-कोरोना से ठीक होने के बावजूद पोस्ट इफेक्ट से गई लोगों की जान

-कई केसेज में लंग्स खराब होने का मामला आया सामने

-मरीजों को ठीक होने में लग जाता है लंबा समय

केस-1

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की पौत्रवधू डॉ। अर्चना त्रिपाठी का गुरुवार को निधन हो गया। उन्हें कुछ दिन पहले कोरोना हो गया था। घरवालों ने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया। इलाज के दौरान उनका लंग्स इंफेक्शन बढ़ गया। हालांकि इलाज के बाद उनका कोरोना ठीक हो गया लेकिन लंग्स डैमेज हो गए। घर पर उन्हें ऑक्सीजन पर रखा गया। एक सप्ताह बाद के बाद उनकी मौत हो गई।

केस-2

स्वास्थ्य विभाग के पूर्व कोविड नोडल अधिकारी व एसीएमओ डॉ। गणेश प्रसाद भी कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। उनका लंबा इलाज चला। कोरोना निगेटिव होने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। मजबूरी में परिजनों को उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई। डॉक्टरों के मुताबिक इंफेक्शन से उनका फेफड़ा काफी डैमेज हो चुका था।

केस-3

सिविल लाइंस के शकुंतला हॉस्पिटल के संचालक डॉ। अनुपम जायसवाल कोरोना से पीडि़त हो गए थे। उनका लखनऊ के प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज किया गया। इससे वह कोरोना मुक्त हो गए लेकिन इस बीच उनके शरीर में कोरोना के इंफेक्शन से काफी नुकसान पहुंच चुका था। काफी कोशिशों के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।

PRAYAGRAJ: कोरोना से प्रभावित होने वाले किस हाल से गुजरते हैं, यह केवल वही बता सकते हैं। एक बार यह बीमारी लग जाए तो लंबे समय के लिए अपने निशान छोड़ जाती है। कई मामलों में इस बीमारी से मरीजों की जान भी चली जाती है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब कोरोना तो ठीक हो गया। लेकिन इसके चलते शरीर में हुई दिक्कतों ने लंबे समय तक मरीजों को परेशान किया।

खराब हो जाते हैं फेफड़े

एक बार कोरोना होने के बाद सबसे ज्यादा फेफड़ों पर असर पड़ता है। इससे मरीज का श्वसन तंत्र पटरी से उतर जाता है। उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। कई केसेज में कोरोना ठीक होने के बाद मरीजों के फेफड़ों में जबरदस्त इंफेक्शन रहा जो उसकी अंत में जान लेकर गया। डॉक्टर्स ने ऐसे मरीजों को बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली।

नाक और मुंह से एंट्री करता है वायरस

-बता दें कि कोरोना वायरस बॉडी में नाक और मुंह के रास्ते एंट्री करता है।

-इसके बाद यह वायरस गले के रास्ते फेफड़ों को संक्रमित करता है।

-वायरस फेफड़ों के ऊपर एक लेयर तैयार करता देता है जिससे ऑक्सीजन पूरी तरह नहीं पहुंचती।

-इससे खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और मरीज की मौत हो जाती है।

-यही कारण है कि कोरोना के मरीज का कुछ समय अंतराल में ऑक्सीजन लेवल चेक किया जाता है।

-डॉक्टरों के अनुसार 94 से कम ऑक्सीजन लेवल होने का मतलब है कि इंफेक्शन फेफड़े तक पहुंच चुका है।

इसलिए हो जाती है मौत

-कोरोना वायरस का अपना एक पीरियड होता है।

-यह 14 दिन बॉडी में रहता है। इसके बाद व्यक्ति कोरोना मुक्त हो जाता है।

-लेकिन इन 14 दिनों में कोरोना से शरीर को काफी नुकसान पहुंचता है।

-गला, फेफड़ा, लिवर, किडनी आदि को यह वायरस प्रभावित करता है।

-जिन लोगों को शुगर या बीपी की शिकायत होती है, उनके लिए यह वायरस अधिक खतरनाक साबित होता है।

-उनको कोरोना से बचने के तमाम उपाय करने चाहिए।

कई मामलों में गई है जान

अब तक जिले में कोरोना से 341 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन दर्जनों ऐसे मामले भी हैं जिनमें कोरोना मुक्त होने के बाद मरीज की मौत हो गई। ऐसे मरीजों की गिनती सरकार के अंाकड़ों में नहीं होती है। यह चिंता का विषय है। जबकि जिन लोगों की कोरोना इंफेक्शन के प्रभाव से जान गई है उनका रिकॉर्ड भी तैयार होना चाहिए। वह कोरोना मुक्त हो गए, यह कहकर सरकारी मशीनरी को पल्ला नहीं झाड़ना चाहिए।

जो लोग कोरोना निगेटिव होने के बाद घर चले जाते हैं और उसके बाद उनकी मृत्यु हो जाती है तो उनकी जानकारी नहीं मिल पाती। इसलिए उनका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नही हो पाता। कोरोना निगेटिव होने के बाद भी अपना चेकअप कराते रहना चाहिए। जिससे पता चल सके कि पोस्ट कोरोना इफेक्ट से कोई प्रॉब्लम तो नहीं क्रिएट हो रही है।

-डॉ। ऋषि सहाय, नोडल कोविड 19 प्रयागराज