- प्रयागराज की धरती से ही अशोक सिंहल के जीवन में आया था बदलाव

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PRAYAGRAJ: रामजन्म भूमि आन्दोलन के अगुआ रहे अशोक सिंहल हमेशा ही देश में सामाजिक समरसता के हिमायती रहे है। मूलत: अशोक सिंहल का परिवार अलीगढ़ बिजौली का रहने वाला था, और उनका जन्म आगरा में 27 सितंबर 1926 को हुआ। लेकिन परवरिश से लेकर आखिर तक वह प्रयागराज से ही जुड़े और यहीं से श्रीराम जन्म भूमि के अन्दोलन से जुड़े। उनके साथ करीब 20 वर्षो तक हमेशा रहने वाले डॉ। चन्द्रप्रकाश सिंह बताते है कि उनकी शिक्षा प्रयागराज के सीएवी इंटर कालेज से हुई। उसके बाद बीएचयू से उन्होंने 1950 में बीटेक पूरा किया। हालांकि 1942 से ही वह आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ चुके थे। आरएसएस के पूर्व सरसंघ चालक प्रो। राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया और अशोक सिंहल के पिता महावीर सिंहल के बीच गहरा नाता था। बीटेक करने के बाद वह भी रज्जू भैया से प्रेरित होकर पूर्ण कालिक प्रचारक बन गए। इसके बाद श्री सिंहल का कद बढ़ता गया और बाद में 20 वर्षो तक विहिप के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।

धर्म संसद में बना श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का प्रस्ताव

प्रयागराज में स्थित विज्ञान परिषद में 1984 में धर्म संसद का आयोजन अशोक सिंहल द्वारा किया गया। जहां से श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन का प्रस्ताव बना। जिसके बाद अशोक सिंहल ने इसे सम्पूर्ण हिंदू समाज के सर्वागीण विकास का आन्दोलन बनाकर हर वर्ग और पंथ के व्यक्तियों को जोड़ने की पहल की। जिससे हिन्दुओं में मौजूद जातिगत भेदभाव को खत्म करके सभी को आन्दोलन से जोड़ा जा सके।

1984 में सीतामढ़ी से निकली पहली रामजानकी यात्रा

श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन की शुरुआत होने के साथ ही 1984 में बिहार के सीमामढृी से श्रीराम जानकी यात्रा की शुरुआत हुई। इसका आयोजक विश्व हिन्दू परिषद रहा।

इसी वर्ष 7 अक्टूबर 1984 में अयोध्या के सरयू तट पर बड़े धर्म सभा का आयोजन अशोक सिंहल ने किया। जिसका नाम संकल्प सभा दिया गया। इसमें मंदिर में ताला खुलवाने के लिए प्रस्ताव बना। अगले ही दिन यानी 8 अक्टूबर को अयोध्या से लखनऊ के लिए यात्रा शुरू की। उसकी अगुवानी अशोक सिंहल ने की।

प्रयागराज कुंभ में शिलापूजन की हुई घोषणा

वर्ष 1989 में प्रयागराज में कुंभ लगा था। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए यहां पर शिलापूजन की घोषणा हुई। इस आयोजन में देवरहा बाबा भी शामिल हुए थे। इसके बाद देश के 2 लाख, 75 हजार गांवों से करीब 6 करोड़ लोगों ने अपने सामर्थ के अनुसार सोना, चांदी, ईट, पत्थर की शीला का पूजन करके उसे अयोध्या भेजा गया। 10 नवम्बर 1989 को कामेश्वर चौपाल की ओर से रामलला विराजमान पर मंदिर का शिलान्यास हुआ। जिसके करीब एक साल बाद यानी 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा की घोषणा हुई। इस दौरान लाखों की संख्या में लोग अयोध्या पहुंचे। तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कारसेवकों पर गोलिया चलवाई। इस घटना में अशोक सिंहल भी घायल हुए। इसके बाद 4 अप्रैल 1991को दिल्ली में वीएचपी की ओर से अशोक सिंहल के नेतृत्व में दिल्ली के वोट क्लब पर हिन्दू सम्मेलन हुआ। इसके बाद अयोध्या के कारसेवक पुरम् में जुलाई 1992 में सर्व देव अनुष्ठान का आयोजन किया गया। अक्टूबर से 25 अक्टूबर 1992 तक श्रीराम चरण पादुका पूजन आयोजित किया गया। इसको लेकर पूरे देश में अभियान चलाया गया। इसके बाद 30 अक्टूबर को दिल्ली में फिर से धर्मसंसद हुई। जहां 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा की घोषणा हुई।