200 के करीब है सिविल लाइंस में कपड़ों की दुकानें

50 लाख रुपये के करीब ठीक-ठाक व्यापारी लगन से पहले मंगाते थे माल

10 लाख रुपए करीब भी इस बार नहीं मांगा रहे व्यापारी माल

25 हजार से अधिक काम करने वाले लोग हैं जुटे

22 सौ से अधिक जिले भर में कपड़ों की दुकानें

08 से 10 स्टॉफ एक कपड़े की दुकान पर करते हैं काम

लोगो: बिजनेस अनलॉक, इनकम लॉक

-दिनभर में गिने-चुने मिल रहे कस्टमर, नहीं निकल पा रहा खर्च

-लहंगा, गाउन ड्रेसेस व महंगी व डिजायनर साडि़यां खोले हो जा रहा हफ्तों

PRAYAGRAJ: कोरोना के कहर में कपड़ा व्यवसाय को भी बड़ा झटका लगा है। बिजनेस अनलॉक होने के बाद भी व्यापारी रो रहे हैं। बात चाहे साड़ी, लहंगा, शूट की हो या बच्चों व बड़ों के रेडिमेड, हैंडलूम, होजयरी की। पहले की तुलना में औसत 80 परसेंट तक कारोबार कमजोर हुआ है। कोरोना से पहले जहां हर दिन पचास हजार तक की सेल होती थी। वहीं अब दिनभर में दस हजार तक का माल बेचना मुश्किल हो गया है।

पुराने स्टॉक से ही चला रहे काम

कपड़ा रेडीमेड का कारोबार करने वाले व्यापारियों का कहना है कि सालभर में सबसे अच्छी कमाई शादी के सीजन में होती है। अप्रैल में कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया। इससे पूरा सीजन बिजनेस रहा। आने वाले शादी के सीजन से कोई उम्मीद थी। लेकिन जो हालत हैं उसे देखकर लगता नहीं कि कुछ होगा। जबकि सीजन आने से तीन महीने से ही कपड़ों का बाजार गुलजार हो जाता था। यहीं नहीं स्कूल न खुलने से स्कूल ड्रेस की बिक्री भी पूरी तरह से ठप है। आने वाले शादी के सीजन में ब्रिकी की कोई खास उम्मीद नहीं है। जो कपड़ों का स्टॉक रखा है। उसी से इस बार काम चलाया जा रहा है। नया माल बहुत सेलेक्टेड ही मंगाया जा रहा है।

त्योहारी व लगन सीजन आने दो से तीन महीने पहले ही नया माल मांगने के लिए ऑर्डर बुक हो जाते थे। लेकिन इस बार बुक नहीं किया गया। मार्केट बिल्कुल ठंडा पड़ा है। डेली छह-सात कस्टमर मिल जाये बड़ी बात है।

-मनदीप सिंह नरूला, सरदार क्रिएशन फील द ब्यूटी, सिविल लाइंस

एक तो सिविल लाइंस एरिया का रेंट इतना है कि पूछो मत। ऊपर से बिजली का बिल, स्टाफ की सैलरी सब जेब से जा रहा है। लाइट न रहने पर डीजल तक का पैसा जेब से जा रहा है। पूरा-पूरा दिन बीत जाता है। कस्टमर एक या दो आते हैं।

-रमनदीप सिंह नरूला, दशमेश ट्रेडर्स

स्कूल बंद होने से स्कूल ड्रेस तक नहीं बिक रहे हैं। इस बार ज्यादा नया स्टॉक का ऑर्डर नहीं किया है। नहीं तो हर साल बीस लाख तक माल का ऑर्डर चला जाता था। बिजनेस अनलॉक जरूर है। मगर मार्केट में खरीदने वाले गायब हो गए हैं।

-मनीष रस्तोगी, राजघराना विवेकानंद मार्केट