अपर महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई का दिया हवाला

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राज्य सरकार ने लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुई तोड़फोड़ के आरोपियों का पोस्टर हटाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की है। सोमवार को दाखिल की गई रिपोर्ट के साथ सरकार ने कोर्ट से पोस्टर हटाने के लिए और समय मांगा है। अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी के अनुसार रजिस्ट्रार जनरल के यहां दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिस पर वहां वृहद पीठ के समक्ष सुनवाई होनी है। साथ ही राज्य सरकार द्वारा इसी मामले को लेकर अध्यादेश जारी किया गया है। इसी के आधार पर पोस्टर हटाने के आदेश का अनुपालन करने के लिए और समय मांगा गया है।

निजता के अधिकार के उल्लंघन का मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने सार्वजनिक स्थानों पर फोटो सहित पोस्टर लगाने को निजता के अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए उसे तत्काल हटाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा दाखिल करने पर याचिका निस्तारित होने का आदेश दिया था। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसे वृहद पीठ को भेज दिया गया है। राज्य सरकार ने बीते दिनों पोस्टर लगाने को वैध करार देने का अध्यादेश जारी कर कोर्ट के आदेश का अनुपालन करने से बचने का रास्ता खोज लिया है। अनुपालन रिपोर्ट न दाखिल कर सरकार ने हलफनामा दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की है।

यह है पूरा मामला

सीएए के खिलाफ दिसंबर 2019 में लखनऊ में ¨हसक प्रदर्शन हुआ था। प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। पुलिस व प्रशासन ने नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की। फिर जांच के बाद दोषी पाए गए लोगों की पहचान करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर उनकी फोटो सहित पोस्टर व होर्डिग लगवा दिया। लखनऊ प्रशासन की ओर से सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिग व पोस्टर में प्रदर्शनकारियों के चित्र लगाने को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की। जनहित याचिका में सरकार से पूछा गया था कि किस कानून के तहत आंदोलन के दौरान ¨हसा, तोड़फोड़ करने वालों की फोटो लगाई गई है? क्या सरकार बिना कानूनी उपबंध के निजता के अधिकार का हनन कर सकती है? इसकी सुनवाई के लिए आठ मार्च रविवार को अवकाश होने के बावजूद कोर्ट बैठी। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस प्रकरण पर सुनवाई की। प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने पक्ष रखते हुए पोस्टर व होर्डिग लगाने को सही बताया था। लेकिन, उनके तर्क से कोर्ट सहमत नहीं हुई।