प्रयागराज (ब्यूरो)। गांधी की पत्रकारिता विषय पर आज गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन हुआ। गांधी संगत के इस विशेष व्याख्यान में मुख्य वक्ता सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के डॉ धनंजय चोपड़ा ने कहा कि गांधी जनसंचारक थे। ऐसे तीन ही लोग हुए हैं- गांधी, नेल्सन मंडेला, और मार्टिन लूथर किंग। गांधी ऐसे पहले कम्युनिकेटर थे जो जन को समझ रहे थे। वह उनके दुख-सुख, उनके संकट-क्राइसिस को समझ रहे थे। क्योंकि गांधी जन को समझ रहे थे, अत: वे उसे जोडऩे वाली सजग-सरल भाषा का भी प्रयोग करते थे। शब्द दिल के पास बैठकर दिमाग पर असर डालते हैं। गांधी की भाषा ऐसे ही जन के दिलों में बैठकर उन पर असर डालती थी, और वे गांधी का अनुसरण करने लग जाते थे।
गांधी जी के हर एक्शन में था एक संदेश
धनंजय जी ने आगे बताया कि गांधी का मॉडल सिंबॉलिक कम्युनिकेशन का मॉडल है। उनका रहना, उनका खाना, उनका पहनना, उनकी लाठी सभी प्रतीक रूप में कुछ कह रहे होते थे। समुद्र किनारे जाकर नमक उठा लेना और सत्ता का हिल जाना। यह भी उनके जनसंचार के सत्याग्रही मॉडल का उदाहरण है। पोस्ट ट्रूथ के समय में यह एक जरूरी संकल्पना है। सत्याग्रही संचार मॉडल से ही इस फेक न्यूज, पेड न्यूज के समय कुछ सार्थक किया जा सकता है। पत्रकारों के संबंध में गांधी जी कहते हैं कि पत्रकार चलती फिरती महामारी बन गए हैं। पत्रकार की जिम्मेदारी जनता को चेताना है उसको डरना नहीं। प्रोफेसर शबनम हमीद ने गांधी जी की वेशभूषा, उनकी लाठी, उनके रहन-सहन आदि पर बात रखते हुए बताया; कि कैसे लाठी जिसे हम हिंसा से संबंधित मानते हैं वह भी गांधी जी के हाथ में आने के बाद अहिंसा का प्रतीक हो गई है। गांधी विचार और शांति अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने बताया कि गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदन मोहन मालवीय; यह भारतीय पत्रकारिता का एक त्रिकोण है। इन्हें पढ़ा और समझा जाना चाहिए। भगत सिंह के सन्दर्भ में गांधी और इरविन के डायलॉग को पढ़कर गांधी जी के प्रयासों को तथ्यात्मक रूप से जाना जा सकता है। इस तरह गांधी जी से संबंधित अंबेडकर, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, पटेल के मिथों को भी उन्होंने अपने वक्तव्य में तर्कों के साथ रखा। संचालन डॉक्टर तोषी आनंद ने किया। आभार ज्ञापन डॉ। सुरेन्द्र कुमार ने किया.गांधी संगत के इस आयोजन में विभिन्न शोध छात्र तथा परास्नातक छात्र उपस्थित थे।