प्रयागराज (ब्‍यूरो)। सोमवार को प्रयागराज लखनऊ राजमार्ग पर संदीप पाल की बॉडी रखकर चक्काजाम कर दिया गया। करीब साढ़े चार बजे अचानक चक्काजाम से अफरातफरी मच गई। देखते ही देखते राजमार्ग पर हजारों वाहनों की कतार लग गई। पुलिस मौके पर मौजूद थी, मगर पुलिस चक्काजाम रोक नहीं पाई। पुलिस ने विरोध किया तो भीड़ आक्रोशित हो गई। जिस पर पुलिस पीछे हट गई। परिजन और परिचित बॉडी रोड पर रखकर बैठ गए।

कई विधायक पहुंचे संदीप के घर
सोमवार को दोपहर बाद प्रतापगढ़ रानीगंज के विधायक डा.आरके वर्मा, विधायक पूजा पाल, जया उमेश पाल और विधायक गुरु प्रसाद मौर्य संदीप पाल के घर पहुंचे। इस दौरान करीब सवा चार बजे संदीप की बॉडी गद्दोपुर पहुंची। पुलिस साथ थी, मगर घरवालों ने हाइवे पर एंबुलेंस रोक लिया। पुलिस ने परिवार को रोकने की कोशिश की, मगर आक्रोश को देखते हुए पुलिस खामोश हो गई। घरवालों ने हाइवे पर संदीप की बाडी रख दी, इसके बाद खुद भी बैठ गए। कुछ देर में सभी नेता भी आ गए। संदीप के चाचा परमानंद ने बताया कि गद्दोपुर में पुलिस चौकी बनाने, परिवार के चार लोगों को शस्त्र लाइसेंस देने, पच्चीस लाख रुपये आर्थिक सहायता, एक सरकारी नौकरी की डिमांड अफसरों से की गई। जिस पर एसडीएम सोरांव ने शस्त्र लाइसेंस देने और पुलिस बूथ बनाने के अलावा ग्राम सभा की खाली जमीन का पट्टा देने की मांग मान ली। इसके बाद बॉडी को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया।

बुझ गया घर का दीपक
संदीप पाल की उम्र 27 साल थी। उसके पिता संतोष पाल की तबियत खराब रहती है। जब से संदीप पाल ने होश संभाला है तब से वह दूध का धंधा करता था। दूध का धंधा करके उसने अपने परिवार की माली हालत को दुरुस्त किया। वह नेता गीरी में भी रहता था। जिसकी वजह से उसकी जान पहचान दूर दूर तक थी। इसी वजह से उसकी मौत होने पर कई विधायक और क्षेत्रीय नेता पहुंचे।

गांव के लोगों में जबरदस्त आक्रोश
पुलिस ने रात में मुठभेड़ में बुल्ले को पकड़ा तो इसकी सूचना रात में ही गांव में दी गई। मगर इसके बाद भी गांव वालों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था। गांव के लोगों में आक्रोश इस बात को लेकर है कि पुलिस रूदापुर में रहने वाले बदमाशों पर सख्त कार्रवाई नहीं करती है।

घर में रहा मातम
संदीप पाल की मौत का असर ये रहा कि गांव के हर घर में मातम का माहौल था। रात से ही महिलाओं की भीड़ संदीप पाल के घर जमा थी तो बाहर पुरुष बैठे थे। हाल ये था कि संदीप पाल के घर जाने वाले रास्ते पर भीड़ के चलते तिल रखने की जगह नहीं थी।