इलाहाबाद हाईकोर्ट से निर्णीत मुकदमों की फाइलें हो रही डिजिटाइज

स्कैन हो चुके डाटा ऑनलाइन नहीं हुए, गट्ठर से फाइलें खोजना मुसीबत

इलाहाबाद हाईकोर्ट से निर्णीत मुकदमों की फाइलों का डिजिटाइजेशन युद्ध स्तर पर जारी है जबकि पुराने अभिलेख कंप्यूटरों में फीड करने के चक्कर में अधिवक्ता और मुवक्किलों को परेशानी होने लगी है। लाखों फाइलें तकनीकी सेंटर में पड़ी हैं। विभिन्न मुकदमों की सुनवाई के लिए पुरानी फाइलों को ढूंढकर लाना बड़ी समस्या बन गई है। फाइलों की नकल व आदेशों की प्रमाणित प्रति देने की अर्जियां कार्यालय में लंबित है।

2016 में शुरू हुई थी प्रक्रिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने निर्णीत हो चुके मुकदमों के अभिलेख डिजिटाइज करने का आदेश मई 2016 में दिया था। कहा था कि प्रत्येक वर्ष एक करोड़ पन्ने डिजिटाइज किए जाएंगे। इसके पीछे मकसद यह था कि दशकों पुराने कागजी अभिलेख को नष्ट होने से बचाया जा सके। फाइलों को डिजिटाइज करने की जिम्मेदारी मुंबई की कंपनी स्टॉक होल्डिंग कारपोरेशन को दी गई। कंपनी ने 1868 से 2015 तक निर्णीत लाखों मुकदमों की फाइलें परिसर में स्थित अपने तकनीकी सेंटर में मंगा ली। दो साल में करीब 25 लाख फाइलें स्कैन हो चुकी हैं। इस कार्य की निगरानी के लिए तीन न्यायाधीशों की कमेटी पूर्व से ही गठित है। अदम पैरवी में खारिज मुकदमों की हजारों फाइलें भी स्टॉक होल्डिंग कंपनी के सेंटर में चली गई और बेतरतीब पड़ी हैं। जब वकीलों ने याचिका की पुन: सुनवाई की अर्जी दाखिल की तो फाइलें मौके पर न होने की समस्या आ गई है।

रोज नोक झोंक की नौबत

वकीलों के सामने दिक्कत यह भी है कि स्कैन हो चुकी फाइलें ऑनलाइन नहीं की जा सकी हैं और मूल रिकार्ड सेंटर में पड़े हैं। नई फाइलें भी सेंटर में लगातार पहुंच रही हैं। आये दिन वकीलों व कर्मचारियों के बीच तीखी नोकझोंक होती देखी जा रही है। वकील आदेश की प्रति पाने के लिए एक साल से अधिकारियों के पास चक्कर लगा रहे हैं। अधिकारियों की मजबूरी है कि फाइल नहीं मिल पा रही है तो वह कैसे नकल जारी करें।

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सुनवाई की व्यवस्था दो महीने से बेपटरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीआइएस सिस्टम लागू होने से भी वकीलों व मुवक्किलों की परेशानी कायम है। आठ जनवरी से हाईकोर्ट में मुकदमों की सुनवाई व्यवस्था बेपटरी है। कुछ वकीलों के मुताबिक चीफ जस्टिस डीबी भोंसले ने होली तक परेशानी दूर होने की बात कही थी लेकिन, दिक्कतें अब भी हो रही हैं। इससे अधिवक्ताओं में नाराजगी बढ़ रही है।