प्रयागराज (ब्‍यूरो)। रिपोर्टर ने दो ट्रेनों के जनरल कोच की स्थिति चेक की। पहली ट्रेन थी गोदान एक्सप्रेस और दूसरी थी काशी एक्सप्रेस। गोदान शाम चार बजे के करीब प्लेटफॉर्म नंबर सात पर पहुंची थी। इसमें जनरल के तीन कोच लगे थे। दो इंजन के ठीक बाद और एक पीछे। इन कोच में पैसेंजर्स ढूंस-ढूंस कर भरे हुए थे। ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर लगने के बाद भी इस कोच से कोई टस से मस होने का नाम नहीं ले रहा था। पूछने पर पता चला कि उतर गया तो कोई नया आकर इस स्थान पर कब्जा लेगा तो क्या करेंगे। इन लोगों का कहना था कि हम तो अपनी स्वेच्छा से इस तरह से यात्रा कर रहे हैं क्योंकि हमें डेस्टिनेशन पर पहुंचना अनिवार्य है और इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है।

90 और 100 है जनरल कोच की कैपेसिटी
ट्रेनों में आजकल दो तरह के कोच लगाए जा रहे हैं। एक एलएचबी कैटेगिरी के और दूसरा आईसीएफ कैटेगिरी का। एनसीआर के पीआरओ अमित मालवयी बताते हैं कि एलएचबी जनरल कोच में 100 लोगों को ही यात्रा करने की परमिशन है। इसलिए इससे ज्यादा टिकटों की बुकिंग नहीं की जा रही है। इसके अनुसार एक कोच में अधिकतम सौ यात्री बैठ सकते हैं और प्लेटफॉर्म पर खड़ी ट्रेन के कोच में इतने लोग बैठे थे कि उनकी संख्या गिन पाना असंभव सा था।

रेलवे स्टॉफ काट रहा था पेनाल्टी
रिपोर्टर ने देखा कि पूरी तरह से भरा होने के बाद भी टीटी कोच में मूव कर रहे थे। वह यात्रियों से पेनालिटी और किराया दोनों वसूलकर उन्हें आगे की यात्रा का लाइसेंस दे रहे थे। उनसे सवाल किया गया कि क्या ट्रेन में सीट से अधिक पैसेंजर्स को यात्रा की अनुमति दी जा सकती है? जवाब मिला कि हां, जनरल में कर सकते हैैं लेकिन स्लीपर व अन्य श्रेणियों में नहीं।

किसी भी पैसेंजर को ट्रेन के कोच में बगैर टिकट यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती। टीटी स्टॉफ बिना टिकट यात्रियों को चेक करता है और जरूरत के अनुसार पेनाल्टी लगाकर टिकट बनाता है। कोरोना गाइड लाइन को 100 परसेंट तभी फॉलो कराया जा सकता है जब पब्लिक भी इसके लिए तैयार हो।
अमित सिंह पीआरओ

रिजर्व टिकट न मिलने की वजह से जनरल का टिकट लिया था। सोचा था कि जितनी सीटें उतने यात्री होंगे। यहां का हाल तो बुरा है। सीट से ढाई गुना अधिक लोग हैं। हालत यह है कि किसी को टॉयलेट जाना हो तो वॉशरूम तक पहुंचने में इतना संघर्ष करना पड़ेगा कि बीच में ही शौच हो जाए।
सुरेश जायसवाल पैसेंजर, गोदान एक्सप्रेस