प्रयागराज (ब्‍यूरो)। नौटंकी कल आज और कल विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन संस्कृति विभाग भारत सरकार के सहयोग से मैत्रेयी संस्था ने केपी गल्र्स इंटर कॉलेज के आडिटोरियल में बुधवार को किया गया। मुख्य वक्ता उदय चंद्र परदेसी ने हारमोनियम के माध्यम से दोहा, चौबाला, आल्हा, बहरे-तबीर आदि को गाने के माध्यम से समझने की कोशिश की। नौटंकी में कल किस तरह गायन का प्रयोग किया जाता रहा तथा आज किस तरह से प्रयोग हो रहा है और आने वाले समय में किस तरह प्रयोग किया जा सकता है पर अपने विचार रखे। कहा कि नौटंकी जीवन की सत्यता को निरूपित करती है।

कभी खत्म नहीं हो सकती नौटंकी
रंगकर्मी श्लेष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि नौटंकी उत्तर प्रदेश में की जाती थी और रहेगी। जिस प्रदेश के हर कोने में लोक संगीत रचा बसा है वहां नौटंकी कभी समाप्त नहीं हो सकती। डॉ राजकुमार श्रीवास्तव ने कहा कि नौटंकी हमारी संस्कृति की पहचान है। इस विधा के मूल स्वरूप को बचाने हेतु संरक्षण की जरूरत है। वक्त के साथ नौटंकी में नए प्रयोग करते रहना चाहिए क्योंकि इसके स्वरूप में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। अजामिल ने कहा कि नौटंकी के कथानक और शिल्प में नवीनता होनी चाहिए जिससे दर्शक जुड़ेंगे। अमिता सक्सेना, राकेश वर्मा, सुरेंद्र सिंह, अफजल खान, अशोक श्रीवास्तव, अलीमुद्दीन, गुलरेज आदि उपस्थित रहे। संचालन श्रीमती स्नेह सुधा ने किया।