राज्य सरकार व बेसिक शिक्षा परिषद से जवाब तलब

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्राइमरी स्कूल कौशांबी की प्रधानाचार्या को 10 साल बाद मेडिकल जांच में 40 फीसदी से कम विकलांगता के आधार पर बर्खास्त करने के आदेश पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार व बेसिक शिक्षा परिषद से 3 हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि दस साल के अंतराल के बाद आंख की विकलांगता स्तर में सुधार संभव है। इतने समय बाद मेडिकल जांच के आधार पर बर्खास्त करना विचारणीय हो सकता है। प्रथम दृष्टया सुनवाई का मौका दिये बगैर सेवा से बर्खास्त करना कानून के तहत टिके रहने योग्य नहीं है।

विशिष्ट बीटीसी में चयनित हुई थी

यह आदेश जस्टिस इर्शाद अली ने कुसुम सोनी की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता जयप्रकाश त्रिपाठी ने बहस की। याची अधिवक्ता का कहना है कि याची 2008 के विशिष्ट बीटीसी में चयनित हुई। आंख की 40 फीसदी विकलांगता के आधार पर कोर्ट में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त की गयी और कालांतर में उसे प्रोन्नति देते हुए प्रधानाध्यापिका बनाया गया। याची लगातार सेवारत है। विकलांगता प्रमाणपत्र प्रतापगढ़ के सीएमओ से प्रमाणित डॉक्टरों की टीम की जांच रिपोर्ट पर जारी किया गया था। विकलांग एसोसिएशन ने याचिका दाखिल की जो खारिज हो गयी। जिसे विशेष अपील में चुनौती दी गयी। जो मंजूर हो गयी। इस प्रकार सुप्रीमकोर्ट में एसएलपी दाखिल हुई। याची का किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय में डा। राममनोहर लोहिया हास्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने जांच किया और रिपोर्ट में विकलांगता 40 फीसदी से कम पायी गयी। जिस पर याची को 4 जून 18 व 15 मई 18 के आदेशों से बर्खास्त कर दिया गया।

आदेश को याचिका में चुनौती

इन आदेशों को याचिका में चुनौती दी गयी है। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में विकलांगता 40 फीसदी से कम होना बताया गया है और यह नहीं बताया गया है कि विकलांगता कितनी है। साथ ही उप्र राजकीय सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली 1999 का पालन नहीं किया गया। याची को अपनी सफाई का मौका दिया जाना चाहिए था। हो सकता है विकलांगता में सुधार हुआ हो।