प्रयागराज (ब्‍यूरो)। दलहनी एवं तिलहनी फसलों की बेहतर पैदावार के लिए खेतों में देशी खाद का प्रयोग करना चाहिए। चना व मटर की खेती में जैविक कीट प्रबन्धन के लिए खेत में खम्भे गाड़े जाने चाहिए जो फसल से ऊंचे हों ताकि पक्षी उसपर बैठकर कीटों को अपने आहार के रूप में ग्रहण करते हुए कीटों के नियत्रंण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। खेती के प्राकृतिक शत्रुओं के नियत्रंण रखने में एकीकृत कीट प्रबन्धन सहायता करता है। चूहों पर नियत्रण रखने के लिए चूहों की बिलों के पास ब्रोमाइड युक्त बिस्किट एवं ब्रेड का प्रयोग किया जाता है। जिससे चूहों की धमनियों में रक्तस्राव होने से तत्काल चूहों की मृत्यु हो जाती है। यह बातें उप कृषि निदेशक, कृषि रक्षा गोपाल दास ने अखिल भारतीय सरदार वल्लभ भाई पटेल सेवा संस्थान, अलोपी बाग में चल रहे पांच दिवसीय विराट किसान मेला के चौथे दिन कहीं।

पशुपालन, कृषि का एक प्रमुख घटक
प्रोग्राम में पशु चिकित्साधिकारी ने कहा कि पशुपालन, कृषि का एक प्रमुख घटक है। पशुपालन से प्राप्त गोबर की खाद का खेतों में उपयोग होता है। पशुपालन चार श्रेणियों में विभक्त है यथा-पशु प्रबन्धन, पशुपालन पोषण, पशुपालन प्रजनन एवं रोग नियंत्रण सम्मिलित है। पशुपालन विभाग द्वारा संचालित राष्ट्रीय गोकुल मिशन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं कृषक सहयोगी योजना है। वैज्ञानिक डॉ मनीष कुमार ने बताया कि खेती के साथ- साथ बागवानी की खेती करने से कृषक स्वयं उद्यमी बन सकते हैं। जी सिंह डिग्री कालेज, सहसों के छात्र रामराज यादव द्वारा बताया गया कि हरी खाद जैसे सनई, ढैंचा, एवं दलहनी फसलों की खेती करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। किसान मेला में कृषकों की जानकारी के लिए 46 स्टाल लगाये गये हैं। मेले में 1125 कृषकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। प्रश्नोत्तरी प्रोग्राम में विजेता पांच किसानों को सम्मानित किया गया। उप कृषि निदेशक एसपी श्रीवास्तव एवं अर्पिता राय, उप सम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी-सोरांव डा चन्द्रभान सिंह, पशु चिकित्साधिकारी, प्रयागराज, शुआट्स के कृषि वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार, डॉ मदन सेन, कृषि विज्ञान केन्द्र कौशाम्बी के डा आशीष कुमार तथा कुलभाष्कर आश्रम पीजी कालेज के डा मनीष कुमार ने भी किसानों को उपयोगी जानकारियां दी। संचालन प्रीती त्रिपाठी ने किया।