-गवाहों के बयान को पुष्ट नहीं कर सके दस्तावेज

-दिल्ली, लखनऊ, रसूलाबाद व गांव में होना नहीं कर सके प्रमाणित

PRAYAGRAJ: कोर्ट में दस्तावेजी साक्ष्य पेश न कर पाना करवरिया बंधुओं के लिए मुसीबत बन गया। इसी तरह के साक्ष्यों के अभाव में चारों आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इनकी तरफ से कोर्ट में दिए गए अधिकांश साक्ष्य गवाहों के मौखिक बयान की बुनियाद पर ही टिके रहे। कुल 227 पेज के फैसले में इस बात का जिक्र कोर्ट ने भी किया है।

दी गई फोटो का निगेटिव रहा गायब

कोर्ट में बताया गया था कि सपा विधायक जवाहर पंडित की हत्या के दिन यानी 13 अगस्त 1996 को कपिलमुनि करवरिया व रामचंद्र त्रिपाठी लखनऊ में थे। मगर इनकी तरफ से इस बात को साबित करने का कोई साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका। इस बात को सिर्फ गवाहों के जरिए कोर्ट में साबित करने की कोशिश की गई थी। बचाव पक्ष की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि वारदात के दिन उदयभान करवरिया दिल्ली में थे। इस सम्बंध में भी कोर्ट को सिर्फ मौखिक साक्ष्य ही दिए गए। दिल्ली जाने का ट्रेन टिकट, किराए की टैक्सी या दिल्ली में किसी होटल की कोई रसीद आदि भी वे कोर्ट में पेश नहीं कर सके। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला को घटना के समय गांव के श्याम पैलेस सिनेमा में होने की बात भी मौखिक ही बताई गई। कोई ऐसे सुबूत नहीं दिए गए जिससे उनके वहां होने की पुष्टि हो सके। सूर्यभान करवरिया को घटना के समय रसूलाबाद घाट पर होना बताया गया था। कहा गया था कि छेदी सिंह के बाबा के अंतिम संस्कार में शामिल थे। कोर्ट ने मत देते हुए कहा है कि यदि मान भी लें कि उनकी मृत्यु 13 अगस्त 1996 को हुई थी तो भी अंतिम संस्कार का शाम चार से सात बजे तक चला। अंतिम समय तक घाट पर वह रहे इस बात का भी कोई लिखित साक्ष्य इनकी तरफ से कोर्ट को नहीं दिया जा सका। इस बात की कोर्ट में दाखिल की गई फोटो निगेटिव पेश नहीं की गई। ऐसे में विपक्ष ने तर्क दिया कि फोटोग्राफी में किसी भी प्रकार से छेड़छाड़ हो सकती है।

विवेचना में भी मिले मौखिक तथ्य

फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा है कि विवेचक पीएन निगम बचाव पक्ष के साक्षी छेदी सिंह, सुरेंद्र सिंह, हुकुमचंद्र के बयान पर मान लिया था कि मारुति वैन यूपी 70-8070 का घटना में प्रयोग नहीं हुआ। जबकि वारदात के तत्काल बाद लिखाई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट में इस नंबर का जिक्र है। विवेचक भी साक्षी के मौखिक बयान के सिवा इस बात का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं दे सका कि कार घटना के वक्त रसूलाबाद घाट पर ही थी। इसी तरह विवेचना में भी विवेचक द्वारा सिर्फ मौखिक साक्ष्य को आधार बनाया गया।

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बचाव पक्ष की दलील

-अभियुक्तगण का यह पहला अपराध है, इसके सिवा इनका कोई अन्य आपराधिक इतिहास नहीं है।

-अभियुक्त द्वारा कारित अपराध विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में नहीं है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह अंकित नहीं है कि किस अभियुक्त के हाथ में कौन सा हथियार था।

-न ही किसी विवेचक को यह बात बताई गई, बीस वर्ष बाद पहली मर्तबा कोर्ट में यह बात बताई गई।

-इसलिए उदारता बरतते हुए कम से कम दंड दिए जाने का अधिवक्ता ने कोर्ट से आग्रह किया, अभियुक्त में से किसी ने भी सजा के प्रश्न पर कुछ नहीं कहा।

पीडि़त पक्ष का तर्क

-इसके विपरीत विशेष लोक अभियोजन सीबीसीआईडी, जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी व पीडि़त पक्ष के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखा।

-कहा कि अभियुक्तों द्वारा हत्या जैसा जघन्य अपराध किया गया है जो उदारता बरतने के योग्य नहीं है। कठोर से कठोर दण्ड से दण्डित किया जाय।

-दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने पत्रावली का अवलोकन किया, पाया कि उनका यह पहला अपराध है।

-कपिलमुनि, उदयभान व सूरज भान करवरिया सगे भाई हैं। वहीं अभियुक्त रामचंद्र त्रिपाठी कल्लू की उम्र 64 साल से अधिक है।

-अभियुक्तगण चार साल अधिक समय से जेल में हैं, निश्चित रूप से यह एक क्रूर हत्या है। परिस्थितियां किसी को यह अधिकार नहीं देतीं कि वह अवैध रूप से किसी को जीवन के अधिकार वंचित कर दे

सोमवार को सजा के बिंदु पर बहस मेरे द्वारा अधिक से अधिक सजा की मांग की गई। कुल 18 दिनों तक चली बहस में दोषियों के खिलाफ कई तरह के सुबूत कोर्ट में पेश किए गए। बचाव पक्ष की ओर से सारे तथ्य गवाहों के बयान पर ही रहे।

-गुलाबचंद्र अग्रहरि, डीजीसी क्रिमिनल