प्रयागराज ब्यूरो । इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स की प्रयागराज शाखा की अध्यक्ष डॉ। रितु जैन ने बताया कि बच्चों में 5 से 7 फीसदी तक दमा और एलर्जी के मामले सामने आ रह हैं। जबकि व्यस्कों में यह बीमारी दो फीसदी तक ही मिलती है। इसके कई कारण हैं। शुरुआत में परिजन बच्चों में सांस की एलर्जी की शिकायत को अनदेखा करते हैं और बाद में यही दमा का रूप ले लेती है। अगर पांच साल तक के बच्चे का समय रहते इलाज करा लिया जाए तो उसे भविष्य में दमा की तकलीफ से बचाया जा सकता है।

बेहद फायदेमंद है इनहेलर

डॉ। रितु जैन का कहना है कि बच्चों में दमा के इलाज में इनहेलर का उपयोग बतौर इलाज काफी सफल है, लेकिन लोगों मे इसको काफी भ्रांतियां हैं। जबकि ऐसा नही है। इनहेलर से मरीज को अधिक आराम मिलता है। ऐसे बच्चों के परिजनों की काउंसिलिंग की जाती है और उनको इनहेलर के फायदे के बारे में बताया जाता है। बताया कि बाजार में इस समय कई ऐसे इक्विपमेंट हैं जिससे दमा की जानकारी और इलाज में काफी सहायता मिल सकती है। फ्लो मीटर के जरिए दमा के लक्षणों का शुरुआती पता लगाया जा सकता है।

वर्कशाप में रखे विचार

रविवार को इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के सभागार में हिंद एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक की अस्थमा ट्रेनिंग मॉड्यूल वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस दौरान कानपुर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रो। डॉ। तिलक राज ने कहा कि दुनिया के कई महान और नामचीन व्यक्तियों को दमा की शिकायत थी लेकिन कोई उनकी सफलता की सीमाओं को बांध नही सका। सोसायटी की अध्यक्ष डॉ। रीतू जैन ने बताया कि इस कार्यशाला में सभी आईपी के 150 से अधिक सदस्यों को आमंत्रित किया गया है। इस कार्यशाला में प्रशिक्षण दिया गया है कि कैसे अस्थमा की जांच कराएं और उपचार कैसे हो। जिसमें आईपी के सदस्यों को प्रशिक्षण कानपुर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर डॉ। राज तिलक, दिल्ली से डॉ। कमल सिंघल व लखनऊ से डॉ। शुतांशु श्रीवास्तव ने दिया। बताया कि ठंड के मौसम में पाल्यूशन बढऩे से दमा की शिकायत में इजाफा होता है।

किसने क्या कहा?

कानपुर मेडिकल कॉलेज पूर्व प्रो। डॉ। तिलक राज ने बताया कि अस्थमा बच्चों को होने वाली दीर्घकालीन ब्याधी है। जो माता-पिता के द्वारा भीनमें आती है। सांस लेने में परेशानी होना, नीला पड़ जाना, छाती में कसापन महसूस होना, लगातार खांसी आना, सांस में सीटी बजना, दौडऩे पर खांसी आना, हंसने के दौरान खांसना, रोने के बाद खांसी आना यह अस्थमा के लक्षण हैं.इसके अलावा आरएमएल अस्पताल के पीडियाट्रिशन डॉ। शुतांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अस्थमा तेजी से बढ़ रहा है। मरीजों में इन्हेलर और दवा का समय पर शुरू होना ज्यादा कारगर है। दिल्ली से आए प्रो। कमल कुमार सिंघल ने कहा कि अनुवांशिक बीमारी को पूरी तरह से खत्म तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन एहतियात के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है।

मिला मशीन चलाने का प्रशिक्षण

रविवार को वर्कशॉप सुबह आठ से शाम पांच बजे तक चली। जिसका संचालन डॉ। रितु जैन ने किया। इस कार्यशाला में 60 बाल्य रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया। बताया गया कि बच्चों में दमा का उपचार कैसे इनहेलर के प्रयोग से बेहतर किया जा सकता हैं, इस की पूरी जानकारी दी गई। दमा की बीमारी का पता लगाने के किए उपयोग में आने वाली मशीन का प्रशिक्षण भी दिया गया। साथ ही श्रोताओं को दमा के आने वाले समय में खतरे के बारे में भी जानकारी दी गई।