कछार की जमीन के दाम में पांच फीसदी वृद्धि का भी प्रस्ताव नहीं
बाढ़ के पानी में सप्ताह भर डूबे रहे कई इलाके की जमीन की दरों में वृद्धि का कोई प्रस्ताव नहीं
जमीन के रेट का बड़ा अंतर बढ़ा रहा है कछार में पब्लिक का इंट्रेस्ट, इग्नोर हो रहा है खतरा
vineet.tiwari@inext.co.in
ALLAHABAD: बाढ़ का पानी मकानों को कमजोर बनाता है। घर में रखे सामान खराब होने का खतरा होता है। पानी न उतरने तक प्रशासन हांफता-डांफता रहता है। राहत के नाम पर करोड़ों खर्च कर दिए जाते हैं। फिर भी कोई इन इलाकों का विस्तार रोकने की ठोस कोशिश करता नहीं दिखता। बड़ा उदाहरण है डीएम सर्किल रेट का प्रस्ताव। एक तरफ रिहायशी इलाकों में जमीन का दाम दस फीसदी तक बढ़ाने का प्रस्ताव है तो दूसरी तरफ हैं वे कई इलाके जो पिछले महीने हफ्तों पानी में डूबे रहे, यहां जमीन के रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इसके अलावा भी नदियों के किनारे के इलाकों की जमीन के रेट में बड़े चेंज का प्रस्ताव नहीं है। इससे सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि प्रशासन खुद सबकुछ जानते हुए भी ऐसा क्यों कर रहा है?
शहर से लगे, खतरा एक महीने का
नदियों के किनारे के एरिया में प्रापर्टी डीलिंग का कारोबार इन दिनों खूब फल-फूल रहा है। इसके कई कारण हैं। मसलन, जमीन भूमिधरी है। इलाके की दूरी क्रीम एरिया से ज्यादा नहीं है। सड़क बनवाने के लिए सांसद-विधायक निधि से पैसा मिल ही जाता है। बिजली की सप्लाई शहर जैसी ही है। नाली सीवर पर नगर निगम सभासदों के प्रस्ताव पर बनवा देता है। इन सब के साथ इन इलाकों में जमीन का दाम क्रीम एरिया के दाम से करीब पांच से आठ गुना तक कम है। रिस्क फैक्टर सिर्फ इतना है कि बाढ़ जाने पर पानी लग जाता है। यह खतरा भी सिर्फ एक महीने का है।
कहां कितना बढ़ा रेट
जगह पिछला रेट प्रस्तावित रेट
कैंटोनमेंट भीखी सराय 2700 2900
चांदपुर सलोरी 10000 10500
बक्शी खुर्द 11000 11600
बाघम्बरी गद्दी 11000 11600
बघाड़ा 11000 11600
बक्शी कछार 11000 11600
ओम गायत्री नगर 11000 11600
असदुल्लापुर बघाड़ा 8500 9000
फाफामऊ रंगपुरा 8500 9000
छिवइया कछार 3600 4200
झूंसी कोहना 8000 8500
दुबावल गांव 3600 4200
देवरिया गांव 3600 4200
बजरा 4000 4200
बनकट 3600 4200
नैनी 2300 3500
मदनवा गांव 2300 3500
मवइया उपरहार 2300 3500
महेबा पट्टी 8400 9000
लवायन खुर्द 2300 3500
अरैल कछार 5500 6000
करामत की चौकी 10000 10900
करैलाबाग 9000 9800
सदियापुर 12000 13000
यहां नहीं बढ़ा रेट
बेली कछार सात हजार
नवाबगंज कुरेसर कछार चार हजार
बेली कछार बारुदखाना सात हजार
फाफामऊ सात हजार
छतनाग 6600
कैसे पूरा होगा राजस्व लक्ष्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नदियों से पांच सौ मीटर की दूरी तक किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा रखी है लेकिन राजस्व विभाग पर यह प्रतिबंध बेअसर है। विभागीय सोर्सेज कहते हैं कि रजिस्ट्री तो किसी भी जमीन की हो सकती है। ज्यादा दिक्कत दाखिल-खारिज में भी नहीं आती। इसी के चलते नजूल और स्टेट लैंड की जमीनों की रजिस्ट्री तक हो जाती है। सोर्सेज की मानें तो शासन ने राजस्व विभाग को 26 फीसदी वसूली का लक्ष्य दिया है लेकिन सर्किल रेट महज दस फीसदी बढ़ा है। पब्लिक के प्रतिरोध के चलते फाइनल सूची में इसमें भी कमी आ सकती है।
नक्शा पास ही नहीं करवाते
कछार एरिया में मकान बनवाने में सिर्फ एक दिक्कत नक्शा पास न होने की है। इसका ड्रा बैक यह होता है कि लोन नहीं मिलता। इसका भी विकल्प पब्लिक ने यह खोज लिया है कि अपना पैसा लगाकर बनवा लो। निगरानी का जिम्मा एडीए के अफसरों का है और वे आराम से सेट हो जाते हैं। अपनी नौकरी बचाने के लिए नोटिस जारी कर देते हैं और इसके बाद सेटिंग करके फाइल दबा दी जाती है। मकान बन जाने के बाद इसे ढहाना चैलेंज हो जाता है।
बाढ़ का डर भी नहीं सताता
2013 के बाद इस साल अगस्त में बाढ़ की विभीषिका से लाखों लोग जूझ चुके हैं। नदियों की चपेट में आकर सैकड़ों घर धराशायी हो गए। लाखों-करोड़ों की गृहस्थी बाढ़ के पानी में बह गई। फिर भी लोगों का कछार का मोह कम नहीं हो रहा है। बाढ़ के जाते ही इन इलाकों में मकानों का निर्माण शुरू हो चुका है। आंकड़ों पर जाएं तो चालीस फीसदी जिला बाढ़ की चपेट में आ चुका था। दोआबा का क्षेत्र होने की वजह से हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ की संभावना बनी रहती है। फिर भी कछार में लगातार बन रहे मकानों पर रोक लगाना शासन व प्रशासन के बस की बात नहीं है।
यह अंतर खींचता है अपनी ओर
शहर के रिहायशी इलाकों के मुकाबले कछार की जमीनें काफी सस्ती हैं। उदाहरण के तौर पर लें तो सिविल लाइंस के डिफरेंट एरिया की जमीनों के दाम 27 से लेकर 37 हजार रुपए प्रतिवर्ग मीटर है। इसके ठीक उलट बेली हॉस्पिटल के पीछे के कछार एरिया में इसका रेट सिर्फ सात हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर है। इलाका शहर से लगा है और मेन से दूरी बमुश्किल एक किलोमीटर भी नहीं है। शहर में रहने के चक्कर में पब्लिक इस एरिया में होने वाली प्लाटिंग में पहले इंवेस्ट करती है और बाद में मकान बनवा देती है।
प्रशासन रेट बढ़ाकर किसी को बसने से नहीं रोक सकता। हमारा काम नेचर ऑफ मार्केट वैल्यू के हिसाब से जमीनों का रेट तय करना है। लोकेशन वाइज रेट डिसाइड किया जाता है। लीगली हम कछार के इलाकों की जमीनों का रेट अधिक नहीं बढ़ा सकते।
डीएस पांडेय, एडीएम वित्त एवं राजस्व, इलाहाबाद