कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन

स्क्रूटनी और आरटीआई को लेकर ऑफिसर्स में भी कंफ्यूजन है
उन्होंने स्क्रूटनी के लिए पहले से ही समय सीमा डिसाइड कर रखी हैऐसे में बाद में अगर आरटीआई के तहत अप्लीकेशंस आती हैं तो उनका क्या होगा? स्टूडेंट्स का कहना है कि अगर आरटीआई के तहत कॉपी देखने में कोई क्वेश्चंस चेक नहीं है या मॉर्किंग में गड़बड़ी है तो माक्र्स कैसे मिलेंगे? क्या उसके लिए बाद में स्क्रूटनी होगी? या फिर उसके माक्र्स आरटीआई के तहत कॉपी देखने के दौरान ही करेक्शन कर दिए जाएंगे? इस पर ऑफिसर्स के पास भी कोई जवाब नहीं है

तो आरटीआई ही बेस्ट है

शुभम तो मात्र एक एग्जाम्प्ल है
ऐसे कई ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो एक सब्जेक्ट या एक से ज्यादा सब्जेक्ट में कम माक्र्स होने की वजह से परेशान हैंउन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि इतने कम माक्र्स उन्हें कैसे मिल सकते हैं? ऐसे में वह कंफ्यूज्ड हैं कि अगर चार सब्जेक्ट की स्क्रूटनी कराते हैं तो उन्हे चार सौ रुपए लगेंगे जबकि आरटीआई में दस रुपए के पोस्टल ऑर्डर की जरूरत होती हैइसमें खर्च भी कम होगा और उन्हें असलियत भी पता चल जाएगा क्योंकि स्क्रूटनी में तो कॉपी भी देखने को नहीं मिलेगी

दोनों दोराहे पर

यूपी बोर्ड पहले ही डिसीजन ले चुका है कि रिजल्ट डिक्लेयर होने के एक महीने तक ही स्क्रूटनी के लिए आवेदन लिए जाएंगेयानि इंटरमीडिएट का रिजल्ट पांच जून को डिक्लेयर हुआ था और स्क्रूटनी फॉर्म पांच जुलाई तक जमा होंगेस्क्रूटनी और आरटीआई का प्रॉसेस भी बिल्कुल साफ हैइसके बावजूद ऑफिसर्स और स्टूडेंट्स दोनों दोराहे पर हैंऑफिसर्स की मानें तो स्क्रूटनी के लिए पहले से ही समय सीमा निर्धारित कर दी गई हैइसके बाद अगर आरटीआई में कॉपी देखने के बाद कोई स्क्रूटनी कराना चाहता है तो यह पॉसिबल नहीं हैऐसे में फिर आरटीआई से कॉपी देखने को मतलब क्या रह जाएगा?

जब बोर्ड की ओर से पहले ही स्क्रूटनी की तिथि निर्धारित है तो बाद में स्क्रूटनी का कोई प्रावधान नहीं हैअगर आरटीआई के तहत ऐसे केस आते हैं तो उसमें संशोधन हो या न हो ये बोर्ड के ऊपर डिपेंड है
-प्रदीप कुमार, अपर सचिव, रीजनल ऑफिस इलाहाबाद

अगर माक्र्स को लेकर कोई कंफ्यूजन है तो स्टूडेंट्स स्क्रूटनी करा लें ये बेहतर ऑप्शन हैलाखों की संख्या में कॉपियां होती हैं ऐसे में एक एक को अलग-अलग संज्ञान में नहीं लिया जा सकता हैकंफ्यूजन हो तो आरटीआई के तहत कॉपी देख लें
-उपेंद्र गंगवार, सचिव, यूपी बोर्ड