प्रयागराज ब्यूरो । जिले के अंदर 68 लाख के करीब आबादी है। बिजली कर्मियों की हड़ताल से 90 प्रतिशत लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। 60 घंटे से अधिक समय तक बिजली न रहने से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। इस 72 घंटे के हड़ताल को शायद ही लोग कभी भुला पाए। जब-जब बिजली हड़ताल की बात सामने आएगी, तीन दिन में गुजरे 60 घंटे से अधिक समय का जिक्र वह जरूर करेंगे। इस दौरान किन-किन मुसीबतों से उनको गुजरना पड़ा, यह भी वह भूलेंगे नहीं। शहर से लेकर ग्रामीण तक सारी व्यवस्था धड़ाम रही। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में लोगों ने बताया कि हर एक घंटे पर उपकेंद्र के चक्कर लगाते रहे। कर्मचारियों का गलती से फोन उठ जाता तो एक ही सवाल रहता आखिर लाइट कब आएगी ? बिजली-पानी की समस्या के साथ ही अन्य परेशानियां का भी जिक्र किया। आइये आपको बताते है बिना बिजली-पानी के 60 घंटे कैसे गुजरा।

लाइट आने का किसी के पास नहीं था जवाब
बिजली कर्मचारी गुरुवार रात 10 बजे से 72 घंटे की हड़ताल पर चले गए थे। इससे जनपद की बिजली व्यवस्था ऐसी लडखड़़ाई कि संभाले नहीं संभली। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत प्रशासनिक व्यवस्था दम तोड़ती नजर आई। बिजली आपूर्ति ठप होने से जनपद में हाहाकार मचने लगा। शहर के साथ ही गंगापार व यमुनापार के लोगों में खलबली मच गई। युवा, बुजुर्ग, बच्चे व महिलाएं सभी परेशान होने लगे। 55 घंटे बाद बिजली-पानी के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं भी धड़ाम होना शुरू हो गई। रविवार को तो लोगों के सामने एक-एक बूंद पानी का ऐसा संकट खड़ा हुआ कि लोग बाल्टी लेकर इधर-उधर दौड़ते नजर आए। सड़क से लेकर उपकेंद्रों तक भीड़ जमा हो गई। कहीं रास्ताजाम तो कहीं घेराव शुरू हो गया। धैर्य खो चुके लोगों को अफसरों का आश्वासन भी शांत नहीं कर सका। सवाल सिर्फ एक था बिजली कब आएगी, जिसका जवाब किसी के पास नहीं था।

लाइट आई तो मिल गई संजीवनी
रविवार दोपहर तीन बजे लोगों को पता चला कि ऊर्जा मंत्री और बिजली कर्मियों के बीच हुई बातचीत में समझौता हो गया है। अब हड़ताली बिजली कर्मी उपकेंद्रों पर पहुंचकर आपूर्ति बहाल करेंगे तो मानो लोगों को संजीवनी मिल गई हो। थोड़ी देर बाद जनपद की बिजली आपूर्ति बहाल होनी शुरू हो गई। लेकिन गुजरे 60 घंटे से अधिक समय लोगों पर किस कदर भारी पड़े हैं, वह ही समझ सकते हैं। लोगों ने सरकार से निवेदन किया है कि आगे कभी भी हड़ताल की स्थिति बने तो इसका विकल्प रास्ता जरूर निकाल कर रखें। क्योंकि आदमी के जीवन में बिजली पानी सांस लेने की तरह है। कर्मचारियों व सरकार के बीच की मांग के चलते आम आदमी अक्सर पीसता चला आ रहा है।

लोगों ने साझा किया दर्द
बिजली काट कर आदमी की लाइफ डिस्टर्ब कर देना, यह तरीका ठीक नहीं है। आदमी के जीवन में बिजली-पानी सांस लेने की तरह है। घर में लगे पानी की टंकी भी दस घंटे में खाली हो गई। अब आप खुद समझ सकते है। आदमी कैसे खाना-पानी व शौचालय गया होगा। होटल का सहारा लेना पड़ा।
सौरभ मिश्रा, अधिवक्ता

मोबाइल पर आधा से ज्यादा कार्य डिपेंड है। मोबाइल जब डिस्चार्ज हो गया मनो दिमाग काम करना बंद कर दिया। मोबाइल चार्ज करने के लिए स्टेशन पर जाना पड़ा। कोई सही से बताने को तैयार नहीं था कि आखिर कब लाइट आयेगी। बिना नहाये काम पर जाना पड़ा। यह दिन आदमी भूल नहीं सकता है।
पंडित कुशल गौरव पांडेय

दिन का समय तो जैसे-तैसे कट जाता था। लेकिन रात नहीं कट पाती थी। इनवर्टर डाउन हो जाने पर मोमबत्ती का सहारा लेना पड़ा। खाना तक बनाने के लिए पानी खरीदना पड़ा। जो कैंपर का पानी 20 रुपये में मिलता था। वह पचास से साठ रुपये तक खरीदना पड़ा। सबसे ज्यादा दिक्कत शौचालय जाने में हुई।
सुशील तिवारी, उपाध्यक्ष किसान कांग्रेस

रसूलाबाद व शिवकुटी क्षेत्र में तो बिजली हडताल पर जाते ही कट गई। आदमी को समझने व पानी भरने तक का मौका नहीं मिला। कुछ घंटों में पानी की टंकी तक खाली हो गई। बिना पूजा-पाठ किये कोर्ट जाने की आदत नहीं है। नहाने के लिए पानी दूरदराज से भरकर लाना पड़ा। मोबाइल डिस्चार्ज हो जाने पर कार स्टार्ट कर चार्ज तक करना पड़ा।
दीपक मिश्रा, अधिवक्ता-

बिना बिजली पानी के व्यापारी पूरी तरह से ठप रहा। बर्तन तक धुलने के लिए पानी नहीं था। खाना कैंपर का पानी खरीद कर बनाना पड़ा। कैंपर वालों ने भी रेट बढ़ा दिया। मजबूरी में दोगुने रेट पर लेना पड़ा। यहां तक कि कैंपर के पानी से बर्तन भी धुलना पड़ा। जनरेटर पर दो दिन रेस्टोरेंट चलाना पड़ा।
मोहित द्विवेदी, व्यापारी अर्बन फॉरेस्ट रेस्टोरेंट प्रीतम नगर कॉलोनी

रात का खाना तक दिन में बना कर रखना पड़ा। क्योंकि रात में बिना लाइट खाना बनाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। पानी तक बाल्टी में भरकर रखना पड़ा। बिना बिजली-पानी मानो ऐसा लग रहा था, जैसे जीवन रुक गया हो। अधिकारियों के फोन तक नहीं उठ रहे थे। अगर गलती से फोन उठ भी जाता तो हड़ताल पर बोलकर रख देते। कोई भी जिम्मेदार लाइट आने का सही समय नहीं बता पा रहा था।
प्रियांशु शुक्ला, अधिवक्ता


सड़कों से गायब रहे ई-रिक्शा
बिजली न होने से ई-रिक्शा भी सड़कों से गायब हो गए। ई-रिक्शा चार्ज नहीं हो पा रहे है। जहां-तहां खड़े दिखाई दे रहे है। हालांकि सीएनजी और पेट्रोल से चलने वाले ऑटो चलते नजर आए।