प्रयागराज ब्यूरो । पितृ पक्ष में संगम किनारे पिंडदान के लिए आने वालों को ठगी का शिकार होना पड़ता है। ये बात दीगर है कि ठगी भी उनकी माली हालत के अनुसार होती है। तीर्थ पुरोहितों के एजेंट किसी भी हाल में यजमान को छोडऩा नहीं चाहते, भले ही पैसा कम मिले या ज्यादा। हालांकि कोशिश यही रहती है कि पिंड दान के लिए आने वाले यजमान की जेब खाली करा ली जाए। इसका सच जानने के लिए गुरुवार को नैनी स्टेशन पर सर्च किया गया तो पता चला कि ठगी का खेल यजमान के स्टेशन पर उतरते ही शुरू हो जाता है। इसके बाद उसके लौटने तक कुछ न कुछ बता कर पैसा ऐंठने की कवायद होती ही रहती है।

ट्रेन आते ही पहुंच गए एजेंट
नैनी जंक्शन पर करीब साढ़े नौ बजे पवन एक्सप्रेस पहुंंची। ट्रेन में पीछे की ओर लगे डिब्बे से तमाम यात्री उतरने लगे। अचानक कुछ लोगों ने यात्रियों को घेर लिया। वे यात्रियों से बात करने लगे। यात्रियों ने बताया कि वे पिंडदान के लिए आए हैं। इसके बाद एक एजेंट के साथ वे चले गए। अन्य एजेंट लौट गए। इस बीच दो एजेंट के बीच कहासुनी शुरू हो गई।
मोबाइल देखते ही हो गए चुप
यजमानों के साथ ठगी का खेल देखने के लिए नैनी स्टेशन पर मौजूद आईनेक्स्ट रिपोर्टर ने जैसे ही मोबाइल निकाल कर फोटो लेनी शुरू की। आपस में कहासुनी कर रहे दो एजेंट अलग हो गए और जाने लगे। रिपोर्टर ने उनसे विवाद की बात पूछने की कोशिश की मगर वे बगैर कुछ बोले निकल गए।

ऐसे होता है ठगी का खेल
पितृ पक्ष में मध्य प्रदेश के जिलों के ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए आते हैं। नैनी जंक्शन पर ट्रेन के पहुंचते ही तीर्थ पुरोहितों के एजेंट यात्रियों को घेर लेते हैं। एजेंट यात्रियों से पंडा का नाम पूछते हैं। अगर यात्री ने पंडा का नाम बता दिया तो उस पंडा का एजेंट यात्री को अपने साथ ले जाता है। इसमें एजेंटों के बीच कोई विवाद नहीं होता है। अगर यात्री तीर्थ पुरोहित का नाम नहीं बता पाया तो फिर भी एजेंट उस यात्री को अपने साथ ले जाने के लिए आपस में भिडऩे को तैयार हो जाते हैं। फिर जिस एजेंट का पलड़ा भारी रहता है यात्री उसका हो जाता है। एजेंट जब स्टेशन से यात्री को लेकर चलता है तो फिर ठगी का खेल होने लगता है।

ई-रिक्श वाले करते हैं मनमानी
पहली ठगी होती है नैनी से संगम पहुंचाने में। नैनी से संगम जाने में डेढ़ सौ रुपये अधिकतम ई रिक्शा वाले लेते हैं। मगर इन ई रिक्शा वालों को ढाई सौ से लेकर पांच सौ रुपये दिलवाया जाता है। फिक्स किराया ई रिक्शा वाले को दे दिया जाता है और बाकी का पैसा एजेंट का हो जाता है। इसके बाद अगर यात्री धर्मशाला में रुकता है तो वहां भी एजेंट का कमीशन फिक्स रहता है। धर्मशाला से निकलने के बाद यात्री को संगम में मुंडन के लिए ले जाया जाता है। सामान्य तौर पर तीस रुपये में मुंडन हो जाता है। मगर वहां पर पितृ पक्ष के नाम पर सौ से डेढ़ सौ रुपये तक वसूल लिए जाते हैं। नाई को तीस रुपये ही मिलते हैं बाकी का पैसा एजेंट का हो जाता है। इसके बाद नाव से संगम स्नान के लिए यात्री को ले जाया जाता है। नाव का किराया चालीस या पचास रुपये होता है। मगर यात्री से अस्सी से सौ रुपये लिया जाता है। यहां भी एजेंट का कमीशन तय होता है। संगम स्नान के बाद एजेंट यात्री को तीर्थ पुरोहित के पास पहुंचा देता है।
तीर्थ पुरोहित बताते हैं पूर्वजों का नाम
यात्री जब तीर्थ पुरोहित के पास पहुंचते हैं तो फिर वहां पर तीर्थ पुरोहित यात्री से उसके गांव का नाम पूछकर बही निकालते हैं। बही से उसके पूर्वजों का नाम देखकर बताते हैं। यात्री को यकीन हो जाता है कि वह सही जगह आ गया है। यहां पर अब फिर एजेंट सही जगह पहुंचाने के एवज में कुछ न कुछ रुपया यात्री से ऐंठ लेता है।
साल भर चलता है ठगी का खेल
संगम आने वाले यात्रियों के साथ ये खेल साल भर चलता है। दरअसल होता ये है कि पितृ पक्ष में भीड़ कुछ ज्यादा होती है। वरना साल भर लोग पिंडदान या अस्थि विसर्जन के लिए संगम आते ही रहते हैं। एजेंट बकायदा यहां आने वालों को अपना नंबर देते हैं। ताकि यहां से लौटने के बाद लोग जरुरत पडऩे पर एजेंट का नंबर अपने परिचितों को दे सकें।