-हाथापाई के दौरान कमजोर पड़ने के बाद हमलावरों ने मनीष को मारी थी गोली

-मनीष का दोस्त मिथुन भागता नहीं तो उसकी भी हो जाती हत्या

PRAYAGRAJ: हत्यारों ने मनीष के साथ अमानवीयता की हदें पार कर दी थीं। पहले उसकी जमकर पिटाई की गई। लेकिन मनीष और मिथुन मिलकर हमलावरों पर भारी पड़ रहे थे। इससे खुन्नस खाए बदमाशों ने मनीष पर फायरिंग की थी। इस बात की पुष्टि मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुई है। पोस्टमार्टम के दौरान मनीष के जिस्म से 15 छर्रे मिले हैं। वहीं हाथापाई की पुष्टि कछार के खेत में मिली मनीष की चांदी की चेन करती है। उसके सिर और हाथ पर भी गहरे जख्म थे। परिजन कहते हैं कि गोली लगने के बाद मिथुन जान बचाकर भाग गया होगा। चूंकि गोली मनीष के पेट में लगी थी लिहाजा वह भाग नहीं सका। गिरने के बाद भी हमलावरों ने उसकी जमकर पिटाई की थी। इसके बाद मामला छुपाने के लिए मनीष की बॉडी को गंगा नदी में फेंक दिया था। हालांकि मिथुन की हालत खतरे से बाहर बताई गई। मिथुन के बयान पर कुल पांच लोगों के खिलाफ नामजद केस दर्ज हुआ है। इसमें अब तक एक केवल राजा बाबू ही पकड़ा जा सका है।

खेत में मिली चेन बन गई क्लू

पुराना फाफामऊ निवासी मनीष का परिवार गंगा की रेती पर हर साल सब्जी की खेती करता है। इस बार घर वालों ने कद्दू और लौकी की खेती की थी। बड़े भाई सतीश ने बताया कि अविवाहित मनीष पुणे में रहता था। लॉकडाउन में वह घर गांव आया था। कोरोना के असर को देखते हुए घर वालों ने उसे जॉब पर वापस नहीं जाने दिया। इसके बाद मनीष कछार में सब्जी की खेती में जुट गया। वह नीलगाय से सब्जियों को बचाने के लिए रात में भी खेत पर ही रहता था। 16 दिसंबर को रात में खाना खाने के बाद वह रोज की तरह कछार स्थित खेत के लिए निकला था। हालांकि मेहंदौरी चौकी एरिया का मिथुन उसे कहां मिला, यह किसी को नहीं पता। इसके बाद से ही मनीष के परिवार वाले उसकी तलाश में थे। सतीश की मानें तो गुरुवार सुबह खेत में मनीष की चेन मिली थी। जहां पर चेन गिरी थी वहां स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि कुछ गड़बड़ है। यह चेन पास के जिस खेत में मिली थी वह राजा बाबू का था। बात मालूम चली तो पुलिस राजा बाबू की तलाश में जुट गई। वह पकड़ा गया तो नदी से मनीष की बॉडी बरामद हुई। मिथुन खतरे से बाहर बताया गया। पोस्टमार्टम बाद परिजन मनीष की बॉडी लेकर घर चले गए।

इस तरह कछार में होती है खेती

-गंगा के कछार यानी पाट में खेती के लिए जिगरा का होना बहुत जरूरी है।

-दबंगई से ही जिसने जितना एरिया घेर लिया वह उसी का माना जाता है।

-इसका किसी के नाम कोई पट्टा या सरकारी लिखापढ़ी नहीं होती।

-मनीष का परिवार हर साल की तरह करीब दस पंद्रह बिस्वा में खेती करता है।

-बताते हैं कि तेलियरगंज साइड से राजा बाबू फाफामऊ साइड जा पहुंचा।

-मनीष के घेरे हुए क्षेत्रफल से सटकर उसने भी एक बड़ा एरिया कब्जा कर लिया।

-राजाबाबू भी उस रेत के पाट पर सब्जी की खेती कर लिया और दोनों पड़ोसी हो गए।

अगल-बगल खेत में काम करते करते मनीष व राजा बाबू काफी क्लोज हो गए थे।

इसलिए होती है रेत पर कब्जे की जंग

-रेत पर की गई खेती से इनकम अधिक और लागत न के बराबर होती है।

-यदि सतीश की मानें तो रेत में घेरे गए एरिया में बस बीज बोने होते हैं।

-जुताई से लेकर निराई आदि के खर्च बिल्कुल नहीं लगते।

-एक दो पानी गंगा से लेकर दे दिया जाता है थोड़ी बहुत गोबर की खाद डाल देते हैं।

-इसके बाद सब्जी अपने आप तैयार हो जाती है। बस देखरेख करनी होती है।

-बीज और हजार रुपए के गोबर की लागत से इनकम लाखों में होती है।

मनीष मर्डर केस में कुल पांच लोग नामजद किए गए हैं। एक मुठभेड़ में गिरफ्तार है। शेष चार की तलाश में दबिश जा रही है।

-आशुतोष तिवारी, प्रभारी निरीक्षक सोरांव