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फुटबॉल प्रैक्टिस कराने के लिए कोच को हर माह देता है विभाग

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ट्रैक शूट व शू कैंप में सेलेक्शन के बाद खिलाडि़यों को मिलता है

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बार साल में मेडल जीतने पर खिलाड़ी को शासन देता है कैश अवॉर्ड

-खिलाडि़यों के लिए शासन से नहीं मिलता कोई बजट, विभाग के पास नहीं है अपना ग्राउंड

ALLAHABAD: सरकार की उपेक्षा, फंड का अभाव, व्यवस्थाओं का टोटा, यह तीन चीजें जिले के फुटबाल खिलाडि़यों की राह में बड़ी बाधा हैं। खिलाडि़यों के लिए कोई ऐसी योजना भी नहीं है, जिससे कि वे अपना कॅरियर आगे बढ़ा सकें। हम बात कर रहें हैं खिलाडि़यों को तैयार करने का जिम्मा लेने वाले मदनमोहन मालवीय स्टेडियम की।

नहीं हैं आधुनिक सुविधाएं

स्टेडियम को फुटबॉल की ट्रेनिंग के लिए कैंटोनमेंट बोर्ड ने सदर में जमीन दे रखी है। यहां विभाग अपनी तरह से कोई ऐसा निर्माण या व्यवस्था नहीं कर सकता, जिसके जरिए खिलाडि़यों को आधुनिक ट्रेनिंग दी जा सके। फुटबाल खिलाडि़यों को बेहतर ढंग से तैयार करने के लिए शासन से कोई बजट भी नहीं मिलता। ट्रेनिंग के ऐवज में बच्चों से सालाना 500 रुपए की फीस भी ली जाती है।

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क्या हैं कमियां

-फुटबॉल खेल या खिलाडि़यों के लिए शासन से नहीं मिलता कोई बजट।

-फुटबॉल खिलाडि़यों के लिए जिले में नहीं है छात्रावास की सुविधा।

-विभाग के पास नहीं है ट्रेनिंग कराने के लिए खुद का फुटबॉल ग्राउंड।

-कैंटोनमेंट बोर्ड की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर किसी तरह कोच दे रहे हैं प्रशिक्षण।

-प्रशिक्षण के लिए जरूर आधुनिक किट्स जैसे कोन, मार्कर, पैराशूट, स्टिक, हर्डिल आदि का है अभाव

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इस तरह हो सकता है सुधार

-समतल व मानक के अनुरूप ग्राउंड की हो व्यवस्था

-ट्रेनिंग व छात्राओं के लिए शासन स्तर से एलॉट किया जाय बजट।

-आधुनिक ट्रेनिंग के लिए कोन व मार्कर का हो इंतजाम

-विभाग द्वारा साल में दो बार कराई जाएं स्टेट लेवल की प्रतियोगिताएं

-अच्छे खिलाडि़यों को प्रमोट करने के लिए सरकार उनका उठाए पूरा खर्च।

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क्या कहते हैं प्रशिक्षणार्थी

हमें शासन स्तर से कोई सुविधाएं नहीं दी जाती। ग्राउंड छोड़ कर सारी चीजें स्वयं ही अरेंज करनी पड़ती है। मेडल आदि जीतने पर भी कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। इससे मनोबल तो डाउन होता ही है।

-मानसी कुमारी, कैंटोनमेंट ग्राउंड

ट्रेनिंग के लिए फुटबॉल स्टेडियम ही देता है। शू आदि की व्यवस्था हमें खुद करनी होती है। बस इसलिए लगे हुए हैं कि आज नहीं कल, कुछ बेहतर हो जाएगा।

-रिया सोनकर, कैंटोनमेंट ग्राउंड

कई लड़कियां व लड़के स्कूल नेशनल जैसी प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं। इनमें एक मैं भी शामिल हूं। हम लोगों के खेल की सराहना तो होती है, पर आगे बढ़ने के लिए किसी तरह की सहायता नहीं दी जाती।

-कौशलेश कुमार, कैंटोनमेंट ग्राउंड

फैजाबाद, बरेली व वाराणसी में ही फुटबॉल छात्रावास की सुविधा है। सेलेक्टेड खिलाडि़यों को वहां खाने आदि की सुविधाएं दी जाती हैं। शासन से ऐसा कोई बजट नहीं मिलता, जिससे खिलाडि़यों की मदद की जा सके।

-चंचल मिश्र,

क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी मदन मोहन मालवीय स्टेडियम