शहर के सरकारी हॉस्पिटल्स में बीपी, गठिया और शुगर की दवाओं का टोटा

मेडिकल स्टोरों से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर हो रहे हैं मरीज

ALLAHABAD: सरकारी हॉस्पिटल्स में इलाज की स्थिति भगवानभरोसे है। पर्ची कटाकर पहुंचने वाले मरीज को डॉक्टर धड़ल्ले से दवा लिख रहे हैं और दवा काउंटर पर उसी तेजी से दवा नहीं होने की बात कह कर लौटा दिया जा रहा है। अब मरीज क्या करे उसकी समझ में नहीं आ रहा। कई चौखट पर सिर पटकने के बाद अंतत: उसे बाहर मेडिकल स्टोर पर जाकर जेब खाली करनी पड़ रही है। हद तो ये कि सरकारी हास्पिटल के डॉक्टर द्वारा लिखी दवा ढूंढ़ लेना भी पहाड़ खोदने के बराबर है, क्योंकि अधिकतर मेडिकल स्टोर वाले तो पर्ची देखते ही दवा नहीं होने का राग अलापने लगते हैं। फिर काफी हाथ-पैर जोड़ने के बाद सब्सीट्यूट के नाम पर महंगी दवाएं पकड़ा देते हैं। यह स्थिति आई है शासन की ओर से लागू नई खरीद प्रक्रिया के कारण।

तीन महीने से है क्राइसिस

सरकारी हॉस्पिटल्स में बीपी, शुगर और गठिया की दवाओं की क्राइसिस तीन माह से चल रही है। राज्य सरकार ने मई में दवाओं की खरीद के नियम में बदलाव किया था। इसके तहत कोई भी हॉस्पिटल सीधे कंपनियों से दवाओं की खरीद नहीं कर सकेगा। अब यह अथारिटी कारपोरेशन के तहत मंत्री और सचिव स्तर के अधिकारियों के पास होगी। उनकी खरीदी दवाओं से ही हॉस्पिटल्स को काम चलाना होगा। हालांकि अभी ये प्रक्रिया पाइप लाइन में है। इस बीच लागू जीएसटी ने रही सही कसर पूरी कर दी। जीएसटी नंबर मिलने में लेटलतीफी से दवाओं की आपूर्ति सुचारू नहीं हो रही है।

एलपी खरीद से चल रहा काम

सर्दी, जुकाम, बुखार और पेट दर्द की दवाओं की इतनी दिक्कत नहीं है जितनी शुगर, बीपी और गठिया की दवाओं की है। इन बीमारियों के रोज लगभग पांच सौ मरीज आते हैं। दवाएं महंगी होने से उन्हें हॉस्पिटल का ही सहारा है। शासन द्वारा प्रक्रिया पूरी तरह अमल में नहीं ला पाने से हॉस्पिटल अपनी एलपी यानी लोकल परचेजिंग के जरिए थोड़ी बहुत दवाओं की खरीद कर रहे हैं। लेकिन मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि दवाओं की क्राइसिस लगातार बनी हुई है।

03 बीमारियों ब्लड प्रेशर, शुगर और गठिया के मरीजों को नहीं मिल पा रही दवाएं

05 से छह हजार मरीज प्रतिदिन कॉल्विन और बेली हॉस्पिटल में आते हैं

500 से एक हजार है रोज आने वाले बीपी, शुगर और गठिया के मरीजों की संख्या

01 लाख रुपये है प्रतिदिन एलपी के जरिए दवाओं की खरीद की लिमिट

इन्हें चाहिए फैंसी दवाएं

शासन की ओर से खरीद प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाने से हॉस्पिटल्स एलपी के जरिए सस्ती दवाएं खरीद रहे हैं। उधर, मरीज काउंटर पर बीमारियों की फैंसी दवाओं की मांग कर रहे हैं। यह वे दवाएं हैं जिनमें एक साथ कई दवाओं का काम्बिनेशन होता है और मरीज को कई गोलियां नहीं खानी पड़ती हैं। इनमें साइड इफेक्ट का खतरा भी कम होता है और इनको तैयार करने में एडवांस फार्मेसी का यूज होता है। खरीद प्रक्रिया में लोचा के कारण इन दवाओं की सप्लाई लगभग बंद है। बेली हॉस्पिटल में गठिया की दवाएं शुक्रवार शाम से पूरी तरह खत्म हैं।

कोट्स फेसबुक से

सरकार को कोई भी नीति बदलने से पहले पब्लिक की परेशानी का ध्यान रखना चाहिए। जीएसटी लागू होने से भी दवाओं की कमी हुई है।

मीतू

सरकारी हॉस्पिटल्स में शुगर और गठिया जैसी बीमारियों की दवाओं की क्राइसिस के लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार है।

पंकज शर्मा

स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी नीतियों के बदलाव में सरकार को सोच समझकर कदम उठाना चाहिए। दवाओं की सप्लाई अब तक हो जानी चाहिए थी।

अभिषेक पांडेय

बीपी, शुगर और गठिया जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं और इनकी दवाएं भी महंगी हैं। इसलिए सरकार को जल्द दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करानी चाहिए।

शांतनु

दवाएं मिल भी रही हैं तो काफी कम मात्रा में। जबकि, दूर से आने वाले मरीजों को कम से कम पांच से दस दिन की दवा तो दी जानी चाहिए।

अतुल