका है। मामला विधान सभा में भी उठाया जा चुका है। मगर हैरत है कि नगर निगम भगत सिंह की मूर्ति लगवा नहीं सका। न तो मूर्ति आ सकी और न ही जगह की तलाश हो सकी।

इलाहाबाद आए थे शहीद भगत सिंह
शहीद-ए-आजम भगत सिंह प्रयागराज आए थे। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हालैंड हाल छात्रावास में एक रात रुके थे। इसका जिक्र उस समय हालैंड हाल के कमरा नंबर आठ में रह रहे का। अजय घोष ने अपनी एक किताब में किया है। जिसके मुताबिक बात 1928 की है। जब एक शाम भगत सिंह अकेले हालैंड हाल पहुंचे। भगत सिंह ने कमरा नंबर आठ का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा अंदर से बंद था। का। घोष ने दरवाजा खोला तो बाहर भगत सिंह खड़े थे। भगत सिंह को कानपुर चंद्रशेखर आजाद से मिलने जाना था। रात में साधन की समस्या था। जिस पर भगत सिंह ने रात कमरा नंबर आठ में अजय घोष के साथ बिताई। सारी रात भगत सिंह और अजय घोष क्रंाति आंदोलन को लेकर चर्चा करते रहे। अल सुबह भगत सिंह अकेले ही कानपुर के लिए रवाना हो गए।

विधान सभा में उठ चुका है मामला
शहीद भगत सिंह की मूर्ति शहर में लगवाने के लिए दो दशक से प्रयास चल रहा है। 2008 में 27 फरवरी को तात्कालीन विधायक शहर उत्तरी अनुग्रह नारायण सिंह ने शहीद ए आजम भगत सिंह की मूर्ति शहर में लगवाने के लिए विधान सभा में आवाज उठाई थी। विधायक अनुग्रह के प्रस्ताव को विधान सभा में पारित कर दिया गया था। मगर प्रस्ताव पारित हुए 16 वर्ष गुजर गए लेकिन मूर्ति नहीं लग सकी।

नगर निगम में पारित है प्रस्ताव
2006 में पार्षद शिव सेवक सिंह ने शहीद भगत सिंह की मूर्ति शहर में लगवाने के लिए नगर निगम सदन में प्रस्ताव दिया था। उस समय मेयर डा। केपी श्रीवास्तव थे। पार्षद शिवसेवक सिंह के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। इसके बाद कई वर्ष तक जगह की तलाश की जात रही। मगर न तो मूर्ति आ पाई और न ही जगह की तलाश पूरी हो पाई।

हटा दी गई रानी विक्टोरिया की मूर्ति
कंपनी बाग के अंदर गोल पार्क के पास रानी विक्टोरिया की मूर्ति लगी हुई थी। बात पुरानी है। शहर के लल्लू मरकरी के नेतृत्व में लोगों ने रानी विक्टोरिया की मूर्ति हटा दी। जिसको लेकर कई दिनों तक विवाद चला था। मगर लल्लू मरकरी और उनके साथ रहे लोगों ने कदम पीछे नहीं हटाया। यहां पर लल्लू मरकरी शहीद भगत सिंह मूर्ति लगवाने की मांग करते रहे, मगर उनकी मांग पूरी नहीं हो सकी।

कई साल बाद लग पाई चंद्रशेखर की मूर्ति
पार्षद शिवसेवक सिंह ने 2012 में शहीद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा लगाने के लिए नगर निगम सदन में प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। आननफानन में चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा भी मंगा ली गई। इसमें तात्कालीन नगर आयुक्त सत्यनारायण श्रीवास्तव ने तेजी दिखाई। मगर मूर्ति आने के कुछ दिनों बाद ही नगर आयुक्त सत्यनारायण श्रीवास्तव का ट्रांसफर हो गया। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा नगर निगम के स्टोर में रखवा दी गई। करीब पांच साल तक प्रतिमा नगर निगम के स्टोर में धूल खाती पड़ी रही। इसके बाद 2017 में चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा को सर्किट हाउस में लगवाया जा सका।

सिमट गया पदमधर पार्क
शहीद लाल पदमधर के नाम से सिविल लाइंस में धोबीघाट के पास पार्क बनाया गया। मगर अब पार्क बदहाल स्थिति में है। जब पार्क का नामकरण लाल पदमधर के नाम पर किया गया तो पार्क को बेहद खूबसूरत रुप दिया गया। मगर अब पार्क की सुंदरता पहले जैसी नहीं रही।

भूल गए मौलवी लियाकत को
पहले प्रयागराज अब कौशांबी के महंगाव के रहने वाले मौलवी लियाकत अली को लोग लगभग भूल गए हैं। मौलवी लियाकत अली ने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के दौरान खुशरोबाग को अपने कब्जे में ले लिया था। बताया जाता है कि करीब दस दिन तक मौलवी लियाकत अली ने खुशरोबाग एरिया में अंग्रेजों से लोहा लिया। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में मौलवी लियाकत अली का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। मगर मौलवी लियाकत अली की एक भी मूर्ति शहर में नहीं लग सकी है।

शहीद भगत सिंह की मूर्ति लगवाने का प्रस्ताव नगर निगम सदन और विधान सभा से पास है। लंबे अरसे से रानी विक्टोरिया मूर्ति स्थल पर भगत सिंह की मूर्ति लगवाने की मांग की जाती रही, मगर अफसरों ने ध्यान नहीं दिया। मौवली लियाकत अली की भी मूर्ति शहर में नहीं है।
शिवसेवक सिंह, वरिष्ठ पार्षद

नगर निगम सदन में कई बार क्रांतिकारियों की मूर्ति लगवाने के लिए आवाज उठाई जा चुकी है। प्रस्ताव भी पारित है। मगर अफसर क्रांतिकारियों की मूर्ति लगवाने में रुचि नहीं लेते हैं। जबकि क्रांतिकारी हम सभी के लिए हमेशा प्रेरणाश्रोत रहेंगे।
आनंद अग्रवाल, वरिष्ठ पार्षद

क्रांतिकारियों को सम्मान देना हमारा नैतिक कर्तव्य है। नगर निगम प्रशासन को जनभावनाओं का सम्मान करना चाहिए। नगर निगम सदन में कई बार क्रांतिकारियों की मूर्ति लगवाने की मांग होती रहती है। मगर अफसर ध्यान नहीं देते हैं।
कमलेश तिवारी, पार्षद