प्रयागराज (ब्‍यूरो)। आज भी आंखे नम हो जाती है,जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद आती है। भारत हर वर्ष 15 अगस्त को अपने आजाद होने की खुशी में स्वतंत्रता दिवस मनाता है। मगर इस आजादी की पटकथा तो 1857 में ही लिखी जा चुकी थी। जिसे हम भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जानते हंै। इसी के साथ इतिहास में यह 1857 की स्वतंत्रता क्रांति के रूप में दर्ज है। इस क्रांति की शुरूआत मेरठ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों ने विद्रोह कर किया था। इस विद्रोह ने धीरे-धीरे क्रंाति का रूप ले लिया। यह क्रांति देश में आग की तरह फैली और 5 जून 1857 को इसकी चिंगारी तब के अवध और आज के प्रयागराज पहुंची। तभी से इस दिन को हर वर्ष प्रयागराज में 1857 की क्रांति का प्रस्फुटन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन क्षेत्रीय अभिलेखागार द्वारा शहीदों के सम्मान में उनके अभिलेख और उनसे सम्बंधित चित्रकला की प्रदर्शनी लगाई जाती है।

क्रूरता के खिलाफ विद्रोह था
ब्रिटिश सरकार द्वारा आम जनता के साथ क्रूरता तो की ही जा रही थी। इसके साथ ब्रिटिश सरकार के लिए काम कर रहे भारतीयों के साथ भी क्रूरता की जा रही थी। अंगे्रज शासक कर्नल नील ने तो क्रूरता की हद सारी हदें पार कर दी थी। उसने लोगों को बिना कुछ कहे सुने ही कत्लेे-आम मचा रखा था। उसने अपने इस कत्ले-आम का शिकार बूढ़े, बच्चे, महिलाएं सभी को बनाया। अभिलेखागार के राकेश वर्मा बताते हैं की उसने कई लोगों को जिंदा जलवाने का प्रयास भी किया था। कर्नल नील ने ब्रिटिश हुकूमत की ओर से फरमान जारी किया जो मिले उसे तुरंत फंासी पर चढ़ा दो। बस वो भारतीय होना चाहिए। इससे तंग आकर के भारतीयों ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया। जिसकी शुरूआत मेरठ में 10 मई 1857 को हुई। जिसकी खबर धीरे-धीरे पूरे देश में फैलने लगी। प्रयागराज में इस क्रांति की गूंज 5 मई 1857 को पहुंची।

तरीका मनमाना था
ब्रिटिश सरकार द्वारा कर्नल नील को अवध प्रांत का कर्नल बनाया गया था। कर्नल बनते ही उसने मनमाने ढंग से काम करना शुरू कर दिया था। क्षेत्रीय अभिलेखागार के राकेश वर्मा ने बताया की उसने प्रयागराज में लगभग 809 लोगों को जबरन सूली पर चढ़ाया था। इतने लोगों को बगैर किसी कारण सूली पर चढ़ाने का दबाव बनने लगा तो उसने कुछ लोगों का ट्रायल चला मनमाने डंग से सजा दी गई।

47 लोगों पर देशद्रोह का केस
कर्नल नील द्वारा किये मनमाने न्याय से जनता और ज्यादा आक्रोशित हो गई। ब्रिटिश सरकार की अच्छाईयों को दिखाने के लिए उसने 47 लोगों का ट्रायल कोर्ट में चलाया। इन 47 स्वतंत्रता सेनानियों को ट्रायल के आधार पर फांसी दी गई।
स्वतंत्रता सेनानी सजा
लालचंद फांसी
लाल खान फांसी
लोदी फांसी
लाल फांसी
मदारा फांसी
मदारी फांसी
महासिंह जेल में ट्रायल के दौरान मृत्यु
मखदमू बक्श फांसी
मनबदार खान फांसी
मौला बख्श फांसी
मो.अली फांसी
मोसिन बख्श फांसी
मोती लाल फांसी
मदार बख्श फांसी
मूल्लू सिंह फांसी
मंगू फांसी
मुन्नू खान फांसी
मुंसीफ खान फांसी
मुनू फांसी
मुंशी फांसी
मुनव्वर फांसी
मुरलीधर फांसी
मुर्तजा खान फांसी
मत्रा फांसी
मुतिआ पासी हांड्या फांसी
ननका मिलिट्री फायरिंग में मारे गये
निआमतुल्लाह जिला पुलिस द्वारा हिंसक लाठीचार्ज के दौरान जानसेनगंज में मृत्यु हो गयी
नूरूद्दीन फांसी
नबी बक्श मेवाती फांसी
नबी फांसी
ननकुआ फांसी
उदित सिंह फांसी
पीरू फांसी
प्रभु ब्रिटिश सैनिक द्वारा मुठभेड़ में मारे गये
रामलाल फांसी
रामप्रसाद फांसी
रामधीन फांसी
रमेश दत्त मालवीय पुलिस फायरिंग गोलीबारी में मारे गये
रघुभर ऊर्फ रामरतन फांसी
रघुवर फांसी
रकीम बख्श फांसी
रत्र फांसी
वहीद फांसी
जोहर खान फांसी
जुल्फिकार खान फांसी