इलाहाबाद के पूजा पंडालों में देखा जा सकता है कोलकाता कल्चर

सिटी में स्थापित हैं बंगाली समाज के 163 पूजा पंडाल

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: इन दिनो पश्चिम बंगाल में विश्व प्रसिद्ध दुर्गा पूजा की धूम है तो इलाहाबाद भी पीछे नहीं। शारदीय नवरात्रि में यहां भी कोलकाता कल्चर नजर आ रहा है। सिटी में बंगाली समाज के 163 पूजा पंडाल सजाये गये हैं। इनमें ढाक की थाप सुनाई देने लगी है। पूजा पंडालों में बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा किए गए श्रृंगार का नजारा ही दिव्य है। यहां पहुंचने वाली महिलायें और पुरूष भी बंगाली कल्चर के पारंपरिक परिधानों में नजर आयेंगे।

पुष्पांजली के बाद मां का आह्वान

सेंट्रल बारवारी दुर्गा पूजा कमेटी द्वारा गोविन्दपुर में पुलिस चौकी के पीछे पंडाल में मां के आकर्षक स्वरूप की स्थापना की गई है। यहां खड़गपुर से आये पुरोहित सौमित्र चक्रवर्ती और जोलाधर चक्रवर्ती से दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बात की। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सप्तमी की पूजा केले के पेड़ में नवदुर्गा के आह्वान के साथ की गई है। इसके पहले गंगा के तट पर पुष्पांजली के साथ पूजन की शुरूआत की गई।

कुर्सी-मेज पर बैठ ग्रहण करें प्रसाद

कमेटी के सेक्रेटरी राहुल कीर्ति ने बताया कि हमारे यहां लोगों को जमीन पर बैठाकर प्रसाद का वितरण नहीं किया जाता। मां को चढ़ाये गये भोग को पूरे प्रसाद में मिलाकर जो वितरित किया जाता है, उसे लोग कुर्सी मेज पर बैठकर खाते हैं। देवी मां को जो साड़ी पहनाई गई है। उसे सफेद और लाल रंग के अलग लुक में विशेष तौर पर बनवाया गया है।

पूजा से पहले जानें ये बातें

बोधन और अधिवास विधि के तहत मां का आह्वान करके पूजा की शुरूआत, सुबह- शाम उन्हें आने के लिये निमंत्रण देना

थाल में सजाई जाती है श्रृंगार की पूरी सामग्री, इसमें मिट्टी, शीशा, सिंदूर, कंघी, बिन्दी, चूड़ी जरूरी

शांतिजल से होता है शुद्धिकरण

मां के श्रृंगार में अस्त्र-शस्त्र, 108 फूलों की माला, बेलपत्र, जवा, कमल व गुड़हल के फूल की माला को किया जाता है शामिल

ऐसे लगता है मां को भोग

पांच तरह की सब्जी मिलाकर बनाया जाता है चचड़ी (खिचड़ी) का भोग

इसके अलावा खीर, बूंदी, सब्जी जैसी चीजें बिना लहसुन मिर्च के बनाई जाती हैं

पचफोरन से लगता है छौंका

इसमें राई, सरसो, सौंफ, मेथी और मोरी को किया जाता है शामिल

बंगाल में जीव की बली दी जाती है। लेकिन यहां ऐसा नहीं होता। बंगाली समाज दुर्गा पूजा पंडालों में कुंवारी कन्या को बैठाकर उनकी भी पूजा करता है। क्योंकि उन्हें देवी का रूप माना जाता है।

सौमित्र चक्रवर्ती, पुरोहित

गोविन्दपुर पूजा कमेटी ही एकमात्र ऐसी है। जहां सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। 05 अक्टूबर को धन समृद्धि के लिये लक्ष्मी पूजा का भी आयोजन किया गया है।

जोलाधर चक्रवर्ती, पुरोहित

हमने ढाक बजाने वाले ढाकी कलकत्ता से बुलाये हैं। इनके नाम बलराम दास और कांती दास हैं। इनके पूर्वज बेचन और लोचन भी ढाक बजाने के लिये पिछले 28 वर्षो से आ रहे हैं।

छोबी बनर्जी, कमेटी की फाउंडर मेम्बर

माता को गरदगा की साड़ी पहनाई गई है। बंगाली समाज के लोग अपने पारंपरिक रीति रिवाज से हर वर्ष यह आयोजन करते हैं। इसमें हिन्दू समाज के सभी वर्गो के लोग हिस्सा लेते हैं।

रीता चौधरी, कमेटी की सेक्रेटरी