प्रयागराज ब्यूरो । शहर के सिमटते तालाबों की सुरक्षा को लेकर डीएम से लेकर नगर निगम तक बेफिक्र हैं। उपेक्षा के चलते शहर के तमाम तालाबों को पाटकर चंद लोगों ने हवेलियां खड़ी कर रखी है। कुछ जो बचे हैं उनके भी अस्तित्व पर देखरेख के अभाव में खतरा मंडरा रहा है। तालाबों पर हो रहे कब्जे को देखने व रोकने के बजाय इलाकाई लेखपाल आंख में पट्टी बांध रखे हैं। प्रशासनिक मशीनरी द्वारा की जा रही अनदेखी यही रही तो वह दिन दूर नहीं जब शहर से तालाबों का नामोनिशान मिट जाएगा। कुछ ऐसी ही दीन और हीन दशा है अल्लापुर बक्सी उपरहार तालाब की। इस तालाब के काफी हिस्से पर सफेदपोशों ने घर और स्कूल की बिल्डिंग बना रखी है। तालाब का जो हिस्सा बचा है उस पर भी लोगों की नजर गड़ी है। तालाब में पानी है पर घास की वजह से वे अच्छे से नजर नहीं आता। गंदगी के चलते यह तालाब खून पीने वाले मच्छरों का आशियाना बन गया है।

मवेशी पीते थे पानी, धुलते थे कपड़े
अल्लापुर बक्सी उपरहार तालाब की कंडीशन पर बात करते ही लोग खुलकर कुछ बोलने से साफ मना कर देते हैं। इस इंकार के पीछे तालाब पर कब्जे को लेकर पूर्व में हो चुका विवाद बताया जा रहा है। खैर तालाब से जुड़ी किवदंतियों के बारे में वे बहुत कुछ बताते हैं। कहते हैं आज से पंद्रह बीस साल पहले इस तालाब का इकबाल बुलंद हुआ करता था। बात उन दिनों की है जब तालाब अपने पूरे शक्ल-ओ-सुआब पर था। बताते हैं कि बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि इस तालाब में हाथी जितना डुबाव यानी गहराई थी। पास में गंगा नदी होने के कारण इस तालाब में लोग नहाते तो नहीं थे, पर कपड़ा धुलने व मवेशियों को नहलाने एवं पानी पिलाने का काम किया करते थे। कछार में तब बैल से खेतों की जुताई हुआ करती थी। लोग बैल को इसी तालाब में पानी पिलाकर पेड़ों के नीचे आराम के लिए बांधा करते थे। शादी विवाह जैसे कार्यक्रमों में तालाब पूजन की परंपराएं भी यहां लोग मनाया करते थे। कहते हैं कि उस दौर के बुजुर्गों कहा करते थे कि इस तालाब का पानी काफी साफ हुआ करता था। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया तालाबों को लेकर लोगों की सोच व नजरिया चेंज होता गया। दौर बदला और तालाबों के प्रति लोगों की मंशा बदलती चली गई। अभी कुछ साल पूर्व एक वक्त आया जब इस तालाब को पाटकर चंद सफेदपोशों ने कब्जा शुरू कर दिया।


पार्षद संग पब्लिक ने किया था संघर्ष
चंद लोगों के द्वारा तालाब पर कब्जा करके हवेलियां बनवाई जा रही थीं। बताते हैं कि उनकी मंशा इस तालाब पर स्कूल व कॉलेज बनाने का भी था।
यह बात कुछ साल पुरानी है जब तालाब पर कब्जा व बिल्डिंग बनाने की खबर पार्षद विनय कुमार मिश्र उर्फ सिंटू तक पहुंचे तो बगावत शुरू कर दिए थे।
दबी जुबान लोग बताते हैं कि तालाब को बचाने के लिए कई दिनों तक पार्षद ने संघर्ष किया था।
कब्जा कर मकान व बिडिंग बनाने वालों के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोला तो बात काफी बढ़ गई थी।
खुद पार्षद विनय कहते हैं कि काफी संघर्षों के बाद वह बचे हुए तालाब को संरक्षित करने में कामयाब हुए।
पार्षद ने कहा कि तालाब को बचाने जैसे नेक काम में उस वक्त कुछ बड़े बुजुर्गों का सराहनीय साथ आज भी वह याद करते हैं।
कई दिनों तक तालाब के अस्तित्व को लेकर संघर्ष चला था। तब जाकर इस तालाब का कुछ हिस्सा आज भी सुरक्षित बचा हुआ है।


यदि स्वार्थ नहीं तो अनदेखी क्यों?
मकान के नीव की ईंट रखते ही कानूनी कोड़ा लेकर आंख तरेररे वाले लेखपाल व पीडीए और नगर निगम के जिम्मेदारों पर तालाबों के कंडीशन से गंभीर सवाल उठ रहे हैं। लोगों का प्रश्न यह है कि आखिर जब तालाबों पर कब्जा हो रहा था या होता है तब इन लोगों की आंख में पट्टी क्यों बंध जाती है। कोई अपनी जमीन पर एक ईंट रख देता है तो इनके कान के पर्दे फटने लगते हैं, फिर यहां तालाब को पाटकर हवेलियां बना ली जाती हैं और इन्हें यह सोते रहते हैं? प्रश्न यह भी है कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो सकता है। बगैर स्वार्थ के आन में इतनी तगड़ी रुई और आंख पर पट्टी यह लोग कैसे बांध सकते हैं। सवाल यह भी कि आखिर जब हर चीज का डीए व एसटीएम एवं अफसर चेकिंग और निरीक्षण करते हैं, तो इन तालाबों को देखना मुनासिब क्यों नहीं समझते। जबकि वाटर रिचार्जिंग के लिए यही तालाब एक मात्र बेहतर व अहम जरिया है। जिस वाटर रिचार्जिंग पर यह अधिकारी लाखों करोड़ों रुपये खर्च करते हैं, उसकी काम करने मुफ्त में करने वाले इन तालाबों की सुरक्षा का दायित्व प्रशासनिक अमला गंभीरता से क्यों नहीं उठाता। इसके पीछे इस प्रशासनिक मशीनरी की कोई मजबूरी होती है या स्वार्थ फिलहाल यह कह पाना काफी मुश्किल है।


काफी संघर्ष के बाद अल्लापुर बक्सी उपरहार तालाब का जितना हिस्सा सेफ है बचाया गया। इस पर कुछ लोग खुलेआम कब्जा करके बिल्डिंग बना रहे थे। इस तालाब को बचाने के लिए कई दिनों तो बड़ी लड़ाई लडऩी पड़ी थी। इसकी सफाई के लिए नगर निगम को पत्र लिखा जाएगा।
विनय कुमार मिश्र उर्फ सिंटू, पार्षद पूरा पड़ाइन अल्लापुर