प्रयागराज ब्यूरो । आखिर ऐसा क्या है कि सुसाइड करने वालों में महिलाओं से अधिक पुरुषों की संख्या होती है। क्यों वह परिस्थितियों के सामने खुद के घुटने टेक देते हैं। इस बार इंटरनेशनल मेंस डे की थीम ही जीरो मेन सुसाइड रखी गई है। जिससे पुरुषों को आत्महत्या के लिए उठाए जाने वाले कदम पर रोक लगाई जा सके। खुद डॉक्टर्स का कहना है कि उनके पास महिलाओं से अधिक पुरुषों के केस आते हैं। जिन्हे काउंसिलिंग कर जिंदगी को जीने की सलाह दी जाती है।

पांच में से चार केस

काल्विन अस्पताल स्थित मनो चिकित्सा केंद्र के विशेषज्ञों की माने तो सुसाइड को लेकर आने वाले पांच में से चार केस पुरुषों के होते हैं। तमाम कारणों से वह सुसाइड करने का फैसला कर लेते हैं और इसकी भनक लगने पर पैरेंट्स या दोस्त उन्हे मनोचिकित्सकों के पास लेकर आते हैं। बातचीत में कई कारण सामने आते हैं। सबसे बड़ा कारण करियर और रोजगार से जुड़ा होता है। किसी कारणवश रोजगार चले जाने या करियर में उचित मुकाम नही मिलने पर पुरुष इस तरह का कदम उठा लेते हैं। इसके अलावा लव और अफेक्शन में असफलता को लेकर भी पुरुष अक्सर जीवन समाप्त करने की कोशिश करते हैं।

एग्जाम्पल

केस वन- तेलियरगंज के रहने वाले सतीश कुशवाहा दो साल पहले महाराष्ट्र से इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर आए हैं। जॉब प्लेसमेंट में सेलेक्शन नही हो पाने और फिर प्रयागराज में भी जॉब नही मिलने पर वह डिप्रेशन में चले गए। दो सप्ताह पहले उन्होंने सुसाइड की कोशिश की। इसमें नाकाम होने पर परिवार के लोग उन्हें डॉक्टर्स के पास लेकर पहुंचे। फिलहाल उनकी काउंसिलिंग चल रही है।

केस टू- पेशे से बिजनेसमैन राहुल सिंह को कोरोना के दौरान काफी घाटा हुआ। इससे वह बुरी तरह से टूट गए। उन्होंने फिर से व्यापार में पैर जमाने की कोशिश की लेकिन सफल नही होने पर वह अवसाद का शिकार हो गए। छह माह पहले उन्होंने सुसाइड का मन बनाया। इसकी भनक लगने पर परिवार के लोग उन्हे डॉक्टर के पास ले गए। वहां उनकी काउंसिलिंग और इलाज हुआ और अब वह पहले से काफी दुरुस्त हैं।

पांच मिनट में चार सुसाइड

यह केवल प्रयागराज का आंकड़ा नही बल्कि पूरा विश्व इससे परेशान है। कुल मिलाकर हर पांच मिनट में चार पुरुष अपनी जान दे देते हैं। यही कारण है कि इस बार की थीम जीरो मेन सुसाइड रखा गया है। 18 से 45 साल की आयु में पुरुषो की मौत का 76 फीसदी कारण आत्महत्या ही होता है। डॉक्टर्स का कहना है कि पुरुषों में किसी भी परिस्थिति से जूझने के बजाय सभी दुखो से छुटकारा पाने का जवाब काउंसिलिंग में ज्यादा सामने आता है। इसका कारण आज का सामाजिक परिवेश और लाइफ स्टाइल है।

इन लक्षणों से रहे होशियार

- अकेले पन का शिकार होना।

- परिवार और दोस्तों से दूर रहना।

- बात बात पर चिढृना और लड़ाई करना।

- हर समय अपनी परिस्थितियों को लेकर दुखी रहना।

- लगभग हर बात का बुरा मान जाना और कड़वा बोलना।

- इमोशनल होने पर सुसाइड करने की इच्छा जाहिर करना।

इस तरह से होगा बचाव

- लक्षण दिखने पर पुरुषों से संवाद स्थापित करना चाहिए।

- उनकी असफलता पर नीचा दिखाने से बेहतर हौसला बढ़ाएं।

- शक होने पर तत्काल डॉक्टर की सलाह लें।

- घर का माहौल खुशनुमा बनाए रखना जरूरी।

- सुसाइड की बात सामने आने पर उसे सीरियसली लेना।

लोगों को जीवन से इतनी अपेक्षाएं हैं कि वह छोटी सी हार को बर्दाश्त नही कर पाते हैं। करियर, जॉब, प्यार सहित तमाम कारणों में असफल होने पर वह सुसाइड करने का मन बना लेते हैं। यह टेंडेसी में पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले कहीं अधिक है। जिस पर रोक लगाना आसान नही है।

डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक